जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए धीमी गति से किए जा रहे कार्यों पर संयुक्त राष्ट्र के पूर्व सदस्य नाखुश

यूएनएफसीसीसी के पूर्व सदस्यों ने 30 साल के अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ताओं का जायजा लिया, उन्होंने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए धीमी गति से किए जा रहे कार्यों पर संयुक्त राष्ट्र के पूर्व सदस्य नाखुश
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इस साल आने वाली 21 दिसंबर को जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय वार्ता (इंटरनेशनल नेगोटिएशन ऑन क्लाइमेट चेंज) की शुरूआत की 30 वीं वर्षगांठ है। संयुक्त राष्ट्र महासभा का प्रस्ताव 45/212 जो वर्तमान मानव जाति और भावी पीढ़ियों के लिए वैश्विक जलवायु संरक्षण, जलवायु परिवर्तन पर एक प्रभावी शुरुआत थी। यह इस बारे में बताता है कि जलवायु परिवर्तन अब केवल वैज्ञानिकों और कार्यकर्ताओं का एक छोटा सा सम्मेलन या 'सिर्फ' मुद्दा ही नहीं है। बल्कि यह वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक महत्व का मुद्दा बन गया है, जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय समझौते की आवश्यकता होती है।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) 1992 को अपनाया गया था और 1994 में 197 देशों ने लागू किया था।  इसने मानव गतिविधि के कारण जलवायु परिवर्तन के संभावित खतरनाक प्रभाव को मान्यता दी थी। इसमें कहा गया कि विकसित देशों को इससे निपटने के लिए मुख्य भूमिका निभानी होगी। विकसित देशों के लिए 2000 तक 1990 के स्तर पर उत्सर्जन को लाने का पहला लक्ष्य निर्धारित किया गया था। सभी देशों के लिए उनके राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं के बारे में जानकारी और संचार करने के लिए एक प्रणाली की शुरुआत की।

यूएनएफसीसीसी ने निम्नलिखित पर जोर दिया :

  • अंतर्राष्ट्रीय कानून बनाना और नियम और मानक स्थापित करना
  • वैश्विक रूप से सहमत लक्ष्यों को स्थापित करना
  • आंकड़ो को सदस्य देशो के साथ बांटना,
  • पारदर्शिता को बढ़ावा देना और जवाबदेही को प्रोत्साहित करना जागरूकता और सीखने को बढ़ावा देना
  • कार्यान्वयन और सहायता के साधनों के प्रावधान की सुविधा
  • हितधारकों का निर्माण

संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) सचिवालय के चार पूर्व सदस्यों ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दुनिया भर के प्रयास नाकाफी है, इसी तरह चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं है जब हम बेहद गंभीर खतरे में होंगे।

टीम ने 30 साल पहले शुरू हुए जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय वार्ता के बाद हुए बदलावों के बारे में पता लगाया। टीम ने कहा जबकि सदस्य देशों ने तीन दशकों में संयुक्त राष्ट्र की तीन संधियों पर सहमति व्यक्त की थी, दुनिया भर के देश उनके कार्यान्वयन में विफल हो रहे हैं। यदि जलवायु परिवर्तन के खतरनाक प्रभावों से बचना है तो कार्रवाई को तत्काल तेज करना होगा। तापमान वृद्धि जिस पर सभी देश सहमत हुए थे उसे सीमा के भीतर रखना होगा। यह समीक्षा क्लाइमेट पॉलिसी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई है।

यूएनएफसीसीसी के पूर्व सदस्यों ने कहा कि सरकारों द्वारा सहमति व्यक्त किए गए नियमों को प्रभावी तरीके से लागू किया जाना चाहिए। सदस्य देशों को ठोस रणनीतियां और कार्रवाई द्वारा ऐसे नए लक्ष्य, जिन्हें की हासिल किया जा सके उन्हें स्थापित करने का सुझाव देते हैं। 

यूएनएफसीसीसी की टीम ने कई सिफारिशें की उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :

  • सरकारों ने जो वायदे किए है उनको पूरा करने के लिए सभी तरीकों से घरेलू स्तर पर कार्य करना, सबसे बड़े उत्सर्जक और सबसे अमीर देशों को सबसे अधिक जिम्मेदारी वहन करनी चाहिए
  • व्यापार और वित्त क्षेत्रों, सरकारों, और अन्य नागरिक समाज द्वारा एक साथ कार्रवाई करना
  • टैक्स और इको-टैरिफ
  • जीवाश्म ईंधन से सब्सिडी को हटाने और कोयले को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए, खाली बोलने के बजाय वास्तविक कार्रवाई करने के लिए एक विशिष्ट रणनीति  बनाना
  • 2030 तक अंतरिम लक्ष्य रखना जिसमें तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पर रोकना

यूएनएफसीसीसी के रिचर्ड किनले ने कहा कि इससे पहले कि जलवायु परिवर्तन के खतरनाक परिणाम हो, इसपर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए, हमें वर्तमान जलवायु परिवर्तन से संबंधित खतरों को दूर करने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए पहले से ही सहमत वादों का पूरी तरह लागू किया जाना चाहिए।

यदि हमें 30 वर्षों में दुनिया भर के उत्सर्जन को नेट जीरो करना है तो सरकारी और कॉर्पोरेट कार्रवाई को प्रभावी बनाना होगा।

क्रिस्टियाना फिगरिस बताती है कि पेरिस समझौते के राष्ट्रीय जलवायु के तहत किए गए वादे, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित कार्यों की एक बहुत बड़ी शुरुआत थी, लेकिन उन्हें वर्तमान दौर के हिसाब से अपडेट करना महत्वपूर्ण है, यदि वैश्विक लक्ष्यों को हासिल करना है तो फिर निर्णायक तरीके से लागू किया जाना आवश्यक है। क्रिस्टियाना फिगरिस पेरिस समझौते के समय संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रमुख थीं।

यूएनएफसीसीसी के सदस्यों ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए एक रणनीति की आवश्यकता है कि हम 2030 के अंतरिम लक्ष्य को हासिल करें, जिसमें तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पर रोकना, 2030 तक शुद्ध सीओ2 उत्सर्जन में कमी लाना है।

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