जलप्रलय 2023: शीत रेगिस्तान लद्दाख में पिछले दो दिनों में 10,000 फीसदी से अधिक हुई बारिश

ग्लोबल वार्मिंग के चलते भारी बारिश का होना अब लद्दाख के लिए एक वास्तविकता बन गई है। ऐसे में लद्दाखियों को अब जीने के अपने पारंपरिक तौर-तरीकों को भूलना होगा
This photo posted by Jamyang Tsering Namgyal, Ladakh MP, on Twitter shows a boulder that fell on Leh-Kargil Road near Lamayuru
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लद्दाख के सर्द रेगिस्तान में आठ और नौ जुलाई, 2023 को भारी बारिश हुई, जो वहां होने वाली सामान्य बारिश से 10,000 फीसदी ज्यादा थी। इस बारिश ने ग्लोबल वार्मिंग के चलते भीषण बारिश की आशंकाओं को बढ़ा दिया है। यह घटना पश्चिमी विक्षोभ और वर्तमान में देश भर में सक्रिय मौजूदा मानसूनी प्रणाली के एक दुर्लभ मेल का नतीजा है। इसी संयोग के चलते पूरे उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत में भारी बारिश की घटनांए दर्ज की गई थी।

इस बारे में लेह के निवासी सुशांत गुलेरिया ने डाउन टू अर्थ से हुई अपनी बातचीत में बताया कि, "यहां करीब 24 घंटों तक बारिश हुई, कुछ पुराने घरों में अब रिसाव होने लगा है। यह घर ऐसी बारिश के अनुकूल नहीं हैं।" उनके अनुसार, "लेह शहर के आसपास छोटे-छोटे भूस्खलन हो रहे हैं। यह भारी बारिश लद्दाख के संवेदनशील परिदृश्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है।"

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक 8 जुलाई 2023 को केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में हुई बारिश में 21 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी। विशेष रूप से, कारगिल में 77 फीसदी की कमी थी, जबकि लेह में 8 फीसदी की कमी रिकॉर्ड की गई।

हालांकि सर्द  रेगिस्तान होने के कारण इस क्षेत्र में इतनी कम बारिश होती है कि कमी का प्रतिशत बहुत तेजी से बदल सकता है। कुल मिलाकर, एक जून से छह जुलाई 2023 के बीच, लद्दाख में 4.7 मिलीमीटर (मिमी) बारिश हुई, जो 17 फीसदी अधिक थी। हालांकि एक से आठ जुलाई के दौरान हुई बारिश पांच मिलीमीटर तक बढ़ गई थी। इसके बावजूद वो सामान्य से 21 फीसदी की कमी का संकेत देती है।

वहीं आठ से नौ जुलाई 2023 के बीच सुबह 8:30 बजे लद्दाख में अचानक बारिश में वृद्धि देखी गई। जो सामान्यतः 0.1 मिलीमीटर रहती है उसकी जगह बढ़कर 19.1 मिलीमीटर दर्ज की गई। आंकड़ों की मानें तो यह बारिश सामान्य से 10,000 फीसदी ज्यादा है। इस तरह देखें तो एक से नौ जुलाई 2023 तक कुल 24.1 मिलीमीटर बारिश हुई। हालांकि इस दौरान सामान्य तौर पर 6.5 मिलीमीटर बारिश होती है।

इसी अवधि के दौरान यदि कारगिल में हुई बारिश से जुड़े आंकड़ों को देखें तो वो 21 मिलीमीटर दर्ज किए गए, जबकि इस दौरान सामान्य तौर पर वहां बारिश न के बराबर होती है। वहीं लेह को देखें तो इस अवधि में वहां 18.5 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई जो सामान्य तौर पर होने वाली बारिश (0.1 मिलीमीटर) से कई गुणा ज्यादा है।

यह कोई पहला मौका नहीं है, जब क्षेत्र में ऐसी असामान्य बारिश हुई है। जम्मू कश्मीर स्टेट एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज (एसएपीसीसी) के अनुसार, अगस्त 2010 में लद्दाख में बादल फटने की एक अत्यंत असंभावित घटना घटी थी, जिसके लिए भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम), पुणे के वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहराया था।

बता दें कि लद्दाख, अगस्त 2019 तक पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर का हिस्सा था।

एसएपीसीसी के मुताबिक, "उंचें पहाड़ी क्षेत्रों में उच्च औसत तापमान के साथ, मानसूनी हवाएं लेह तक पहुंच गई हैं।" हाल के वर्षों में इस सर्द रेगिस्तानी क्षेत्र में बर्फ की बजाय कहीं ज्यादा बारिश हो रही है। इससे लद्दाख में रहने वालों के लिए अनगिनत समस्याएं पैदा हो गई हैं। ऐसे में इन लोगों को अब बारिश के अनुकूल ढलना होगा।

लद्दाख में रहने वाले लोग पारंपरिक रूप से अपने घरों को बनाने के लिए धूप में पकी हुई मिट्टी की ईंटों का उपयोग करते हैं। जो ठंड के दौरान घर के अंदरूनी हिस्सों को गर्म रखने में मदद करती हैं। हालांकि हाल के दिनों में, वहां ज्यादा घर सीमेंट से बनाए जा रहे हैं, जो घरों के अंदर ठंड की स्थिति पैदा करते हैं। इनकी वजह से अंदरूनी हिस्सों को गर्म रखना मुश्किल हो जाता है।

एसएपीसीसी का कहना है कि, “चूंकि बूंदाबांदी, बारिश में बदल गई है। ऐसे में इसके अनुरूप डिजाइनों के साथ नई सामग्री के बारे में भी सोचा जाना चाहिए, जो इस बारिश को सहन कर सके। साथ ही वो पकी हुई मिट्टी की ईंटों की तरह ही घर को गर्म रखने में मदद कर सके।" एसएपीसीसी के मुताबिक अब मुख्य चुनौती एक किफायती सामग्री ढूंढना है जो बारिश में होते बदलावों के अनुकूल हो सके और सर्दियों के दौरान घरों को गर्म रखने में मदद कर सके।

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