कोविड-19 से उबरते हुए वैश्विक अर्थव्यवस्था ने मजबूत वापसी की है। जिसका असर ऊर्जा सम्बंधित कार्बन उत्सर्जन पर भी स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। इस बारे में इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) द्वारा जारी हालिया विश्लेषण “ग्लोबल एनर्जी रिव्यु: सीओ2 एमिशन इन 2021” से पता चला है कि 2021 में वैश्विक स्तर पर ऊर्जा सम्बंधित उत्सर्जन 3,630 करोड़ टन पर पहुंच गया था, जोकि अपने आप में एक रिकॉर्ड है।
देखा जाए तो 2020 में कुल ऊर्जा सम्बंधित उत्सर्जन 3,420 करोड़ टन था, जिसका मतलब है कि 2021 के दौरान इसमें 6 फीसदी (210 करोड़ टन) की वृद्धि हुई थी। वहीं बढ़ता उत्सर्जन एक और चीज स्पष्ट करता है कि आज भी हम अपनी ऊर्जा सम्बन्धी जरूरतों के लिए कहीं हद तक कोयले पर ही निर्भर हैं।
2021 में होने वाले इस कुल ऊर्जा उत्सर्जन में करीब 40 फीसदी से ज्यादा की हिस्सेदारी कोयले की थी। आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान कोयला आधारित बिजली उत्पादन की वजह से करीब 1,530 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जित हुआ था, जोकि अब तक का उच्चतम है।
इसी तरह इस दौरान नेचुरल गैस के चलते होने वाले उत्सर्जन में भी 2019 की तुलना में वृद्धि दर्ज की गई थी जो बढ़कर 750 करोड़ टन पर पहुंच गया था। 2021 में ऊर्जा क्षेत्र से होने वाले मीथेन उत्सर्जन में भी करीब 5 फीसदी की वृद्धि देखी गई थी, हालांकि इसके बावजूद वो 2019 के स्तर से कम थी।
चीन की कोयले पर निर्भरता कहीं न कहीं बढ़ते उत्सर्जन के लिए है जिम्मेवार
यदि महामारी की बात करें तो इस दौरान चीन दुनिया की इकलौती ऐसी बड़ी अर्थव्यवस्था थी, जिसमें इस दौरान 2020-21 में वृद्धि दर्ज की थी। जिसका असर साफ तौर पर उसके कार्बन उत्सर्जन पर भी देखा जा सकता है। यदि 2021 के आंकड़ों को देखें तो 2021 में चीन का ऊर्जा क्षेत्र से होने वाला कुछ उत्सर्जन 1,190 करोड़ टन पर पहुंच गया था जोकि कुल वैश्विक उत्सर्जन का करीब 33 फीसदी हिस्सा है।
2019 की तुलना में देखें तो 2021 में चीन के ऊर्जा क्षेत्र से होने वाले कुल उत्सर्जन में करीब 75 करोड़ टन की वृद्धि दर्ज की गई है। चीन के इस बढ़ते उत्सर्जन के लिए वहां बड़े पैमाने पर बढ़ती ऊर्जा की मांग जिम्मेवार है। 2021 के दौरान इसकी कुल ऊर्जा मांग में करीब 10 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी, जोकि चीन के आर्थिक विकास की दर से भी ज्यादा है।
देखा जाए तो चीन अभी भी अपनी बिजली की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए कहीं न कहीं कोयले पर निर्भर है जोकि उसके उत्सर्जन में भी वृद्धि कर रही है। गौरतलब है कि 2021 में चीन की बिजली सम्बन्धी मांग 700 टेरावाट घंटे बढ़ गई थी, जिसके आधे से अधिक हिस्से को कोयला आधारित बिजली की मदद से पूरा किया गया था।
यदि भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश में आज भी ऊर्जा उत्पादन का करीब 59.7 फीसदी हिस्सा जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है। वहीं सिर्फ कोयले पर निर्भरता की बात की जाए तो वो करीब 51.6 फीसदी है। महामारी के बाद जब अर्थव्यवस्था दोबारा पटरी पर लौटने लगी तो भारत के कार्बन उत्सर्जन में भी जोरदार उछाल देखा गया।
इसी का नतीजा है कि 2021 में देश का कोयला आधारित बिजली उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था, जिसमें 2020 की तुलना में करीब 13 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी। यही वजह है कि 2019 की तुलना में 2021 के दौरान देश के कुल ऊर्जा उत्सर्जन में करीब 8 करोड़ मीट्रिक टन का इजाफा दर्ज किया गया था।
रिन्यूएबल एनर्जी के उत्पादन में भी दर्ज की गई वृद्धि
कोयले की तरह ही 2021 में रिन्यूएबल और न्यूक्लियर एनर्जी उत्पादन में भी वृद्धि दर्ज की गई थी। गौरतलब है कि 2021 में अक्षय ऊर्जा उत्पादन बढ़कर 8000 टेरावाट घंटे पर पहुंच गया था। मतलब 2020 की तुलना में इसमें रिकॉर्ड 500 टेरावाट घंटे की वृद्धि हुई थी।
इसी तरह पवन ऊर्जा में 270 टेरावाट घंटे और सौर ऊर्जा में 170 टेरावाट घंटे की रिकॉर्ड की गई थी। वहीं दूसरी तरफ पनबिजली में 15 टेरावाट घंटे की कमी आई थी, जिसके लिए कहीं न कहीं अमेरिका और ब्राजील में पड़ा सूखा जिम्मेवार था। यदि सिर्फ चीन के अक्षय ऊर्जा उत्पादन को देखें तो वो 2021 में 2500 टेरावाट घंटा था, जिसकी देश के कुल ऊर्जा उत्पादन में हिस्सेदारी करीब 28 फीसदी दर्ज की गई थी।