पर्यावरण अपराध: लंबित मामलों को निपटाने में लग जाएंगे 33 साल

डाउन टू अर्थ की स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2020 इन फिगर्स रिपोर्ट बताती है कि अदालतों में 48,238 मामले लंबित पड़े हैं
फोटो: विकास चौधरी
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2017 के मुकाबले 2018 में पर्यावरण संबंधी अपराधों में कमी आई, बावजूद इसके अदालतों में लंबित मामले बढ़ गए। स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2020 इन फिगर्स रिपोर्ट बताती है कि विभिन्न अदालतों में लगभग 48,238 मामले लंबित पड़े हैं और जिस गति से अभी इन मामलों का निपटारा हो रहा है, अगर यही गति रही तो लंबित मामलों के निपटारे में 9 से 33 साल लग जाएंगे।

रिपोर्ट बताती है कि भले ही पूरे देश में पर्यावरण संबंधी अपराध कम हुए हों, लेकिन 12 राज्यों में ये अपराध बढ़ गए। इनमें हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, बिहार, मेघालय, ओडिशा, दमन दीव, दादर नागर हवेली शामिल हैं। भारत में 2017 में जहां 42,143 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2018 में 35,196 मामले दर्ज हुए। तमिलनाडु में सबसे अधिक 14,536 मामले दर्ज हुए, जबकि केरल में 5,750 मामले दर्ज हुए। हालांकि इन दोनों राज्यों में 2017 के मामले 2018 में कम मामले दर्ज हुए।

मुकदमों का बढ़ता बोझ
रिपोर्ट के मुताबिक अदालतों पर पर्यावरण संबंधी मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है। पर्यावरण से संबंधित सात में से पांच कानूनों से जुड़े 90 फीसदी मामले लंबित हैं। सबसे अधिक 97 फीसदी लंबित मामले पर्यावरण संरक्षण अधिनियम में दर्ज हैं, जबकि वन्यजीव सरंक्षण अधिनियम के तहत दर्ज 93 फीसदी मामले अदालतों में लंबित हैं। इसी तरह वन अधिनियम एवं वन संरक्षण अधिनियम के तहत दर्ज लगभग 90 फीसदी मामले अदालतों में लंबित हैं। इनमें से पुलिस जांच में 6,281 मामले लंबित हैं।

कितना लगेगा समय 

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