

धराली कस्बे में आपदा के ढाई महीने बाद भी मलबे के नीचे दबे सपनों और अवसाद में डूबे लोगों की कहानियां सामने आ रही हैं
स्थानीय लोग अपने प्रियजनों की तलाश में लगे हैं, जबकि मानसिक अवसाद के कारण एक महिला आत्महत्या कर चुकी हैं
प्रशासन ने जांच शुरू की है और अवसाद पीड़ितों की काउंंसलिंग शुरू कर दी है
पुनर्वास और रोजगार की कमी से लोग गहरे सदमे में हैं
स्थानीय संघर्ष समिति पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाने की मांग कर रही है
आपदा की विभीषिका से तबाह हो चुके उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली कस्बे में उस विनाशलीला के लगभग ढाई महीने बाद भी दूर-दूर तक फैली मलबे की कई फुट मोटी परत को देखकर पहली नजर में यह यकीन करना मुश्किल हो जाता है इसके नीचे एक पूरा कस्बा दफ्न है, जो बीते पांच अगस्त 2025 तक आबाद था, खुशहाल था और चारधाम यात्रा के चलते चहल-पहल से व्यस्त था। लेकिन अब यहां श्मशान सी खामोशी है।
अब यहां सर्दी की शुरुआत होने को है। कुछ ही दिनों में यह पूरा इलाका बर्फ की चादर ओढ़ लेगा, जिसके चलते तबाही के निशान कुछ समय के लिए उस सफेदी से ढक जाएंगे, लेकिन यहां के लोगों के दिलो-दिमाग पर उस महाप्रलय के जो निशान चस्पा हो चुके हैं, उनका छूटना फिलहाल कहीं से भी संभव नजर नहीं आता। पांच अगस्त को धराली में आई आपदा में न जाने कितने ही सपने हमेशा के लिये दफ्न हो गये। आठ से ज्यादा स्थानीय युवाओं की मौत और लोगों के घर, दुकान, होटल तथा सेब के बगीचे तबाह होने के बाद हर ओर सिसकियां, बेबसी और निराशा पसरी हुई है।
यह जानते हुए भी कि लगभग 50-60 फुट मलबे के नीचे ढाई महीने पहले दबे लोगों को निकाल पाना नामुमकिन सा है, फिर भी लोग अपने बेटों, भाइयों को जमींदोज हो चुके घरों के नीचे तलाश रहे हैं।
तबाही का असर इस कदर गहरा गया है कि लोग मानसिक अवसाद का शिकार होने लगे हैं। कुछ दिन पहले एक आपदा पीड़ित महिला सरोजनी देवी ने नदी में कूद कर अपना जीवन खत्म कर लिया।
58 वर्षीय सरोजनी देवी के बेटे प्रदीप से जब हमने इस दुःखद घटना के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि आपदा में उनका घर, होटल, बगीचा और लोन पर खरीदी इनोवा कार सहित सब कुछ तबाह हो गया था। आपदा के बाद सरकार की तरफ से उन्हें पांच लाख रुपये की सहायता राशि मिली थी, लेकिन उस राशि को निकालने से पहले ही बैंक ने कार लोन के एवज में 50 हजार से ज्यादा रुपये काट लिये, जिसके बाद से उनकी मां भारी अवसाद में आ गई थी।
इसी अवसाद के चलते उनकी मां ने उत्तरकाशी में भागीरथी की लहरों में छलांग लगा दी और अपना जीवन खत्म कर लिया। पहले ही सब कुछ खो देने के बाद अब अपने सर से मां का आंचल हट जाने के बाद प्रदीप भी अवसाद में आ चुके हैं। वे कहते हैं, 'मैं भी मां की तरह आत्महत्या कर इस कष्ट से मुक्ति पाना चाहता हूं।'
मानसिक अवसाद की पीड़ा झेलने वाले प्रदीप अकेले युवा नहीं हैं। धराली की आपदा के बाद बहुत से लोगों की मनोदशा बुरी तरह प्रभावित हुई है। ऐसे ही एक और युवा सौरभ पंवार ने हमें बताया कि वे आपदा के बाद मानसिक रूप से इस कदर परेशान हो चुके हैं कि एंटी डिप्रेशन की दवाइयां खाने को मजबूर हैं।
सौरभ पंवार के छोटे भाई गौरव इस आपदा में मरने वाले आठ स्थानीय युवाओं में शामिल थे। सौरभ बताते हैं कि उनके भाई की लाश आज भी इस मलबे के ढेर के नीचे कहीं दबी है। वे कहते हैं, "जिन भी लोगों के परिजनों की लाश अभी तक बरामद नहीं हो पाई, उन सबकी मानसिक स्थिति बहुत खराब है।"
अभी तक केवल एक ही मृतक युवक आकाश का शव बरामद हो पाया है। मृतक आकाश के पिता महावीर सिंह पंवार कहते हैं, "भाग्य ने मुझ पर बस इतनी दया की कि मेरे बेटे का शव मलबे से मिल गया। बाकी लोगों को तो यह भी नसीब नहीं हो पाया।"
कोमल नाम की एक नव विवाहिता के पति भी इस आपदा के शिकार हुए हैं, लेकिन कोमल अभी तक इस बात को स्वीकार नहीं कर पाई है। स्थानीय लोगों ने बताया कि कोमल ने इस बार पति के लंबी आयु के लिए करवाचौथ का व्रत भी रखा था। कुल मिलाकर धराली में हर ओर सैकड़ों दर्दभरी कहानियां बिखरी पड़ी हैं।
एसडीएम भटवाड़ी शालिनी नेगी ने बताया कि धराली में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कैंप कर रहे हैं। डॉक्टरों ने पीड़ितों की काउंसलिंग की है। जो आत्महत्या की बात कही जा रही है, उसकी जांच की जा रही है।
कभी धराली उत्तराखंड के उन कुछ ही समृद्ध गांव में से एक था, जहां पलायन बिल्कुल भी नहीं था। बल्कि यहां के लोगों ने अपने मेहनत से नेपाल और देश के दूसरे राज्यों के लोगों को रोजगार दिया हुआ था। लेकिन आज यहां के अधिकतर युवा बिल्कुल बेरोजगार हो चुके हैं और गहरे सदमे में हैं।
कभी देवदारों के शानदार नक्काशीदार घरों में रहने वाले धराली के आपदा प्रभावित कुछ परिवार अपने रिश्तेदारों के घर रह रहे हैं तो कुछ अस्थाई टेंट में। कुछ लोग उत्तरकाशी में किराए के कमरों में रह रहे हैं। आपदा में अपना सब कुछ गंवा चुके इन लोगों के सामने अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि इनका जीवन वापस पटरी पर कैसे आएगा।
आपदा के बाद स्थानीय लोगों द्वारा एक संघर्ष समिति का गठन किया गया है, जिसने अध्यक्ष सचेंद्र पंवार हैं। सचेंद्र का कहना है कि सबसे पहले आपदा प्राभावितों के पुनर्वास और रोजगार के लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है।
वे कहते हैं, "धराली गांव में एक भी युवा बेरोजगार नहीं था और न ही पलायन के लिए मजबूर था क्योंकि सभी स्वरोजगार कर अपने घर में ही अच्छी-खासी कमाई कर रहे थे। लेकिन अब सब कुछ तबाह होने के बाद हम सभी स्थानीय लोग सड़क पर आ गए हैं।"
पंवार कहते है, "आपदा को अब लगभग तीन महीने बीतने को हैं लेकिन अभी तक स्थानीय व्यापारियों के नुकसान का आकलन और उन्हें दोबारा से बसाने को लेकर कोई भी निर्णय नहीं लिया गया है।"
आपदा के बाद धराली में बहुत से स्थानीय लोग राहत अभियान में भी जुटे हैं। इन लोगों में लक्ष्मी नारायण मंदिर के महंत माधवेंद्र रावत भी हैं। माधवेंद्र रावत का कहना है की असल चुनौती अगली चारधाम यात्रा से पहले लोगों के रोजगार की है। यदि चारधाम यात्रा से पहले लोगों के रोजगार के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए तो हालात और भी बदतर हो जाएंगे।
दरअसल अक्टूबर महीने में चारधाम यात्रा का समापन होने के साथ ही हर्सिल घाटी में सेब का कारोबार चरम पर होता है। सेब बेचने के बाद धराली के अधिकतर लोग शीतकाल में उत्तराकाशी की तरफ अपने दूसरे घरों में रहने चले जाते हैं। फिर मार्च- अप्रैल में चारधाम यात्रा शुरू होने से पहले वापस धराली पहुंच कर कारोबार की तैयारी में जुट जाते हैं। लेकिन इस बार लोगों की चिंता है कि जब अगली बार अप्रैल में बर्फ पिघलना शुरू होगी और चारधाम यात्रा की शुरुआत होगी तो वे धराली लौट कर रोजगार कर भी पाएंगे या नहीं। क्योंकि अब न उनके पास व्यापार है और न ही सेब के बगीचे।
माधवेंद्र बताते हैं, "चारधाम यात्रा तथा सेब की बिक्री से यहां कम से कम 100 करोड़ का रोजगार होता था लेकिन अब सब कुछ उजड़ने से लोग सड़क पर आ गए हैं। ऐसे में लोग चाहते हैं कि उन्हें या तो आस-पास ही किसी सुरक्षित जगह में बसाया जाए या फिर इसी जगह को दुबारा से सांवरा जाए।"
इस सबके बीच प्रशासन के लिए भी धराली का पुनर्निर्माण सबसे बड़ी चुनौती है। स्थानीय व्यापारियों की मांग है कि धराली बाजार का पुनर्निर्माण केदारनाथ की तर्ज पर हो ताकि लोगों को दोबारा रोजगार मिल सके। वहीं दूसरी तरफ वैज्ञानिक भी धराली गांव के इस आपदा में उजड़ चुके बड़े हिस्से में दोबारा बसावट को खतरनाक मान रहे हैं।