बढ़ते ग्रीनहाउस गैसों से लुप्तप्राय ध्रुवीय भालू के अस्तित्व पर मंडराया संकट: अध्ययन

वायुमंडल में सालाना 50 अरब मीट्रिक टन सीओ 2 का उत्सर्जन हो रहा है, इससे दक्षिण ब्यूफोर्ट सागर में ध्रुवीय भालू की आबादी में प्रति वर्ष शावक के जीवित रहने की दर में तीन प्रतिशत से अधिक की कमी आ रही है
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, ए वीथ
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ध्रुवीय भालू लंबे समय से जलवायु परिवर्तन से पैदा होने वाले खतरों से प्रभावित हो रहे हैं, क्योंकि बढ़ते तापमान से आर्कटिक समुद्री बर्फ पिघल रही है जिस पर वे जीवित रहने के लिए निर्भर हैं।

लेकिन इन टुंड्रा शिकारियों पर तेल के कुएं या कोयला बिजली संयंत्र के प्रभाव की मात्रा निर्धारित करना अब तक वैज्ञानिकों की समझ से परे था।

साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि इस बात की गणना करना संभव है कि, नए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से भालू के आवासों में बिना बर्फ वाले दिनों की संख्या में कितनी वृद्धि होगी, और यह बदले में वहां के शावकों को वयस्क होने तक की संख्या को कैसे प्रभावित करेगा। 

ग्रेन्युलेरिटी के इस स्तर को हासिल करके, दो अध्ययनकर्ताओं ने अमेरिकी कानून में खामियों को दूर करने की उम्मीद जताई है। यहां बताते चलें कि, ग्रेन्युलेरिटी: ऐसी तकनीकें हैं जिसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित करने वाले विभिन्न क्षेत्रों में इसे कम करने के कई विकल्प शामिल होते हैं।

हालांकि शीर्ष मांसाहारियों को 2008 से लुप्तप्राय प्रजातियों की सुरक्षा मिली हुई है, एक लंबे समय से चली आ रही कानूनी राय जलवायु संबंधी विचारों को नए जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं को परमिट देने के निर्णयों को प्रभावित करने से रोकती है।

अध्ययनकर्ता ने कहा कि, हमने बर्नहार्ट मेमो को रद्द करने के लिए जरूरी जानकारी प्रस्तुत की है, उन्होंने कानूनी चेतावनी का जिक्र करते हुए बताया, जिसका नाम पूर्व राष्ट्रपति के एक वकील के नाम पर रखा गया था।

अध्ययन में कहा गया है कि औद्योगिक युग की शुरुआत के बाद से सभी ग्रीनहाउस गैसों के प्रभावों से कार्बन उत्सर्जन के एक विशिष्ट स्रोत के प्रभावों को अलग करना मौजूदा विज्ञान के दायरे से परे है।

शावकों का अस्तित्व खतरे में

ध्रुवीय भालू सील के शिकार, यात्रा, संभोग और बहुत सारी चीजों के लिए समुद्री बर्फ के वातावरण पर निर्भर रहते हैं।

जब गर्मियों में समुद्री बर्फ पिघलती है, तो वे किनारे से दूर जमीन पर चले जाते हैं, जहां वे लंबे समय तक उपवास करते हैं। जैसे-जैसे दुनिया भर में तापमान बढ़ रहा है, ये अवधि लंबी होती जा रही है।

इसके पहले के शोधों में, एम्स्ट्रुप और बिट्ज ने 1979 से 2020 के बीच, ध्रुवीय भालू की 19 में से 15 उप-आबादी में ग्रीनहाउस उत्सर्जन और उपवास के दिनों के साथ-साथ शावक के जीवित रहने के बीच गणितीय संबंध स्थापित किए।

उदाहरण के लिए, दुनिया वर्तमान में वायुमंडल में सालाना 50 अरब मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड या संबंधित गैसों का उत्सर्जन करती है, और इससे दक्षिण ब्यूफोर्ट सागर की उप-आबादी में प्रति वर्ष शावक के जीवित रहने की दर में तीन प्रतिशत से अधिक की कमी आ रही है।

स्वस्थ आबादी में, जीवन के पहले वर्ष के दौरान शावक का जीवित रहना लगभग 65 प्रतिशत है।

अध्ययन के हवाले से, एम्स्ट्रुप ने कहा, आपको इसे बहुत दूर तक कम करने की जरूरत नहीं है, इससे पहले कि आपके पास अगली पीढ़ी में प्रवेश करने वाले पर्याप्त शावक न हों।

इसके अलावा, यह शोध अमेरिकी नीति निर्माताओं को आने वाले दशकों में सार्वजनिक भूमि पर होने वाली नई जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं के प्रभाव को मापने के लिए आवश्यक उपकरण प्रदान करता है।

जलवायु और जैव विविधता के बारे में वैश्विक वार्ताओं को जानकारी देने के लिए, अतीत में विशिष्ट परियोजनाओं, कंपनियों या यहां तक कि देशों से उत्सर्जन को समझने के लिए इसे पूर्ण रूप से भी लागू किया जा सकता है।

अन्य प्रजातियों पर असर

हालांकि शोधकर्ता अपनी गणनाओं से आश्वस्त है, उनका कहना है कि उनके काम को और अधिक जमीनी शोध द्वारा परिष्कृत किया जा सकता है, उदाहरण के लिए जब वे अपने उपवास की अवधि में प्रवेश करते हैं तो ध्रुवीय भालू के द्रव्यमान का बेहतर अनुमान लगाया जा सकता है।

शोधकर्ता ने कहा कि, एम्स्रुप और बिट्ज़ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, समुद्री बर्फ में गिरावट, उपवास की अवधि, सील के शिकार के अवसरों के लिए एक शारीरिक प्रतिक्रिया और बाद में ध्रुवीय भालू की आबादी के बीच एक निर्विवाद मात्रात्मक संबंध उजागर करते हैं।

शोधकर्ता ने कहा, कानूनी खामियों के लिए एक संभावित नीति समाधान प्रदान करने के अलावा, नया शोध ध्रुवीय भालू से कहीं आगे तक पहुंच सकते हैं।

शोध में बताई गई विधियों को अन्य प्रजातियों और आवासों, जैसे मूंगा चट्टानों, या हिरणों के लिए लागू किया जा सकता है।

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