मेन यूनिवर्सिटी के क्लाइमेट चेंज इंस्टीट्यूट द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई के पहले 20 दिनों में तापमान 1979 से 2021 के औसत तापमान से ज्यादा दर्ज किया गया। जो कहीं न कहीं इस ओर इशारा करता है कि जुलाई में तापमान पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ सकता है। आशंका है कि वो अब तक का सबसे गर्म जुलाई बन सकता है।
इस बारे में नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंस और रीडिंग विश्वविद्यालय के मौसम विज्ञान विभाग से जुड़े अनुसंधान वैज्ञानिक अक्षय देवरस ने डाउन टू अर्थ को बताया कि, "इस बात की बहुत ज्यादा आशंका है कि जुलाई रिकॉर्ड का सबसे गर्म महीना होगा।" देखा जाए तो जुलाई कहीं न कहीं जून के नक्शेकदम पर चल रहा है, जो विश्व मौसम विज्ञान संगठन के मुताबिक जलवायु इतिहास का सबसे गर्म जून था।
इस बारे में नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक जून 2023 अब तक का सबसे गर्म जून का महीना रहा, जब तापमान सामान्य से 1.05 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया।
वहीं कुछ लोगों को यह भी संदेह है कि जुलाई में तापमान पिछले एक लाख वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ सकता है। इस बारे में गणित और कंप्यूटर विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एलियट जैकबसन ने ट्वीट किया कि, "वैश्विक स्तर पर जारी लू का कहर संभवतः पिछले एक लाख से अधिक वर्षों में सबसे गर्म 20 दिनों की अवधि है।"
हालांकि कुछ लोग इस तर्क का पूरी तरह समर्थन नहीं करते, उत्तरी एरिजोना विश्वविद्यालय में प्रोफेसर डेरेल कॉफमैन ने द कन्वर्सेशन में लिखा कि, "हालांकि यह दावा सही हो सकता है, लेकिन एक लाख साल पहले का कोई विस्तृत तापमान रिकॉर्ड नहीं है, इसलिए हम इस बारे में निश्चित रूप से नहीं जानते हैं।"
लेकिन इस तथ्य को पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता। जलवायु परिवर्तन पर बनाए अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने अपनी 2021 में जारी जलवायु मूल्यांकन रिपोर्ट में यह बताया है कि वैश्विक तापमान एक लाख से अधिक वर्षों में अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच रहा है। वहीं कई शोधकर्ताओं का कहना है कि वर्तमान तापमान में हो रही वृद्धि की प्रवृत्ति चिंताजनक है। उदाहरण के लिए, जर्नल नेचर में 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि पिछले 24,000 वर्षों की तुलना में आधुनिक समय में जो तापमान में वृद्धि हुई है उसकी दर और परिमाण असामान्य है।
अन्य सबूत भी इस ओर इशारा करता हैं कि करीब 6,500 साल पहले हुई तापमान में वृद्धि वर्तमान समय में हो रही वृद्धि की तुलना में कम है। एक पुराजलवायु अध्ययन से पता चला है कि वैश्विक तापमान 19वीं शताब्दी की तुलना में करीब 0.7 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो सकता है। तब से, दुनिया हर 1,000 वर्षों में 0.08 डिग्री सेल्सियस की दर से ठंडी हुई है।
2021 आईपीसीसी रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि की गई है कि औद्योगिक काल से पहले की तुलना में वैश्विक तापमान में 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है। वहीं शोधकर्ताओं के हवाले से पता चला है कि, यदि ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन में तेजी से निरंतर कटौती न की गई तो, आने वाले समय में औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगा। जो करीब 125,000 साल पहले के अंतिम इंटरग्लेशियल के शिखर से अधिक गर्म होगा।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हमारी पृथ्वी हिमयुग और इंटरग्लेशियल (गर्म) अवधियों के चक्र से गुजरती है। जिसका अंतिम चक्र करीब 116,000-129,000 वर्ष पूर्व हुआ था। इस दौरान तापमान 1971 से 1990 के औसत तापमान की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक था। इसके बाद करीब 120,000 से 11,500 वर्ष पूर्व हिमयुग आया। तब से, पृथ्वी इंटरग्लेशियल काल में रही है, जिसे होलोसीन कहा जाता है।
लू की चपेट में पूरा उत्तरी गोलार्ध
देखा जाए तो उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, दक्षिणी यूरोप और चीन एक साथ लू की चपेट में हैं। वहीं यूरोप में, ग्रीस, पूर्वी स्पेन, सार्डिनिया, सिसिली और दक्षिणी इटली के कुछ हिस्सों में पिछले सप्ताह तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया।
अमेरिका के नेशनल वेदर सर्विस क्लाइमेट प्रिडिक्शन सेंटर का कहना है कि मध्य-पश्चिमी अमेरिका के कई स्थान साल के अपने सबसे गर्म तापमान तक पहुंच सकते हैं। वहीं डब्लूएमओ के अनुसार फ्लोरिडा के कई हिस्से लंबे समय से रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की चपेट में हैं।
चीन के मौसम विज्ञान प्रशासन के अनुसार, 16 जुलाई को, तुरपान शहर के सैनबाओ टाउनशिप स्टेशन में ऐतिहासिक रिकॉर्ड तोड़ते हुए तापमान 52.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।
इसी तरह एक साथ चलने वाली लू की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। 2022 में किए एक अध्ययन से पता चला है कि उत्तरी गोलार्ध में, 1980 के दशक में मई से सितंबर के बीच औसतन करीब 73 दिनों के दौरान लू की कम से कम एक घटना दर्ज की गई थी, जो 2010 में दोगुणी वृद्धि के साथ बढ़कर 152 दिन हो गई है।
अध्ययन के अनुसार लू वाले दिनों की बढ़ती संख्या ज्यादातर ग्लोबल वार्मिंग के चलते बेसलाइन तापमान में वृद्धि से प्रेरित है। हालांकि मौसम के पैटर्न में आता बदलाव यूरोप, पूर्वी अमेरिका और एशिया जैसे क्षेत्रों में और भी अधिक वृद्धि में योगदान दे रहा है।
देवरस का कहना है कि, इस वर्ष दर्ज उच्च तापमान "हीट डोम्स" नामक घटना का नतीजा है जो अमेरिका, दक्षिणी यूरोप और चीन में बने थे। यह तब बनते हैं जब गर्म समुद्री हवा ढक्कन या टोपी की तरह के वातावरण में फंस जाती है। विशेषज्ञ के मुताबिक यह एक प्रकार की उच्च दबाव प्रणाली है, जिसकी विशेषता साफ आसमान, बारिश न होना और हल्के बादल छाए रहना है।
उनके अनुसार जलवायु परिवर्तन, इन प्रभावों को बढ़ा सकता है। हालांकि उन्होंने बताया कि "एट्रिब्यूशन अध्ययन किए जाने के बाद ही हमें इसके प्रभावों की सीमा का पता चलेगा।" देवरस को संदेह है कि अल नीनो, जो प्रशांत महासागर में असामान्य रूप से गर्म पानी की अवधि की विशेषता वाला जलवायु पैटर्न है, ने संभवतः हीटवेव को ट्रिगर करने में बड़ी भूमिका नहीं निभाई है।
उन्होंने बताया कि, जब समुद्र और वायुमंडल दोनों एक साथ काम करते हैं तो अल नीनो प्रबल होता है। उनके अनुसार "समुद्र की सतह का तापमान एक डिग्री सेल्सियस से ऊपर है, लेकिन वायुमंडलीय संबंध मजबूत नहीं है।" ऐसे में उनका कहा है कि, "हमें अभी भी इस जलवायु पैटर्न के पूर्ण प्रभावों को देखना बाकी है।"