
धराली आपदा का एक महीना पूरा होने के मौके पर उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन विभाग ने शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस की। आपदा प्रबंधन सचिव ने माना कि धराली में अब किसी के जिंदा बचने की संभावना नहीं है। राज्य सरकार मॉनसून में लोगों की आजीविका पर पड़े अप्रत्यक्ष प्रभाव के लिए भी मुआवजा दिलवाने की कोशिश कर रहा है, इसके लिए भी केंद्र से मदद मांगी जा रही है।
केंद्र सरकार से मांगे 5702.15 करोड़ रुपये
आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि राज्य ने मानसून के दौरान हुए नुक़सान और अवस्थापना संरचनाओं (सड़क, पुल आदि) को संभावित नुकसान से बचाने के लिए भारत सरकार से 5702.15 करोड़ रुपये की विशेष सहायता मांगी है। गुरुवार को सुमन के साथ प्रमुख सचिव, मुख्यमंत्री आरके सुधांशु ने दिल्ली में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह और एनडीएमए सचिव मनीष भारद्वाज को इस आशय का ज्ञापन दिया था।
सुमन ने बताया कि इस साल प्राकृतिक आपदाओं से एक अप्रैल से 31 अगस्त तक कुल 79 व्यक्तियों की मृत्यु हुई है, 115 लोग घायल हुए हैं तथा 90 लोग लापता हैं। कुल 3953 छोटे, बड़े पशु मारे गए हैं। बताया गया कि आठ सितम्बर केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा गठित एक अंतर-मंत्रालयी टीम उत्तराखण्ड के दौरे पर आएगी जो इस साल आपदाओं से हुई क्षति का स्थलीय आकलन करेगी।
सचिव ने कहा कि नुकसान का ब्यौरा प्रत्यक्ष तौर पर होने वाला नुकसान है। इसके अलावा अप्रत्यक्ष तौर पर भी काफ़ी नुकसान होता है। जैसे- अत्यधिक बारिश की वजह से चार धाम यात्रा रोकने से आजीविका कमाने वाले लोगों की आजीविका पर प्रभाव पड़ता है. राज्य सरकार की कोशिश है कि इन लोगों को भी इनके नुक़सान का मुआवज़ा दिया जाए।
डाउन टू अर्थ ने सचिव विनोद कुमार सुमन से पूछा कि क्या धराली-थराली के लोगों, जिनके होटल, होमस्टे, दुकानें, खेत चले गए हैं को भी मुआवजा मिलेगा। सचिव ने जवाब दिया कि वह प्रयास करेंगे कि इन लोगों को भी मुआवज़ा मिले।
हालांकि राज्य सरकार की खुद अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होने वालों को मुआवजा देने की कोई योजना नहीं है। वह इसके लिए भी केंद्र सरकार से प्रार्थना करेगी और फिर केंद्र सरकार अपने स्तर पर पड़ताल कर कोई फ़ैसला लेगी। अगर केंद्र सरकार ऐसा अप्रत्यक्ष मुआवज़ा देने पर सहमति जताती है तो संभवतः यह देश में पहली बार होगा और इससे भविष्य में किसी भी प्राकृतिक आपदा के बाद दी जाने वाली मुआवज़ा राशि कई गुना बढ़ जाएगी।
उधर, धराली त्रासदी को 5 सितंबर को एक महीना पूरा हो गया। आपदा प्रबंधन विभाग ने 25 अगस्त के बाद से धराली सर्च और रेसक्यू ऑपरेशन्स से संबंधित ब्यौरा जारी करना बंद कर दिया गया था। 24 अगस्त की आखिरी रिपोर्ट में बताया गया कि धराली में एक व्यक्ति की मौत हुई थी और 68 लापता हालांकि बाद में आपदा प्रबंधन विभाग ने लापता लोगों की संख्या में से पांच यह कहकर घटा दिए थे कि उन्हें गलती से पौड़ी और उत्तरकाशी दोनों जगह गिन लिया गया था।
उत्तरकाशी के आपदा प्रबंधन अधिकारी ने 4 सितंबर को डाउन को अर्थ को बताया था कि कुल दो शव बरामद हुए हैं जिनमें से एक की पहचान नहीं हो पाई है और पहचान के लिए उसकी डीएनए जांच करवाई जा रही है। इस तरह धराली में 2 लोगों की मौत हो गई है और 62 लापता हैं।
कैसे होगा अंतिम संस्कार ?
एक महीने बाद कई फुट के मलबे में दबे लोगों के जिंदा रहने की आस न तो अब प्रशासन को है और न ही लोगों को।
डाउन टू अर्थ से आपदा प्रबंधन सचिव ने कहा, “अब तो किसी के जिंदा बचने की संभावना नहीं है. हालांकि उन्होंने कहा कि अब रास्ता खुल गया है और भारी मशीनें धराली पहुंच गई हैं इसलिए पूरी कोशिश की जाएगी कि मलबे से सभी शवों को निकाल लिया जाए।”
उत्तरकाशी आपदा प्रबंधन जन मंच के अध्यक्ष द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने बताया कि धराली गांव के 10-15 लोग ही लापता हैं, स्थानीय लोग धर्म के जानकारों के कहने पर 45 दिन तक इंतजार कर रहे हैं और फिर वह अपने लापता लोगों को मृत मानकर उनका अंतिम संस्कार कर देंगे।