अनुमान से कहीं अधिक धूल भरा है पृथ्वी का वातावरण: अध्ययन

वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया भर में करीब 1.7 करोड़ मीट्रिक टन धूल के मोटे कण मौजूद हैं। जोकि अमेरिका की पूरी आबादी के वजन से भी ज्यादा है
अनुमान से कहीं अधिक धूल भरा है पृथ्वी का वातावरण: अध्ययन
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आपको हर जगह हवा के साथ उड़ती हुई धूल दिख जाएगी। यह इतनी आम चीज है कि ज्यादातर हम इस पर गौर ही नहीं करते। हां, यदि गर्मियों में कभी इसके कण आंख में पड़ जाएं तो समस्या जरूर खड़ी कर देते हैं। पर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जितना साधारण हम इसे समझते हैं, यह उतनी होती नहीं है। इसका अपना ही एक अलग महत्व है। यह धरती की जलवायु प्रणाली का एक अहम हिस्सा है। जोकि बादलों, सागरों और सूर्य से निकलने वाले रेडिएशन से मिलकर सम्पूर्ण धरा पर जीवन के हर अंश को प्रभावित करती हैं। जिसमें मौसम, वर्षा, जलवायु, यहां तक कि ग्लोबल वार्मिंग तक सब कुछ शामिल है।

हमारे वायुमंडल में दो तरह की धूल होती हैं। जिसे इनके कणों की मोटाई के आधार पर बांटा गया है। पहली महीन या बारीक कणों वाली धूल और दूसरी मोटे कणों वाली धूल। यह दोनों ही शुष्क क्षेत्रों से चलने वाली तेज हवाओं के जरिये उड़ाकर लायी जाती हैं। जहां महीन धूल जल्द ठंडी हो जाती है, क्योंकि वो सूर्य की रोशनी को बिखेर देती हैं। जैसा कि बादल करते हैं। जबकि मोटे कणों वाली धूल वातावरण को गर्म कर देती हैं। जैसे की ग्रीन हाउस गैसें करती हैं। यह धूल मुख्यतः सहारा रेगिस्तान जैसे स्थानों में उत्पन्न होती हैं। चूंकि मोटी धूल की वातावरण को प्रभावित करने में बड़ी अहम भूमिका होती है। इसके साथ ही यह ग्लोबल वार्मिंग के लिए भी काफी हद तक जिम्मेदार होती है। इसको बारीकी से समझना जरुरी हो जाता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया, लॉस एंजेलेस द्वारा किये गए शोध से पता चला है कि धरती पर धूल के मोटे कणों की मात्रा अनुमान से चार गुना अधिक है। वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया भर में करीब 1.7 करोड़ मीट्रिक टन धूल के मोटे कण हैं। जिनका कुल वजन करीब 170 लाख हाथियों के बराबर है। जोकि अमेरिका की पूरी आबादी के वजन से भी ज्यादा है। यह अध्ययन अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस एडवांसेज में छपा है|

इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता अदेयेमी अदेबियी ने बताया कि क्लाइमेट मॉडल्स ने इसकी पूरी मात्रा की ठीक से गणना नहीं की है। यदि हम इसकी सही मात्रा को क्लाइमेट मॉडल में डाल दें तो वातावरण में मौजूद धूल की कुल मात्रा में वृद्धि हो जाएगी। चूंकि वातावरण में मोटे कणों की ज्यादा मात्रा मौजूद है। इसलिए यह हवा से लेकर महासागरों तक पृथ्वी की जलवायु प्रणाली को ठंडा करने की जगह गर्म कर रहे हैं।

पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में भी अहम भूमिका निभाती है धूल 

धूल के यह मोटे कण सूर्य से आने वाले और पृथ्वी की सतह से वापस लौटने वाले विकिरण दोनों को ही अवशोषित कर लेते हैं। इस तरह से यह पृथ्वी की पूरी जलवायु प्रणाली को गर्म कर रहे हैं। इसके साथ ही यह कण हमारे वातावरण की स्थिरता और परिसंचरण को प्रभावित कर रहे हैं। जिसके चलते वातावरण में घटने वाली तूफान जैसी घटनाएं प्रभावित हो सकती हैं।

अदेबियी यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया में एटमोस्फियरिक एंड ओशनिक साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर जैस्पर कोक के साथ मिलकर वातावरण में मौजूद धूल के मोटे कणों की सही मात्रा को जानने के लिए काम कर रहे हैं। उनके अनुसार सबसे नए क्लाइमेट मॉडल के अनुसार धूल के इन कणों की मात्रा करीब 40 लाख मीट्रिक टन  हैं, जबकि हमारी गणना के अनुसार यह करीब 1.7 करोड़ मीट्रिक टन है, जोकि इससे करीब 4 गुना ज्यादा है।

इसके साथ ही उन्हें यह भी पता चल है कि धूल के यह कण अनुमान से कहीं ज्यादा समय तक वातावरण में मौजूद रहते है। साथ ही उनके अनुसार चूंकि यह धूल के कण ज्यादा समय तक वातावरण में रहते हैं, इसलिए यह अपने उद्भव के स्थान से दूर कहीं और जाकर जमा होते हैं। उनके अनुसार उदाहरण के लिए अभी हाल ही में सहारा की धूल हजारों मील दूर कैरिबियन और अमेरिका में पायी गयी थी।

उनके अनुसार रेगिस्तान से चली यह धूल जब महासागरों में मिलती है तो समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर देती है। साथ ही उसके द्वारा अवशोषित की जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को बढ़ा देती है। इसके साथ ही धूल के यह कण सूरज की किरणों और बादलों को भी प्रभावित कर देते हैं बारिश की अवधि और मात्रा में भी अंतर आ जाता है। इसके साथ ही यह वैश्विक तापमान पर भी असर डालती है। ऐसे में इनकी सही मात्रा का आंकलन बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

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