इमारतों में आग लगने की बढ़ती घटनाओं के पीछे भीषण गर्मी, विशेषज्ञों ने किया आगाह

विशेषज्ञों का कहना हे कि बिजली की मांग बढ़ने से एसी और ट्रांजिस्टर्स ओवरलोड हो रहे हैं। साथ ही, नियमों की अनदेखी की वजह से इमारतों में आग की घटनाएं बढ़ी है
प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो: आईस्टॉक
प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो: आईस्टॉक
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पिछले कुछ सप्ताहों में देश के उत्तर- पश्चिमी और मध्य क्षेत्रों में असामान्य रूप से तापमान बढ़ने के साथ ही इमारतों में आग लगने की घटनाएं भी बढती देखी गई हैं। पहले गुजरात के राजकोट के गेमिंग जोन और फिर दिल्ली में नवजात बच्चों के अस्पताल में आग लगने से हुई मौतों ने लोगों के अंदर गुस्सा भर दिया। दोनों हादसों की जांच में पाया गया कि उनमें बिल्डिंगों की सुरक्षा और आग से बचने के नियमों में लापरवाही बरती गई।

देश के इन हिस्सों में फायर सर्विस की हेल्पलाइन इन दिनों सामान्य से ज्यादा व्यस्त है, जो दर्शाता है कि आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं। न्यूज पब्लिकेशन बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक, 29 मई, 2024 को जिस दिन दिल्ली में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गया, उस दिन यहां फायर सर्विस में 220 से ज्यादा कॉल दर्ज की गईं। विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, इतनी ज्यादा तादाद में आग लगने की कॉल केवल दीपावली के दौरान आती हैं।

एक दिसंबर, 2023 को प्रकाशित, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी ) की रिपोर्ट - एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड्स इन इंडिया 2022 के मुताबिक, साल 2022 में देश में आग लगने की 7566 घटनाओं में 7435 लोगों की जान गई। इनमें आधे से ज्यादा मौतें आवासीय इमारतों और घरों में आग लगने की वजह से हुईं।

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, इस अवधि में दिल्ली की व्यावसायिक इमारतों में आग लगने की दस घटनाएं हुईं, जिनमें पांच लोगों की जानें गईं। जबकि उसी साल आवासीय इमारतों में आग लगने की 37 घटनाओं में 37 लोगों की मौत हुई और 14 घायल हो गए। आंकड़ों में यह भी पाया गया कि 2022 में दिल्ली में फैक्टरी में आग लगने की दो घटनाएं दर्ज की गई, जिनमें 28 लोगों को जान गंवानी पड़ी।

एनसीआरबी के मुताबिक, कुल मिलाकर 2022 में दिल्ली में आग लगने की कुल 69 घटनाओं में 77 लोग मारे गये। गुजरात में इसी साल आग से जान गंवाने वालों का आंकड़ा 328 रहा। 2022 में आग लगने के हादसों से सबसे ज्यादा मौतों का आंकड़ा ओडिशा में दर्ज किया गया, जहां यह 1219 था, इसके बाद मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र का नंबर रहा, जहां यह आंकड़ा क्रमशः 839 और 778 था। 

इसी साल आग लगने की कुल घटनाओं में से कम से कम चार घटनाएं ऐसी थीं, जो अस्पतालों मे हुई थीं। दिल्ली, मुंबई, जबलपुर और हैदराबाद के अस्पतालों में हुए इन हादसों में नौ लोगों की जान गई थी। इनमें से आठ लोगों की जान जबलपुर के न्यू लाइफ मल्टीस्पेशियलटी हास्पिटल में हुए हादसे में गई थी। पिछले साल जून में प्रकाशित रिपोर्ट - जर्नल ऑफ फेल्योर एनालिसिस एंड प्रेवेंशन के मुताबिक, इस हादसे और मौतों के पीछे की मुख्य वजह यह थी कि अस्पताल में इमरजेंसी की हालत में बाहर निकलने के लिए केवल एक ही रास्ता बनाया गया था और वह भी पर्याप्त यानी 3.6 मीटर चौड़ा नहीं था, जो फायर सर्विस की गाड़ियों के आने-जाने के लिए उपयुक्त होता।

इसी रिपोर्ट में बताया गया कि 2023 में झारखंड के धनबाद में आरसी हाजरा मेमोरियल अस्पताल में शार्ट सर्किट की वजह से आग लगने की एक बड़ी घटना में पांच लोगो की मौत हो गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, इसी साल गुजरात के अहमदाबाद में हनी चिल्ड्रंस हास्पिटल में आग लगने के हादसे में एक व्यक्ति की जान चली गई थी।

इंस्टीटयूट ऑफ टाउन प्लानर्स, इंडिया के दिल्ली चैप्टर के पूर्व सचिव आर श्रीनिवास का मानना है कि देश के उत्तर- पश्चिमी और केंद्रीय हिस्सों में बसे  शहरों में नीतिगत विसंगतियों और अनियंत्रित शहरीकरण के चलते आग लगने की घटनाएं असामान्य नहीं हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों में बिल्डिंगों में आग की घटनाओं की मुख्य वजह रिकॉर्ड-तोड़ गरमी है। वह कहते हैं, ‘ बहुत तेज गरमी एयर कंडीशनर यानी एसी के सिस्टम पर प्रतिकूल असर डालती है। पिछले दो-तीन दिनों में एसी के कम्प्रेशरों में आग लगने की कई घटनाएं हुई हैं। यह उसके बहुत तेज गरम होने और ओवरलोड होने के चलते हुईं।

दिल्ली में बिजली की मांग 8300 मेगावाट तक पहुंच गई है, जो कि इस क्षेत्र के इतिहास में सर्वाधिक है। विशेषज्ञों के मुताबिक, जब बिजली की मांग ज्यादा होती है, तो उसी हिसाब से ओवरलोडिंग बढ़ती है, जिसके चलते कुछ ट्रांसफॉर्मरों में आग लग जाती है।

मुख्य व्यावसायिक शहरों और उसके खास इलाकों में आमतौर पर भीड़ के कारण तापमान ज्यादा होता है। श्रीनिवास कहते हैं, ‘ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन इलाकों के लगभग हर घर और दुकान में एसी का इस्तेमाल किया जाता है। इसका असर न केवल बिजली का लोड बढ़ने पर पड़ता है बल्कि वातावरण में गरमी बढ़ने पर इससे कई बार एसी के कम्प्रेशर फट भी जाते हैं, जिससे इमारतों में आग लग जाती है।’ 

जैसे-जैसे शहर गरम हो रहे हैं, एसी से आग लगने के हादसों में तेजी आ रही है। वह कहते हैं, ‘ ऐसा ओवरलोडिंग की वजह से हो रहा है क्योंकि हर घर में एसी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके चलते 33 किलोवाट के पावर स्टेशन के ट्रांसफॉर्मरों में भी आग लगने के आसार बढ़ जाते हैं।’

30 मई, 2024 की सुबह नोएडा की एक हाईराइज बिल्डिंग के एक अपार्टमेंट के एसी में विस्फोट के चलते आग लग गई। श्रीनिवास के मुताबिक, ऐसा इसलिए हुआ होगा क्योंकि जो एसी बाहर की तरफ लगे होते हैं, उनमें सूरज की रोशनी सीधे पड़ती है और तेज गरमी में वे अंदर-बाहर दोनों ओर गरम हो जाते हैं। अंदर की ओर इसलिए क्योंकि तापमान बढ़ने के कारण मशीन की कार्यक्षमता कम हो जाती है, जिसके चलते उसके पार्ट अत्यधिक सक्रिय होकर गर्म हो जाते हैं, जबकि बाहर की ओर वह इसलिए गरम हो जाता है क्योंकि दिन के बड़े हिस्से में सूरज की रोशनी उस पर सीधे पड़ती हैं।

अंदर-बाहर दोनों तरफ एसी के तेज गरम होने का परिणाम कभी-कभी उसके फटने के रूप में निकलता है। स्पिलिट एसी में कूलिंग यूनिट आमतौर पर बाहर लगाई जाती है। इसके चलते वे आग लगने को लेकर ज्यादा संवेदनशील होते हैं। यही वजह है कि ऐसे एसी यूनिट को धूप से बचाने के लिए उस पर एक शेड लगाना जरूरी होता है।

श्रीनिवास के मुताबिक, गर्मी में पारे के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के चलते शहरों में बिजली के आधारभूत ढांचे में भी आग लगने का खतरा बढ़ जाता है। वह कहते हैं, ‘पश्चिमी दिल्ली के तिलक नगर में कुछ दिन पहले ओवरलोडिंग के चलते एक तार में आग लग गई थी। अगर समय रहते बचाव के उपाय नहीं किए जाते तो पूरा मार्केट जलकर राख हो जाता।’

जहां तक राजकोट के हादसे का सवाल है, वह मानते हैं कि वहां मुख्य समस्या कुप्रबंधन की थी, जिसकी जिम्मेदारी शहर नियोजन संगठन की है। यह संगठन 12 सालों से, 2022 तक षहर नियोजन का शीर्ष सलाहकार था। उनके मुताबिक, राजकोट के गेमिंग जोन में इमरजेंसी की हालत में बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था, जिसका खामियाजा लोगों को अपनी जान गंवाकर भुगतना पड़ा।

आग लगने की बढ़ती घटनाओं के बीच श्रीनिवास को आशा की एक किरण भी दिखाई देती है। वे मानते हैं कि दिल्ली जैसे शहर में जहां बाहर से आने वाली आबादी का बोझ लगातार बढ़ रहा है, वहां हम ज्वालामुखी के ऊपर बैठे हैं और जहां ऐसे हादसे कभी भी हो सकते हैं। वह कहते हैं कि शहर की इस समस्या से निपटने के रास्ते भी हैं।

उनके मुताबिक, गांवों से बड़ी तादाद में लोगों के पलायन करने और शहरों में जगह तलाशने के चलते यहां जगह की कमी हो रही है। ऐसे में इस आबादी को जगह देने के लिए हाईराइज इमारतें बनाने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन इसके साथ यह भी जरूरी है कि हम ब्लू-ग्रीन एरिया यानी जलाशय और हरियाली क्षेत्रों को बचायें और उसका दायरा भी बढ़ायें।’

वह बताते हैं- ‘1970 और 1980 के दशकों में दिल्ली में दो सौ से ज्यादा जलाशय थे, जिनकी तादाद अब मुश्किल से बीस के करीब रह गई है। उस दौर में तापमान कभी भी 45 डिग्री से ऊपर नहीं गया। यानी कि शहर के कंक्रीट में बदलने का  सीधा असर यहां के पर्यावरण पर हुआ है, जिसका नतीजा हम तापमान बढ़ने के रूप में देख सकते हैं।’

श्रीनिवास यह भी कहते हैं कि इसके अलावा आजकल घरों में आग की तरफ कांच का इस्तेमाल और डिजाइन में खामियों के चलते सरफेस एरिया का तापमान भी बढ़ जाता है, जो कि एक बड़ी समस्या है।

उनके मुताबिक, हमारे शहरों के सामने अकेला रास्ता यही है कि वे ब्लू-ग्रीन एरिया को संरक्षित करें और उसे बढ़ायें, पेड़ लगायें। दूसरा, पूरे देश में पेड़ लगाने को लेकर एक जुनून होना चाहिए, इसे लेकर हमें सचेत होना होगा और इसकी शुरुआत रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन यानी आरडब्ल्यूए से होनी चाहिए।

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