एक तरफ जहां भारत सहित दुनिया भर के देश जीवाश्म ईंधन में कटौती करने की अपनी महत्वाकांक्षा को दोहरा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ विडम्बना देखिए की 2022 में जीवाश्म ईंधन की खपत के लिए दी जा रही सब्सिडी बढ़ कर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है।
गौरतलब है कि 2022 में वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन की खपत के लिए 91 लाख करोड़ रुपए (1.1 लाख करोड़ डॉलर) से ज्यादा की सब्सिडी दी गई जोकि जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेवार मुख्य कारकों में से एक हैं। यह जानकारी इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) द्वारा जारी नई रिपोर्ट "फॉसिल फ्यूल कंसम्पशन सब्सिडीज 2022" में सामने आई है।
रिपोर्ट के अनुसार सरकारें अपने जलवायु लक्ष्यों के बावजूद जीवाश्म ईंधन को भारी भरकम सब्सिडी दे रही हैं। देखा जाए तो यह सब्सिडी पिछले वर्ष 2021 में जीवाश्म ईंधन के लिए दी गई सब्सिडी की तुलना में दोगुनी हैं।
इससे पहले ग्लासगो क्लाइमेट समझौते में भी जोर देकर कहा गया था कि जीवाश्म ईंधन को दी जा रही इस सब्सिडी को खत्म करना, स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन की दिशा में एक मौलिक कदम है। हालांकि मौजूदा वैश्विक ऊर्जा संकट ने ऐसा करने की राजनैतिक चुनौतियों को भी रेखांकित किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक 2010 में जीवाश्म ईंधन की खपत के लिए दी जा रही वैश्विक सब्सिडी करीब 59,000 करोड़ डॉलर आंकी गई थी, जो 2012 में 75,000 करोड़ डॉलर के स्तर पर पहुंच गई। हालांकि, 2016 में यह घटकर 37,000 करोड़ डॉलर रह गई थी। लेकिन 2018 में एक बार फिर उछाल के बाद यह 58,000 करोड़ डॉलर तक पहुंच गई।
2020 में कोविड-19 और ऊर्जा कीमतों में आई भारी गिरावट के चलते यह एक बार फिर गिरकर 22,000 करोड़ डॉलर दर्ज की गई। 2021 में इसमें दोबारा उछाल दर्ज किया गया जिसे बाद यह बढ़कर 53,000 करोड़ डॉलर हो गई थी। इसके बाद 2022 में यह बढ़कर दोगुनी होकर अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है।
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी द्वारा साझा आंकड़ों के अनुसार जहां 2021 की तुलना में 2022 में प्राकृतिक गैस और बिजली खपत के लिए दी जा रही सब्सिडी बढ़कर दोगुनी हो गई। वहीं तेल के लिए दी गई सब्सिडी में भी करीब 85 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।
कोयले को दी जा रही सब्सिडी में दर्ज की गई 200 फीसदी की वृद्धि
इसी तरह कोयले को दी जा रही सब्सिडी में 200 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। यह सब्सिडी मुख्य रूप से उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रित रही। इनमें से आधी से ज्यादा जीवाश्म-ईंधन का निर्यात करने वाले देशों में केंद्रित थी।
आंकड़ों के मुताबिक 2022 में जहां कोयले के लिए 74,482 करोड़ रुपए (900 करोड़ डॉलर) की सब्सिडी जारी की गई। वहीं ऊर्जा खपत के लिए 33 लाख करोड़ रुपए (39,900 करोड़ डॉलर), प्राकृतिक गैस के लिए 28.6 लाख करोड़ रुपए (34,600 करोड़ डॉलर) जबकि तेल के लिए 28.3 लाख करोड़ रुपए (34,300 करोड़ डॉलर) सब्सिडी के रुप में दिए गए।
यदि 2021 की बात करें तो उस वर्ष में कोयले के लिए जहां 24,827 करोड़ रुपए (300 करोड़ डॉलर) की सब्सिडी दी गई थी। वहीं ऊर्जा खपत के लिए 16.6 लाख करोड़ रुपए (20,000 करोड़ डॉलर), प्राकृतिक गैस के लिए 11.7 लाख करोड़ रुपए (14100 करोड़ डॉलर) जबकि तेल के लिए 15.5 लाख करोड़ रुपए (18700 करोड़ डॉलर) सब्सिडी के रुप में दिए गए।
देखा जाए तो 2022 में जीवाश्म ईंधन की कीमतें असाधारण रूप से ऊंची और अस्थिर थीं, क्योंकि रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण करने के कारण ऊर्जा बाजार तनाव से जूझ रहा था, विशेष रूप से यूरोप में रूसी प्राकृतिक गैस के वितरण में तेजी से हुई कटौती के कारण हालात बदतर हो गए थे।
हालांकि देखा जाए तो कई देशों में उपभोक्ताओं द्वारा इन ईंधनों के लिए काफी कम कीमत चुकानी पड़ी, जिसकी बड़ी वजह सरकारों द्वारा किए नीतिगत हस्तक्षेप थे। जिन्होंने उपभोक्ताओं को उन बढ़ती कीमतों से तो बचाया पर साथ ही जीवाश्म ईंधन को भी समर्थन दिया। इसी का नतीजा था कि जीवाश्म ईंधन की खपत के लिए दी जा रही सब्सिडी अब तक के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई।
जीवाश्म ईंधन की खपत के लिए दी गई इस सब्सिडी के अलावा 2022 में ऊर्जा बिलों को कम करने के लिए 41.4 लाख करोड़ रुपए (50,000 करोड़ डॉलर) का अतिरिक्त खर्च किया गया था।
यह खर्च मुख्य रूप से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं द्वारा किया गया, जिसमें अकेले यूरोप में करीब 29 लाख करोड़ रुपए (35,000 करोड़ डॉलर) का व्यय किया गया। हालांकि वो जीवाश्म ईंधन के लिए दी गई सब्सिडी में शामिल नहीं है। बहरहाल, ऊर्जा बिलों को कम करने के लिए किए गए इस व्यय ने सरकारों पर अच्छा खासा वित्तीय बोझ डाला था।
इस रिपोर्ट में भारत की प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना के तहत दी जा रही सब्सिडी का भी जिक्र किया है, जो आबादी के सबसे गरीब तबके के लिए एलपीजी तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए दी जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक इसकी लागत 6786 करोड़ रुपए (82 करोड़ अमरीकी डालर) तक पहुंच गई है।
यदि भारत की बात करें तो कौंसिल ऑन एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्लू) और इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि 2014 से 2021 के बीच पिछले 7 वर्षों के दौरान भारत में जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, तेल और गैस के लिए दी जा रही सब्सिडी में उल्लेखनीय रूप से 72 फीसदी की कमी आई है। जो घटकर 68,226 करोड़ रुपए रह गई है। हालांकि वित्त वर्ष 2021 में जीवाश्म ईंधन को दी गई यह सब्सिडी अभी भी रिन्यूएबल एनर्जी को दी जा रही सब्सिडी से नौ गुणा ज्यादा है।
1 डॉलर = 82.76 भारतीय रुपए