जलवायु संकट: 1979 के बाद से लू के दिनों में हुई वृद्धि, आठ की बजाय अब 12 दिन झेलने पड़ते हैं लू के थपेड़े

1979 के बाद से, दुनिया भर में लू 20 फीसदी अधिक धीमी गति से चल रही हैं, जिसका अर्थ है कि अधिक लोग लंबे समय तक लू की चपेट में आ रहे हैं, ऐसा 67 फीसदी अधिक हो रहा है।
1979 से 1983 तक, दुनिया भर में लू के थपेड़े औसतन आठ दिनों तक चलते थे, लेकिन 2016 से 2020 तक यह 12 दिनों तक बढ़ गए, फोटो साभार: आईस्टॉक
1979 से 1983 तक, दुनिया भर में लू के थपेड़े औसतन आठ दिनों तक चलते थे, लेकिन 2016 से 2020 तक यह 12 दिनों तक बढ़ गए, फोटो साभार: आईस्टॉक
Published on

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में लू या हीटवेव की घटनाएं धीमी हो रही हैं और वे बड़े इलाकों में भारी तापमान के साथ अधिक लोगों को लंबे समय तक झुलसा रही हैं।

साइंस एडवांसेज में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, 1979 के बाद से, दुनिया भर में लू 20 फीसदी अधिक धीमी गति से चल रही हैं, जिसका अर्थ है कि अधिक लोग लंबे समय तक लू की चपेट में आ रहे हैं, ऐसा 67 फीसदी अधिक बार हो रहा है। अध्ययन में पाया गया कि लू के दौरान भारी तापमान 40 साल पहले की तुलना में अधिक है और गर्मी का क्षेत्र भी बढ़ गया है।

अध्ययन के मुताबिक, लू पहले भी खतरनाक हो चुकी हैं, लेकिन यह अधिक व्यापक है और न केवल तापमान और क्षेत्र पर गौर करती है, बल्कि भारी गर्मी कितने समय तक रहती है और यह महाद्वीपों में कैसे फैलती है, इस पर भी गौर किया गया है। 

अध्ययन में कहा गया है कि 1979 से 1983 तक, दुनिया भर में लू के थपेड़े औसतन आठ दिनों तक चलते थे, लेकिन 2016 से 2020 तक यह 12 दिनों तक बढ़ गए।

अध्ययन में कहा गया है कि लंबे समय तक चलने वाली लू के थपेड़ों से यूरेशिया विशेष रूप से अधिक प्रभावित हुआ। अध्ययन के अनुसार, अफ्रीका में लू सबसे अधिक धीमी हुई, जबकि उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में समग्र परिमाण में सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई, जो तापमान और क्षेत्र को मापता है।

अध्ययन में स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन लू को कई मायनों में और भी खतरनाक बना देता है। ठीक उसी तरह जैसे ओवन में, जितनी अधिक देर तक गर्मी रहती है, उतनी ही अधिक चीजें पकती हैं, लू के मामले में यहां लोग हैं।

लू धीमी और इतनी धीमी गति से चल रही हैं कि मूल रूप से इसका मतलब है कि वहां लू है और वे लू इस क्षेत्र में लंबे समय तक रह सकती हैं। लू का हमारे मानव समाज पर प्रतिकूल प्रभाव बहुत बड़ा होगा और यह साल-दर-साल बढ़ेगा।

अध्ययन में बताया गया है कि शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर सिमुलेशन आयोजित किया, जिसमें दिखाया गया कि यह परिवर्तन कोयले, तेल और प्राकृतिक गैस के जलने से होने वाली गर्मी को फंसाने वाले उत्सर्जन के कारण थी।

अध्ययन में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बिना एक दुनिया का अनुकरण करके जलवायु परिवर्तन के निशान पाए गए और यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह पिछले 45 वर्षों में देखी गई भीषण लू का उत्पादन नहीं कर सकता है।

अध्ययन मौसम के पैटर्न में होने वाले बदलावों पर भी गौर करता है जो लू को फैलाते हैं। वायुमंडलीय तरंगें जो मौसम प्रणालियों को अपने साथ ले जाती हैं, जैसे कि जेट स्ट्रीम, कमजोर हो रही हैं, इसलिए वे लू को तेजी से नहीं ले जा रही हैं, अधिकांश महाद्वीपों में पश्चिम से पूर्व की ओर नहीं, बल्कि सभी महाद्वीपों में ऐसा देखा जा रहा है।

अध्ययन में कहा गया है कि कई वैज्ञानिकों ने उस बड़ी तस्वीर की प्रशंसा की, जिस तरह से अध्ययनकर्ताओं ने लू की जांच की, जिसमें मौसम के पैटर्न और उनकी दुनिया भर में गतिविधि के साथ असर डालकर, विशेष रूप से वे कैसे धीमी हो रही हैं, दिखाया गया है।

इससे पता चलता है कि कैसे लू तीन आयामों में विकसित होती हैं और अलग-अलग स्थानों पर तापमान को देखने के बजाय क्षेत्रीय और महाद्वीपों में चलती हैं। अध्ययन के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग के सबसे प्रत्यक्ष परिणामों में से एक बढ़ती हुई लू भी है। 

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in