लगातार बढ़ते जलवायु संकट के कारण दुनिया भर में समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है और इनके किनारे रहने वाले लोगों के लिए खतरा बढ़ गया है। यदि अन्य क्षेत्रों की बात करे तो बढ़ता तापमान बिल्कुल विपरीत प्रभाव डाल रहा हैं। जल स्तर गिर रहा है और बड़े पैमाने पर समस्याएं भी पैदा कर रहा है, सभी क्षेत्रों में इसके परिणाम समान रूप से गंभीर हैं। जुस्टिसस लिएबिग यूनिवर्सिटी, गैबेन के शोधकर्ता मैथियास पेंज का मानना है कि जल स्तर में गिरावट पर प्रयाप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
माथियास प्रेंज कहते है कि कैस्पियन सागर को दुनिया की कई अन्य झीलों के द्योतक के रूप में देखा जाता है। कई लोग इस बारे में बहुत कम जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण यह झील नाटकीय रूप से सिकुड़ रही है। शोधकर्ताओं ने बताया कि इसके सिकुड़ने के सबूत उनके द्वारा उपयोग किए गए मॉडल ने दिए हैं। जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की रिपोर्ट भी झीलों का उल्लेख करने में विफल रही है। जिसके कारण इससे प्रभावित क्षेत्रों के लोग ग्लोबल वार्मिंग के राजनीतिक और आर्थिक परिणामों को भुगतने को मजबूर हैं, शोधकर्ताओं ने कहा कि इसे बदलना होगा।
शोधकर्ता कहते है कि हमें इस क्षेत्र में और अधिक अध्ययन और ग्लोबल वार्मिंग के परिणामों की बेहतर समझ की आवश्यकता है। हमारा उद्देश्य समुद्रों और झीलों के लिए जलवायु परिवर्तन के परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है ताकि जिन क्षेत्रों में इस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, वहां इससे निपटने के लिए सही दृष्टिकोण सहित उपयुक्त रणनीति विकसित की जा सके।
अपने आकार के कारण कैस्पियन दुनिया की सबसे बड़ी झील है। यहां पानी के लगभग एक फीसदी खारापन होने के कारण, कैस्पियन को एक 'सागर' नाम दिया गया है। जबकि महासागरों में लगभग एक-तिहाई नमक की मात्रा होती है। कैस्पियन का सबसे बड़ा प्रवाह वोल्गा नदी है और इसका सागर से कोई प्राकृतिक संबंध नहीं है। इसका जल स्तर प्रवाह, वर्षा और वाष्पीकरण के आनुपातिक प्रभावों से निर्धारित होता है। ग्लोबल वार्मिंग से वाष्पीकरण बढ़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप जल स्तर में गिरावट आ रही है। यह शोध कम्युनिकेशन्स अर्थ एंड एनवायरनमेंट नामक में पत्रिका प्रकाशित हुआ है।
कैस्पियन सागर एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय जलाशय है और इसके नमकीन होने के बावजूद, यह एक जैविक और व्यावसायिक केंद्र है। यह कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ईरान, अजरबैजान और रूस से घिरा है। भविष्य में बढ़ते तापमान के आधार पर, इस सदी के दौरान कैस्पियन सागर का जल स्तर 9 से 18 मीटर तक गिर सकता है, अर्थात इसका सतही क्षेत्र 23 फीसदी से 34 फीसदी तक तक सिकुड़ जाएगा। यह न केवल जैव विविधता, विभिन्न प्रजातियों और उनके आवास को प्रभावित करेगा बल्कि इनके गायब होने का खतरा बढ़ जाएगा। जिससे सभी सीमावर्ती देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होंगी, जिनमें बंदरगाह और मछली पालन शामिल हैं। यह शोध विभिन्न अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं जिसमें जुस्टिसस लिएबिग यूनिवर्सिटी, गैबेन से के थॉमस विल्के, यूट्रेक्ट विश्वविद्यालय के फ्रैंक पी. वेसलिंग्ल, नेचुरल बायोडायवर्सिटी सेंटर, नीदरलैंड के लिडेन शामिल हैं।
शोधकर्ताओं का तर्क है कि भविष्य में कैस्पियन सागर का उपयोग वैज्ञानिक शोध के लिए एक उदाहरण के रूप में किया जाना चाहिए, ताकि कुछ क्षेत्रों के गिरते जल स्तर का आकलन किया जा सके। क्योंकि कोई भी राष्ट्र इस तरह की चीजों को अकेले हल नहीं कर सकता है, वे रणनीतियों को विकसित करने और तालमेल बढ़ाने के लिए दुनिया भर में साथ काम करने के प्रस्ताव का सुझाव देते हैं। शोध बताता है कि "अंतरराष्ट्रीय जलवायु कोष" परियोजनाओं और अनुकूलन उपायों के लिए एक संभावना की पेशकश कर सकता है।