हर वर्ष करीब 6 गीगाटन कार्बन भूमि पर बढ़ रहा है, जोकि धरती पर मौजूद सभी जीवित इंसानों के वजन का करीब 12 गुना है। यह जानकारी हाल ही में चीन के ग्लोबल कार्बन डाइऑक्साइड मॉनिटरिंग साइंटिफिक एक्सपेरिमेंटल सैटेलाइट (टैनसैट) द्वारा जारी आंकड़ों में सामने आई है। शुष्क हवा के साथ कार्बन कैसे मिश्रित होता है, इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने मई 2017 से अप्रैल 2018 तक एकत्रित आंकड़ों का उपयोग करते हुए दुनिया का पहला कार्बन के प्रवाह का डेटासेट और मानचित्र तैयार किया है। इससे जुड़ा शोध 22 जुलाई को जर्नल एडवांसेस इन एटमॉस्फेरिक साइंसेज में प्रकाशित हुआ है।
हमेशा से पृथ्वी के वायुमंडल, भूमि, जल और जीवित जीवों के बीच ग्रीनहाउस गैसों का आदान-प्रदान होता रहता है। इस शोध में वैज्ञानिकों ने इसे समझने के लिए टैनसैट उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों और अवलोकनों का इस्तेमाल करके एक मानचित्र विकसित किया है।
इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता यांग डोंगक्सू के अनुसार ग्रीनहाउस गैसों के आदान-प्रदान की इस प्रक्रिया के दौरान सौ गीगाटन से भी ज्यादा कार्बन का आदान-प्रदान होता है, लेकिन धरती पर जिस तरह से कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि हो रही है, उसके कारण हर वर्ष करीब 6 गीगाटन कार्बन वातावरण में जुड़ रही है, जोकि जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से एक गंभीर मुद्दा है। यह बढ़ता कार्बन जलवायु परिवर्तन की वजह बन रहा है।
यांग ने बताया कि इस शोध में हमने धरती पर कार्बन के प्रवाह को समझने के लिए पहली बार टैनसैट उपग्रह से प्राप्त कार्बन डाइऑक्साइड के आंकड़ों का उपयोग किया है। जो यह भी दर्शाता है कि चीन का यह पहला कार्बन मॉनिटरिंग उपग्रह दुनिया भर में कार्बन प्रवाह के वितरण की जांच कर सकता है। गौरतलब है कि चीन के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित यह टैनसैट उपग्रह चीन मेट्रोलॉजिकल एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा दिसंबर 2016 में लॉन्च किया गया था।
उपग्रह की मदद से रियल टाइम में कार्बन की निगरानी है संभव
इस अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता वांग जिंग के अनुसार हालांकि यह सही है कि उपग्रह आधारित माप जमीनी स्टेशन से प्राप्त आंकड़ों की तुलना में उतने सटीक नहीं होते हैं। लेकिन उपग्रहों की मदद से वैश्विक स्तर पर निरंतर निगरानी और अवलोकन किया जा सकता है, जो उस बारे में अतिरिक्त जानकारी दे सकते हैं। यह उन स्थानों पर भी अवलोकन कर सकते हैं जहां सतह पर निगरानी करने वाले स्टेशन या तो बहुत कम या बिलकुल नहीं हैं।
उदाहरण के लिए एक शहर में मौजूद निगरानी स्टेशन एक गांव में लगे स्टेशन की तुलना में बहुत अलग आंकड़े दे सकता है, खासकर जब वे बहुत अलग जलवायु में हैं। इस शोध से जुड़े एक अन्य शोधकर्ता लियांग फेंग ने बताया कि मौजूदा समय में जमीन आधारति नेटवर्क इतने ज्यादा दूर-दूर और बिखरे हैं, साथ ही उनमें स्थानिक तौर पर इतनी असमानता है कि वो वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर के कार्बन स्रोतों और सिंक का अनुमान लगाने में हमारी क्षमता को सीमित कर देते हैं। इस कमी को पूरा करने में टैनसैट जैसे उपग्रह काफी मददगार हो सकते हैं, जिन्हें विशेष तौर पर वायुमंडल में मौजूद ग्रीनहाउस गैसों को मापने के लिए विकसित किया गया है।
इसी को ध्यान में रखते हुए चीन में टैनसैट, जापान में गोसेट, और अमेरिका में ओसीओ-2 जैसे उपग्रह शामिल हैं, भविष्य में जिनका उपयोग नेशनल एमिशन इन्वेंटरी के सत्यापन के लिए किया जाएगा।
यांग के अनुसार, इस प्रक्रिया की देखरेख संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) द्वारा की जाएगी। जिसे पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए 2023 में शुरू किया जाएगा। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इस तरह की पड़ताल की मदद से कार्बन उत्सर्जन को रियल टाइम में और बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी। यही नहीं इससे वैश्विक स्तर पर कार्बन इनवेंटरी में पारदर्शिता आएगी।