आर्थिक असमानता ने पैदा की जलवायु असमानता, रिपोर्ट में खुलासा
वर्ल्ड इनइक्वेलिटी लैब की रिपोर्ट के अनुसार, आर्थिक असमानता जलवायु असमानता को बढ़ावा दे रही है।
धनी व्यक्तियों के उपभोग और निवेश से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि उच्च उत्सर्जन उद्योगों में निवेश पर कर लगाकर इस असमानता को कम किया जा सकता है।
केवल यही नहीं कि दुनिया की अधिकांश संपत्ति कुछ लोगों के पास केंद्रित है, बल्कि यही अरबपतियों का समूह जलवायु में विनाशकारी बदलाव ला रहे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए भी मुख्य रूप से जिम्मेदार है।
जैसे-जैसे आर्थिक असमानता बढ़ रही है, वैसे-वैसे जलवायु असमानता भी गहराती जा रही है। वर्ल्ड इनइक्वेलिटी लैब द्वारा प्रकाशित “क्लाइमेट इनइक्वैलिटी रिपोर्ट 2025” ने पहली बार यह स्पष्ट रूप से दिखाया है कि आर्थिक असमानता किस तरह जलवायु असमानता को जन्म दे रही है।
इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले अर्थशास्त्री लुकास चांसेल और कॉर्नेलिया मोरन कहते हैं, “जलवायु संकट और आर्थिक असमानता गहराई से एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।”
रिपोर्ट में आर्थिक और उपभोग-आधारित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए कहा गया है, “धनी व्यक्ति केवल अपने उपभोग के माध्यम से ही नहीं, बल्कि अपनी संपत्ति व निवेश के माध्यम से जलवायु संकट में इजाफा कर रहे हैं।”
उपभोग आधारित उत्सर्जन का अर्थ है अमीर व्यक्तियों की जीवनशैली और उससे जुड़ी गतिविधियों से निकलने वाला उत्सर्जन। लेकिन इन व्यक्तियों के उद्योगों और पूंजी निवेश से होने वाला उत्सर्जन कहीं अधिक होता है।
रिपोर्ट के अनुसार, “धन के स्वामित्व के आधार पर देखे गए सबसे धनी 1 प्रतिशत व्यक्तियों के उत्सर्जन उनके उपभोग आधारित अनुमानों से 2 से 3 गुना अधिक हैं।”
लुकास कहते हैं, “जो जेट ये अमीर लोग इस्तेमाल करते हैं, वे उनके कुल उत्सर्जन में बहुत बड़ा हिस्सा नहीं जोड़ते, लेकिन उन्हीं जेटों में बैठकर किए गए निवेश और सौदे सबसे ज्यादा उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार होते हैं।”
दुनिया के सबसे अमीर 1 प्रतिशत लोग वैश्विक उपभोग-आधारित उत्सर्जन का 15 प्रतिशत पैदा करते हैं, लेकिन यही वर्ग पूंजी स्वामित्व से जुड़े वैश्विक उत्सर्जन का 41 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है।
यदि उपभोग-आधारित उत्सर्जन को देखें तो दुनिया के सबसे धनी 1 प्रतिशत व्यक्ति का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन सबसे गरीब 50 प्रतिशत आबादी से 75 गुना अधिक है। लेकिन जब इन्हीं अमीर लोगों के उच्च-उत्सर्जन उद्योगों में निवेश के आधार पर गणना की जाती है तो यह अंतर 680 गुना तक बढ़ जाता है।
उदाहरण के तौर पर फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका में स्वामित्व-आधारित दृष्टिकोण से गणना करने पर सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोगों का कार्बन फुटप्रिंट केवल उपभोग-आधारित अनुमान की तुलना में तीन से पांच गुना अधिक पाया गया है।
औद्योगिक क्रांति को वह बिंदु माना जाता है जहां से आर्थिक असमानता की माप शुरू हुई। पिछले दो शताब्दियों में यह असमानता लगातार बढ़ी है। आज दुनिया की आधी आबादी के पास कोई संपत्ति या मूलभूत धन नहीं है, जिससे वे एक गरीबी के जाल में फंसे हुए हैं।
दूसरी ओर अरबपतियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। केवल वर्ष 2024 में 204 नए अरबपति बने। गैर-लाभकारी संस्था ऑक्सफैम इंटरनेशनल के अनुसार, दुनिया के 10 सबसे अमीर व्यक्तियों की संपत्ति में 2024 में प्रतिदिन 100 मिलियन डॉलर की वृद्धि हुई।
ऑक्सफैम इस असमानता को समझाने के लिए एक उदाहरण देता है, “अगर कोई व्यक्ति पहले मानव के अस्तित्व (3,15,000 वर्ष पूर्व) से लेकर अब तक हर दिन 1,000 डॉलर बचाता रहता तो भी उसके पास आज दुनिया के शीर्ष 10 अरबपतियों में से किसी एक जितनी संपत्ति नहीं होती।”
जलवायु असमानता, आर्थिक असमानता के समानांतर चलती है और उसी का परिणाम है। अनुमान के अनुसार, केवल 100 कंपनियां औद्योगिक क्रांति के बाद से अब तक के 71 प्रतिशत औद्योगिक ग्रीनहाउस गैसों उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। रिपोर्ट कहती है, “जीवाश्म ईंधन में निवेश का स्वामित्व वैश्विक आर्थिक असमानता के पैटर्न को दर्शाता है और यह नए प्रकार के औपनिवेशिक दोहन का संकेत है।”
रिपोर्ट कहती है कि ऐसे वक्त में जीवाश्म ईंधन में नए निवेश पर वैश्विक प्रतिबंध की मांग तेज हो रही है, तब संपत्तियों और वित्तीय पोर्टफोलियो पर कर लगाना उत्सर्जन घटाने का अधिक प्रभावी तरीका हो सकता है। धन-संपत्ति और उच्च उत्सर्जन उद्योगों में निवेश ही जलवायु संकट के प्रमुख कारण हैं, इसे आधार मानते हुए रिपोर्ट सुझाव देती है कि ऐसे निवेशों पर कार्बन कंटेंट के अनुसार कर लगाया जाए ताकि समानता लाई जा सके।
लुकास चांसेल कहते हैं, “जब आप जीवाश्म ईंधनों पर कर लगाते हैं, तो उसका पूरा बोझ उपभोक्ताओं पर डाल दिया जाता है।” कॉर्नेलिया के अनुसार, “उपभोक्ताओं के पास हमेशा विकल्प या वैकल्पिक साधन नहीं होते, इसलिए यह संक्रमण (ट्रांजिशन) असमान हो जाता है।”
चांसेल कहते हैं, “इसलिए वर्तमान कर प्रणाली विचित्र है। यदि आप निवेशों और वित्तीय पोर्टफोलियो की कार्बन कंटेंट पर कर लगाते हैं, तो आप उत्पादकों को लक्षित करते हैं। इससे निवेश में विविधीकरण को बढ़ावा मिल सकता है।”
रिपोर्ट कहती है, “यदि वित्तीय पोर्टफोलियो की कार्बन इंटेंसिटी पर कर लगाया जाए, तो यह पूंजी प्रवाह को उच्च-कार्बन संपत्तियों से दूर मोड़ने में मदद कर सकता है, विशेष रूप से तब जब जीवाश्म ईंधन के निवेशों पर पूर्ण प्रतिबंध अभी लागू नहीं हुआ है।”


