पर्यावरण संकट: पांच साल में 110 संशोधन के बाद कितना प्रभावी रह गया है पर्यावरण प्रभाव आकलन

केंद्र सरकार पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिनियम में लगातार संशोधन कर रही है, पिछले एक साल के दौरान सबसे अधिक संशोधन किए गए
पर्यावरण संकट: पांच साल में 110 संशोधन के बाद कितना प्रभावी रह गया है पर्यावरण प्रभाव आकलन
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पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना, 2006 किसी परियोजना के अपेक्षित पर्यावरण प्रभाव के आधार पर एक औद्योगिक संयंत्र को स्थापित करने या उसके विस्तार के लिए ग्रीन क्लीयरेंस देने वाली प्रशासकीय वैधानिक माध्यम है। यह अधिसूचना 1994 में जारी की गई थी और कई संशोधनों के बाद 2006 में इसे वर्तमान रूप में पुनः संशोधित किया गया।

प्रावधानों के क्रियान्वयन में सख्ती बरते जाने की बजाय सरकार ने विगत वर्षों में प्रक्रियाओं और मानदंडों को शिथिल करने के लिए सुनियोजित अनदेखी की, ताकि उद्योग-धंधों की स्थापना और विस्तार में आसानी हो और प्रदूषण फ़ैलाने वाले उद्योग-धंधों को शामिल किये जाने में सुविधा हो।

केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के दस्तावेज यह बताते हैं कि पिछले पांच सालों में ईआईए, 2016 की अधिसूचना में कार्यालय ज्ञापनों के माध्यम से लगभग 110 परिवर्तन किए गए। यह एक चौंकाने वाला आंकड़ा है।

यद्यपि ये सभी कार्यालय ज्ञापन आम लोगों के लिए उपलब्ध हैं लेकिन इनमें जो परिवर्तन किये गये हैं, पर उन पर आम लोगों से किसी तरह की सलाह केवल इस आधार पर नहीं ली गयी क्योंकि ये परिवर्तन कानून में किसी भी परिवर्तन की प्रक्रिया से पूरी तरह अलग और असंबद्ध थे।

इनमें से अनेक परिवर्तनों को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में चुनौतियां दी गईं। लेकिन कुछ बदलाव जनता की नज़र से बचे रह गये और आज भी ये ईआईए, 2006 की अधिसूचना का हिस्सा हैं। यह तथ्य गौरतलब है कि कुछ किये गये परिवर्तन मौलिक दृष्टि से वही प्रावधान हैं जिन्हें 2020 ईआईए की अधिसूचना में आपत्तिजनक पाया गया था।

वर्ष 2022-23 में 2006 की अधिसूचना में किये गये परिवर्तनों की संख्या पिछले पांच सालों में उच्चतम थी। अधिसूचना में सभी कार्यालय ज्ञापनों में प्रत्यक्ष परिवर्तन भले नहीं लाये गये लेकिन वर्तमान प्रावधानों या कुछ अन्य कार्यालय ज्ञापनों से संबंधित स्पष्टीकरण ज़रूर किये गये।

बहरहाल, कार्यालय ज्ञापनों के सन्दर्भ में ईआईए की अधिसूचना में इस गति के साथ परिवर्तन लाने की पद्धति को निश्चित रूप से आम बहस का मुद्दा बनाया जाना चाहिए।

विगत वर्षों में कार्यालय ज्ञापन के सन्दर्भ में ईआईए, 2006 अधिसूचना में लाये गये बड़े परिवर्तन इस प्रकार हैं: राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईएए) के लिए रेटिंग प्रणाली - 17 जनवरी, 2022 को केंद्र ने अधिक सक्षम, पारदर्शी और उत्तरदायी बनाने के उद्देश्य से राज्य पर्यावरण आकलन प्राधिकरणों (एसईएए) के लिए एक स्टार रेटिंग प्रणाली प्रस्तुत की।

किंतु गहराई से विश्लेषण करने के बाद यह स्पष्ट होता है कि 2006 की ईआईए अधिसूचना का अनुसरण करने के बाद भी यह रेटिंग प्रणाली परियोजनाओं पर आपत्ति प्रकट करने और उन्हें दंडित करने के बजाए उनके ब्लू प्रिंट को पर्यावरण-सुरक्षा की दृष्टि से आगे बढ़ने की सहमति प्रदान करती है।

यह रेटिंग प्रणाली जिन्हें हर महीने अपग्रेड किया जाना आवश्यक है, सात मानदंडों पर आधारित है। ये सभी मानदंड मामूली कमियां रह जाने की स्थिति में भी राज्यों के एसईएए पर तत्काल क्लीयरेंस के लिए दबाव डालने के उद्देश्य से बनाये गये हैं।

उदाहरण के लिए, निर्धारित मानदंडों में एक के अनुसार, अगर किसी आवेदन के आकलन का औसत समय 80 दिन से कम है तो ऐसी स्थिति में संबंधित एसईएए को अधिकतम अंक (2 अंक) मिलते हैं, लेकिन अगर औसत समय 120 दिन या अधिक है, तो एसईएए को शून्य अंक मिलते हैं।

रेटिंग प्रणाली के अन्य मानदंड के अनुसार, अगर एसईएए परियोजना के प्रस्तावकों से आवश्यक विवरण की मांग करती है तो उसपर जुर्माना लगाया जा सकता है। ये वे सूचनाएं हैं जिनकी जरूरत परियोजना के पर्यावरण पर प्रभाव को समझने के लिए पड़ सकती है। यदि कोई एसईआईएए कुल आवेदनों के 10 प्रतिशत से कम मामलों में एक से अधिक बार आवश्यक सूचनाओं की मांग करता है, तो उसे अधिकतम अंक (1 अंक) मिलेगा। यदि राज्य प्राधिकरण 30 प्रतिशत या उससे अधिक मामलों में एक बार से अधिक आवश्यक सूचनाओं की मांग करता है तब उसे शून्य अंक मिलेगा।

त्रुटिपूर्ण क्रियान्वयन का मॉड्यूल: 14 जून, 2022 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने 2006 के ईआईए की अधिसूचना के अंतर्गत पर्यावरण से संबंधित अनुमति और स्वीकृति के लिए क्रियान्वयन के मॉड्यूल का विस्तृत ब्यौरा देते हुए एक अधिसूचना जारी की।

यह मॉड्यूल क्रियान्वयन और निगरानी की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के साथ-साथ क्रियान्वयन की रपटों को निर्धारित समय पर जमा करने के बीच किसी भी तरह की देरी से बचाता है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि ये रिपोर्ट और दूसरे सहायक कागज़ात आम नागरिकों के देखने के लिए सुलभ हैं या नहीं।

दूसरी बात, क्रियान्वयन मॉड्यूल यह भी सुनिश्चित करता है कि क्रियान्वयन के प्रमाण अधिकारियों के अध्ययन के लिए उपलब्ध हो सकें। प्रस्तावक परियोजना से संबंधित संपूर्ण और सही सूचनाएं समर्पित करें, इसके लिए नियंत्रण और संतुलन नीति की आवश्यकता है।

तीसरी बात, मंत्रालय के लिए यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि क्रियान्वयन रिपोर्ट का यह ऑनलाइन प्रस्तुतिकरण को केवल उन सलाहकारों और कर्मचारियों के लिए राजस्व उत्पन्न का माध्यम बनाने से बचाए जिनके जिनके लिए उन्हें नियुक्त किया गया है। बल्कि, इन रिपोर्टों के ज़रिये जो आंकड़े इकट्ठे किये जाएं उनका उपयोग उल्लंघनकर्ताओं पर कड़ी कार्रवाई करने के लिए किया जाए।

अंतिम बात यह कि, एक सार्वजनिक मंच अवश्य हो जहाँ परियोजना का पर्यावरण और समाज पर पड़ने वाले प्रभावों से जुड़े तथ्यों को एकत्रित कर एक ऐसे मानक प्रारूप के रूप में रखा जा सके ताकि उस क्षेत्र विशेष के औद्योगिक क्रियाकलापों का निष्कर्षात्मक प्रभाव समझा जा सके।

कमज़ोर जन सुनवाई की प्रक्रिया: 2006 ईआईए की अधिसूचना ने उन औद्योगिक क्षेत्रों को परिभाषित किया है जिन्हें परियोजन के मूल्यांकन के लिए जन सुनवाई की प्रक्रिया से गुज़रने की आवश्यकता है। इस पूरी प्रक्रिया में आम लोगों से विमर्श की ज़रूरत है जबकि मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड की गई ड्राफ्ट ईआईए रिपोर्ट पर की गई टिप्पणियों पर प्रस्तावक को विचार करना होता है।

इस प्रकरण का दूसरा पक्ष ‘जन सुनवाई’ है। इसके लिए स्थानीय समाचार पत्रों में विज्ञापन देकर जनसभाएं बुलाई जाती हैं जिनकी अध्यक्षता ज़िला दंडाधिकारी / ज़िला समाहर्ता / उपायुक्त करते हैं। वे परियोजनाओं पर संबंधित हितधारकों विशेष रूप से स्थानीय निवासियों की चिंता सुनते हैं।

मंत्रालय ने अपने अक्टूबर 2021 कार्यालय ज्ञापन के अनुसार सिर्फ़ स्थानीय नागरिकों से बातचीत करने के बाद ही गौण खनिजों (लौह, मैगनीज, बॉक्साईट और चूने के पत्थर) के उत्खनन में 20 प्रतिशत की वृद्धि की अनुमति दी थी।
जन सुनवाई की प्रक्रिया पारंपरिक उत्खनन के मामलों में भी कमज़ोर हुई।

इन मामलों में पर्यावरण संबंधी क्लीयरेंस 1994 ईआईए की अधिसूचना के अंतर्गत दी गई। इन परियोजनाओं को अब केवल स्थानीय निवासियों से राय-परामर्श करना है। ईआईए, 2006 की अधिसूचना के सम्पूर्ण प्रावधानों के अनुपालन की ज़िम्मेदारी उनपर बिल्कुल नहीं है।

लोक-परामर्श प्रस्तावक को प्रस्तावित परियोजना की स्थापना अथवा विस्तार के बारे में हित-धारकों को किसी भी लोकप्रिय माध्यम के जरिये सूचित करते रहने की ज़िम्मेदारी से नियंत्रित नहीं करता है। ईआईए/पर्यावरण-प्रबंधन की योजना रिपोर्ट सार्वजनिक पोर्टलों पर सिर्फ़ सामान्य रूप में अपलोड कर दी जाती है ताकि सामान्य जनता के लिए उपलब्ध हो सके।

अतिरिक्त विवरण की अपेक्षा को एक बोझ की दृष्टि से देखा जाता है: केंद्र अथवा राज्य सरकार के अधिकारी, जिन्हें परियोजनाओं को पर्यावरण संबंधी क्लीयरेंस के लिए नामित किया गया है, वे आवश्यकता अनुरूप परियोजना के प्रस्तावक से अतिरिक्त विवरणों की मांग कर सकते हैं। इसका स्पष्ट उल्लेख 2006 ईआईए की अधिसूचना के प्रावधानों में है।

बहरहाल, एमओईएफसीसी के जून 2021 के कार्यालय ज्ञापन के अनुसार, संभागीय स्तर पर लंबित मामलों की समीक्षा यह बताती थी कि प्रस्तावक के ‘एक्स्ट्रा डिटेल्स साउट’ (ईडीएस) और ‘एडिशन डिटेल्स साउट’ (एडीएस) में असमानताएं थीं। ज्ञापन में अधिकारियों को उन ईडीएस और एडीएस की मांग करने से बचने का निर्देश दिया जो परियोजना के मूल्यांकन की दृष्टि से ग़ैर जरूरी हैं।

संशोधन के बिना कोयले के स्रोत में परिवर्तन: कोयले से चलने वाले ताप ऊर्जा संयंत्र में दहन लिए कोयले के स्रोत की आवश्यकता इसलिए है ताकि खदान से कोयला ताप ऊर्जा संयंत्र तक कोयले के परिवहन में होने वाले उत्सर्जन का आकलन किया जा सके।

नवंबर 2020 में मंत्रालय ने सभी कोयला-संचालित ताप ऊर्जा संयंत्रों को अधिक दूरी से कोयले की ढुलाई के कारण उत्सर्जन में संभावित किसी भी वृद्धि का लेखाजोखा किये बिना कोयले का स्रोत बदलने की इजाज़त दे दी।

सरकार के इस निर्देश के पीछे आयातित कोयले पर की तुलना में घरेलू स्रोतों से प्राप्त कोयले पर देश की निर्भरता को बढ़ाना था। ऊर्जा संयंत्रों को भी अब एक घरेलू स्रोत को बदल कर दूसरे घरेलू स्रोत से कोयला लेने की अनुमति दे दी गई है। इसके लिए संयंत्रों को सुदूर कोयला परिवहन से उत्पन्न होने वाली पर्यावरण संबंधित पेचीदगियों की चिंता करने की अब कोई आवश्यकता नहीं है।

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