इस साल के अल-नीनो ने तोड़े रिकॉर्ड, अगले तीन महीनों में बढ़ेगी भारी गर्मी, बारिश पर भी पड़ेगा असर

आशंका जताई जा रही है कि अगले तीन महीनों में दुनिया के करीब-करीब सभी हिस्सों में तापमान सामान्य से ज्यादा रह सकता है। साथ ही बारिश का पैटर्न भी प्रभावित हो सकता है
जून 2023 से कोई भी महीना ऐसा नहीं रहा जब वैश्विक तापमान ने नया रिकॉर्ड न बनाया हो; फोटो: आईस्टॉक
जून 2023 से कोई भी महीना ऐसा नहीं रहा जब वैश्विक तापमान ने नया रिकॉर्ड न बनाया हो; फोटो: आईस्टॉक
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इस साल मार्च से मई के बीच अल नीनो के बने रहने की आशंका करीब 60 फीसदी है। वहीं इसके अप्रैल से जून के बीच तटस्थ रहने की 80 फीसदी संभावना जताई जा रही है। गौरतलब है कि यह ऐसी स्थिति है जब न तो अल नीनो और न ही ला नीना की स्थिति बनती है। यह जानकारी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने अपने नए अपडेट में साझा की है।

बता दें कि 2023-24 में घटी अल नीनो की घटना अब तक की पांच सबसे मजबूत अल नीनों की घटनाओं में से एक है। जो अपने चरम पर पहुंच चुकी है और धीरे-धीरे कमजोर पड़ रही है। हालांकि इसके बावजूद यह आने वाले महीनों में जलवायु को प्रभावित करती रहेगी।

डब्ल्यूएमओ का यह भी कहना है कि साल के अंत तक ला नीना की स्थिति बन सकती है, लेकिन इसको लेकर अभी भी अनिश्चिताएं बनी हुई हैं। बता दें कि अल नीनो की घटना औसतन हर दो से सात वर्षों के बीच घटती है और इसका प्रभाव आमतौर पर नौ से 12 महीनों के बीच रहता है। बता दें कि अल नीनों जलवायु का एक प्राकृतिक पैटर्न है, जो मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में घटता है। इस दौरान समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा बढ़ जाता है।

वैज्ञानिकों की मानें तो यह घटना वैश्विक स्तर पर मौसम और तूफान के पैटर्न को प्रभावित करती है। हालांकि जिस तरह इंसानी गतिविधियों के चलते जलवायु में बदलाव आ रहे हैं उनका असर इस प्राकृतिक घटना पर भी पड़ रहा है।

बढ़ता तापमान आज किस कदर हावी हो चुका है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जून 2023 से कोई भी महीना ऐसा नहीं रहा जब वैश्विक तापमान ने नया रिकॉर्ड न बनाया हो। वहीं यदि 2023 के तापमान से जुड़े आंकड़ों को देखें तो वो उसे अब तक का सबसे गर्म वर्ष बनाते हैं।

डब्ल्यूएमओ महासचिव सेलेस्टे साउलो ने जोर देकर कहा है कि, "अल नीनो ने इस बढ़ते तापमान में योगदान दिया है, लेकिन इसका मुख्य कारण निस्संदेह ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन है जो गर्मी को रोक रहीं हैं।"

उनका आगे कहना है कि, “भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह का तापमान स्पष्ट रूप से अल नीनो के प्रभाव को दर्शाता है। हालांकि, अन्य जगहों पर भी समुद्र की सतह का तापमान पिछले 10 महीनों से लगातार असामान्य रूप से उच्च बना हुआ है। जनवरी में समुद्र की सतह का तापमान कभी भी इतना नहीं रहा जितना इस साल जनवरी 2024 में दर्ज किया गया था।“ उनके मुताबिक यह प्रवृत्ति चिंताजनक है और इसके लिए केवल अल नीनो को जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता।

डब्ल्यूएमओ के अनुसार आमतौर पर अल नीनो का अपने विकास के दूसरे वर्ष में वैश्विक जलवायु पर सबसे मजबूत प्रभाव पड़ता है, जैसा कि 2024 में भी देखने को मिला है। ऐसे में विश्व मौसम विज्ञान संगठन अल नीनो के जारी रहने के साथ इस बात की भी आशंका जताई है कि इसके चलते दुनिया के अधिकांश हिस्सों में समुद्र की सतह का तापमान औसत से अधिक रह सकता है। वहीं यदि यह कमजोर भी पड़ता है तो भी इसका प्रभाव बना रहेगा।

डब्ल्यूएमओ के अनुसार यह अल नीनो की घटना जो जून 2023 में विकसित हुई थी, नवंबर से जनवरी के बीच अपने चरम पर पहुंच गई थी। नतीजन इसकी वजह से पूर्वी और मध्य उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर की सतह का औसत तापमान सामान्य से दो डिग्री सेल्सियस ऊपर पहुंच गया था।

आशंका है कि इसकी वजह से चरम मौसमी घटनाओं में भी वृद्धि हो सकती है। इन प्रभावों ने अल नीनों की इस घटना को अब तक की पांच सबसे मजबूत अल नीनों की घटनाओं में शामिल कर दिया है। हालांकि यह 1997-98 और 2015-2016 में घटी अल नीनों की घटनाओं से कमजोर थी।

संगठन ने इस बात की भी आशंका जताई है कि अगले तीन महीनों में करीब-करीब सभी भू-क्षेत्रों में तापमान सामान्य से अधिक रहेगा। डब्ल्यूएमओ ने अल नीनो अपडेट के साथ वैश्विक जलवायु को लेकर जो अपडेट जारी किया है उसमें स्थानीय तौर पर बारिश के पैटर्न पर भी प्रभाव पड़ने को लेकर चेताया है।

मुख्य रूप से देखें तो अल नीनो एक मौसमी जलवायु घटना है, जो जलवायु के मौसमी पैटर्न को प्रभावित करती है। लेकिन यह विशिष्ट क्षेत्रों में चरम मौसमी घटनाओं की आशंका को भी बढ़ा सकती है। इसके अलावा, विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अल नीनो और ला नीना घटनाओं के दौरान मौसमी पूर्वानुमान अधिक विश्वसनीय होते हैं, जो निर्णय लेने और चरम मौसमी घटनाओं की तैयारियों के लिए प्रारंभिक चेतावनियों के महत्व को रेखांकित करते हैं।

अल नीनो की वजह से जहां बारिश में इजाफे के साथ हॉर्न ऑफ अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में बाढ़ आती है। वहीं दक्षिण पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी अफ्रीका में गर्म परिस्थितियां बनती हैं और सूखे की आशंका बढ़ जाती है।

सेलेस्टे साउलो के मुताबिक अल नीनो की घटनाएं समाज और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डालती हैं। ऐसे में डब्लूएमओ द्वारा जारी सटीक मौसमी पूर्वानुमान देशों को जल संसाधन और स्वास्थ्य जैसे जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों में नुकसान को कम करने के लिए पहले से तैयार रहने में सक्षम बनाते हैं। उनका आगे कहना है कि जलवायु और अल नीनों से जुड़ी चरम मौसमी घटनाओं के बारे में प्रारंभिक चेतावनियों ने अनगिनत लोगों की जान बचाई है।

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