दुनिया में 34 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है खाद्य व्यवस्था

2015 में खाद्य उत्पादन से लेकर उपभोग तक, विभिन्न गतिविधियों के चलते वैश्विक स्तर पर करीब 18 गीगाटन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हुआ था
दुनिया में 34 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है खाद्य व्यवस्था
Published on

दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैसों के एक तिहाई से ज्यादा उत्सर्जन के लिए खाद्य व्यवस्था जिम्मेवार हैं। शोध के अनुसार 2015 में, खाद्य वस्तुओं के उत्पादन से लेकर उपभोग तक वैश्विक स्तर पर करीब 1,800 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हुआ था, जोकि विश्व के कुल उत्सर्जन का करीब 34 फीसदी हिस्सा है।

वहीं, यदि 1990 के आंकड़ों को देखें तो उस समय यह करीब 1,610 करोड़ टन था। हालांकि यदि प्रति व्यक्ति उत्सर्जन की बात करें तो इस दौरान इसमें कमी दर्ज की गई है। 1990 में जहां प्रति व्यक्ति खाद्य तंत्र से होने वाला उत्सर्जन औसतन 3 टन था, वो 2015 में घटकर 2.4 टन रह गया है।

यदि वैश्विक उत्सर्जन में खाद्य तंत्र की हिस्सेदारी को देखें तो इस अवधि के दौरान इसमें करीब 10 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। जहां 1990 में हुए कुल वैश्विक उत्सर्जन के 44 फीसदी हिस्से के लिए हमारी खाद्य व्यवस्था जिम्मेवार थी, वो हिस्सेदारी 2015 में घटकर 34 फीसदी रह गयी है।

इसका करीब 71 फीसदी हिस्सा कृषि, भूमि उपयोग और भूमि उपयोग में परिवर्तन सम्बन्धी गतिविधियों के चलते उत्सर्जित हुआ था। जबकि शेष 29 फीसदी हिस्से के लिए सप्लाई चेन, परिवहन, उपभोग, फ्यूल उत्पादन, अपशिष्ट प्रबंधन, औद्योगिक प्रक्रियाएं और पैकेजिंग जिम्मेवार थी। इसमें 4.8 फीसदी के लिए परिवहन और 5.4 फीसदी के लिए पैकेजिंग जिम्मेवार थी।    

6.3 फीसदी हिस्से के लिए भारत भी था जिम्मेवार

यह जानकारी जर्नल नेचर फूड में प्रकाशित एक शोध में सामने आई है। इसके साथ ही यूरोपियन कमीशन के जॉइंट रिसर्च सेंटर ने एक वैश्विक डेटाबेस भी जारी किया है, जिसमें 1990 से 2015 के बीच खाद्य तंत्र से होने वाले उत्सर्जन के बारे में देशों के आधार पर विस्तृत जानकारी दी है।

इस शोध से पता चला है कि खाद्य सम्बंधित उत्सर्जन में करीब आधा हिस्सा कार्बन डाइऑक्साइड का था, जबकि 35 फीसदी हिस्सा मीथेन था, जोकि आमतौर पर मवेशियों,  खेती और उससे निकले अपशिष्ट के उपचार से बनती है।

यह गैस कार्बनडाइऑक्साइड से 28 गुना ज्यादा खतरनाक है। गौरतलब है कि इससे पहले 2019 में आईपीसीसी द्वारा जारी रिपोर्ट ने वैश्विक उत्सर्जन के करीब 21 से 37 फीसदी हिस्से के लिए खाद्य प्रणाली द्वारा किए जाने वाले उत्सर्जन को जिम्मेवार था।

यदि इसके उत्सर्जकों की बात करें तो 2015 में चीन की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा थी। यह खाद्य तंत्र द्वारा किए जा रहे वैश्विक उत्सर्जन के 13.5 फीसदी हिस्से के लिए जिम्मेवार था। इसके बाद इंडोनेशिया (8.8 फीसदी), अमेरिका (8.2 फीसदी), ब्राजील (7.4 फीसदी), यूरोपियन यूनियन (6.7 फीसदी) और भारत ( 6.3 फीसदी) हिस्से के लिए जिम्मेवार थे। 

क्या है इसके पीछे की वजह

आज दुनिया की आबादी 780 करोड़ से भी ज्यादा है जो 1970 में इसकी करीब आधी हुआ करती थी। मतलब साफ है कि पिछले 50 वर्षों में यह दोगुनी हो चुकी है। ऐसे में खाद्य आवश्यकता का बढ़ना स्वाभाविक ही है। हमारी बढ़ती जरूरतों के लिए जहां तेजी से कृषि के लिए वनों को काटा गया साथ ही भूमि उपयोग में भी बदलाव किया गया है। कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग, मवेशी, खाद्य पदार्थों से उत्पन्न होने वाला कचरा, परिवहन, पैकेजिंग, मशीनों के उपयोग ने इस उत्सर्जन को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। 

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी ‘फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2021’ से पता चला था कि 2019 में करीब 93.1 करोड़ टन भोजन बर्बाद कर दिया गया था। इस बर्बादी को रोककर न केवल करोड़ों लोगों का पेट भरा जा सकता था साथ ही इनके उत्पादन के चलते जो उत्सर्जन हुआ था उसे भी कम किया जा सकता था।

ऐसे में शोधकर्ताओं का मानना है कि हमें अपनी खाद्य व्यवस्था में परिवर्तन करने की आवश्यकता है, जिससे इस बढ़ते उत्सर्जन को कम किया जा सके। उन्हें पूरी उम्मीद है कि इस डेटाबेस की मदद से उन सभी क्षेत्रों को पहचानने में मदद मिलेगी, जहां उत्सर्जन को कम करने के लिए की गई कार्रवाई का सबसे अधिक फायदा होगा।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in