दुनिया भर के लिए हानिकारक ग्लोबल वार्मिंग, कई वायरसों के लिए फायदेमंद हो सकती है। एक बार जब वायरस बढ़े हुए तापमान को अपना लेते हैं और उस माहौल में रहने के काबिल बन जाते हैं तो उन्हें खत्म करना मुश्किल हो जाता है। यह जानकारी हाल ही में छपे एक नए शोध में सामने आई है। यह शोध अमेरिकन केमिकल सोसाइटी द्वारा प्रकाशित जर्नल एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में छपा है।
जिस तरह से यह वायरस गर्मी के प्रति अपनी प्रतिरोधी क्षमता को विकसित कर रहे हैं उसका असर इंसानों के स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा। यह वायरस कई तरह की बीमारियां फैला सकते हैं, जिससे कई संक्रामक बीमारियां आसानी से इंसान को अपना शिकार बना सकती हैं। स्विस वैज्ञानिकों द्वारा किए इस अध्ययन के अनुसार पानी में पनपने वाले वायरस जो बढ़ते तापमान में रहने योग्य बन जाते हैं तो वो लम्बे समय तक रोगों को फैला सकते हैं। साथ ही उनपर क्लोरीन जैसे कीटाणुनाशकों का भी असर नहीं होता है। गौरतलब है कि पानी में जो बैक्टीरिया होते हैं, उनको खत्म करने के लिए पानी में क्लोरीन मिलाया जाता है।
एशिया और अफ्रीका सहित दुनिया भर के कई गर्म इलाकों में पीने के लिए जो पानी उपलब्ध है उसकी गुणवत्ता अच्छी नहीं है। यही वजह है कि उन इलाकों में बीमारियों के फैलने का खतरा भी ज्यादा है। हालांकि वहां पानी के अंदर कई तरह के सूक्ष्मजीव भी होते है जो इन वायरसों को ख़त्म कर सकते हैं साथ ही इन क्षेत्रों में उच्च तापमान और सूर्य की रौशनी भी वायरस को नष्ट कर देती है। पर जिस तरह जलवायु में बदलाव आ रहा है उसके चलते वायरस उस बढ़ते तापमान के अनुकूल होते जा रहे हैं जिस वजह से बीमारियों के फैलने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार आज भी दुनिया के 2 अरब लोग दूषित पानी का उपयोग करने को मजबूर हैं। जिसकी वजह से डायरिया, हैजा, पेचिश, टाइफाइड और पोलियो जैसी बीमारियां फैल सकती हैं। अनुमान है कि दूषित पेयजल के चलते हर साल 4,85,000 लोग डायरिया की भेंट चढ़ जाते हैं।
इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने एंटेरोवायरस नामक वायरस की जांच की है। गौरतलब है कि एंटेरोवायरस आरएनए वायरस परिवार का हिस्सा है, जिसके कारण सर्दी, पोलियो, हेपेटाइटिस-ए और फुट-एंड-माउथ डिजीज जैसी बीमारियां हो सकती हैं। यह वायरस आम तौर पर पाचन तंत्र में होता है जहां से यह सेंट्रल नर्वस सिस्टम से होता हुआ शरीर के अन्य अंगों में भी पहुंच सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि हो रही है यह वायरस बढ़ते तापमान के अनुकूल बनता जा रहा है। यह वायरस सीवेज, दूषित जल और गंदे स्थानों में आसानी से पनप सकते हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार एक बार जब वायरस गर्म वातावरण को अपना लेते हैं तो वो आसानी से गर्मी में निष्क्रिय नहीं होते हैं। ऐसे में जब वह ठन्डे वातावरण में जाते हैं तो भी वो लम्बे समय तक सक्रिय बने रह सकते हैं। साथ ही उनपर क्लोरीन जैसे कीटाणुनाशकों का भी असर नहीं होता है। हालांकि प्रोफेसर कोहन ने बताया कि यह शोध प्रयोगशाला में किया गया है और उसको अभी भी मुक्त वातावरण में जांचना बाकी है।
वहीं अन्य शोधों से पता चला है कि यदि सदी के अंत तक कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमीं नहीं आती, तो तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो जाएगी। वैज्ञानिकों के अनुसार इसका मतलब है कि तापमान के बढ़ने के साथ-साथ इस वायरस का खतरा और बढ़ जाएगा। इसके साथ ही जिन फसलों को दूषित पानी में उगाया जा रहा है उनसे संक्रमण का खतरा और बढ़ सकता है।
वहीं तापमान में हो रही हीट वेव जैसे आपदाओं को और बढ़ा रही है जिसके कारण जल स्रोत गर्म हो रहे हैं। जिसका असर इस वायरस के प्रसार पर भी पड़ेगा और बीमारियों का खतरा और बढ़ जाएगा।