
जैसे ही स्पेन के शहर सेविल में चौथा इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑन फाइनेंसिंग फॉर डेवलपमेंट (एफएफडी4) शुरू हुआ, हमें पता चल रहा है कि कैसे विकासशील देश भारी कर्ज के बोझ से दबे हुए हैं। यह कर्ज उन्हें आगे बढ़ने से रोक रहा है। दुनिया की मौजूदा खराब वित्तीय व्यवस्था भी उनके लिए पैसा जुटाना मुश्किल बना देती है। ऐसे में इन देशों की सरकारों के पास दो ही रास्ते बचते हैं। या तो वे पुराना कर्ज चुकाएं, या अपने लोगों की बुनियादी जरूरतों पर खर्च करें।
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विकासशील देशों पर कर्ज का बोझ इतना बढ़ गया है कि अब हालात उलट हो गए हैं। पहले अमीर देश गरीब देशों को मदद और संसाधन देते थे, लेकिन अब गरीब देश ही अमीर देशों को ज्यादा पैसा लौटा रहे हैं। वर्ल्ड बैंक की इंटरनेशनल डेट स्टैटिस्टिक्स के अनुसार, जब विकासशील देशों को सहायता की सबसे अधिक आवश्यकता थी, उस समय उन्हें अपने संसाधनों की निकासी करनी पड़ी, जिसे नेट रिसोर्स आउटफ्लो कहा जाता है।
वर्ष 2022 और 2023 में विकासशील देशों ने अपने विदेशी कर्जदाताओं को कुल मिलाकर 38.5 अरब अमेरिकी डॉलर अधिक चुकाए, जबकि उन्हें नए कर्ज के रूप में उससे कम राशि मिली। इसका मतलब है कि इन वर्षों में नेट रिसोर्स ट्रांसफर नकारात्मक रहा।
विकसित देशों स्वयं को विकासशील देशों का 'मददगार' मानते हैं, लेकिन ये आंकड़े उनकी इस सोच की हकीकत बयान करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, संसाधनों का यह उल्टा प्रवाह न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि यह विकासशील देशों में गरीबी और पर्यावरणीय विनाश को लगातार बढ़ावा देने वाला एक प्रमुख कारण भी है। ये देश अपने आर्थिक संसाधनों का त्वरित इस्तेमाल सिर्फ कर्ज चुकाने के लिए कर रहे हैं। हालांकि, जब हम कर्ज के लेन-देन (डेट फाइनेंस) को पूरे तौर पर देखते हैं यानी जो पैसा उधार देने वाले देते हैं और जो विकासशील देश लौटाते हैं तो कई चिंताजनक सच सामने आ रहे हैं। सार्वजनिक ऋण (सॉवरेन डेट) पर शुद्ध अंतरण (नेट ट्रांसफर) का मतलब है — उधार देने वालों ने किसी देश को कितनी रकम दी और उस देश ने बदले में कितना पैसा (मूलधन और ब्याज मिलाकर) वापस चुकाया। दोनों के बीच का फर्क ही नेट ट्रांसफर कहलाता है। किसी विशेष वर्ष में नेगेटिव नेट ट्रांसफर होने का अर्थ है कि उधार लेने वाले देशों ने सार्वजनिक ऋण को चुकाने पर उस राशि से अधिक खर्च किया, जितनी उन्हें ऋण के रूप में प्राप्त हुई।
साल 2023 में दुनिया के तीसरा सबसे बड़े द्विपक्षीय ऋणदाता देश नीदरलैंड ने निम्न और मध्यम आय वाले देशों को बाहरी सार्वजनिक ऋण के रूप में 9.9 अरब अमेरिकी डॉलर दिए, जबकि इन देशों से उसे कर्ज चुकौती के रूप में 17.02 अरब डॉलर प्राप्त हुए। इस तरह बाहरी ऋण पर उसका नेगटिव नेट ट्रांसफर 7.12 अरब डॉलर रहा।
दुनिया के सबसे बड़े द्विपक्षीय ऋणदाता चीन ने 2023 में निम्न और मध्यम आय वाले देशों को 12.07 अरब डॉलर का बाहरी सार्वजनिक ऋण दिया, जबकि इन देशों से उसे 24.14 अरब डॉलर कर्ज चुकौती के रूप में प्राप्त हुए। इसका मतलब है कि चीन का नेगेटिव नेट ट्रांसफर 12 अरब डॉलर रहा।
अक्सर, ऋणदाता ऐसे ऋण तंत्रों का भी उपयोग करते हैं, जो किसी देश की प्राकृतिक संसाधनों से होने वाली निर्यात आय को ऋण चुकाने से जोड़ देते हैं।
उदाहरण के लिए, चाड अपने बाहरी ऋण का लगभग एक-तिहाई यानी 1.45 अरब अमेरिकी डॉलर स्विट्जरलैंड की तेल कंपनी ग्लेनकोर को देता है। वर्ष 2020 में चाड ने जी20 कॉमन फ्रेमवर्क के तहत अपने ऋण के पुनर्गठन की मांग की थी। नवंबर 2022 में एक रीप्रोफाइलिंग समझौता हुआ, जिसके तहत ऋण चुकाने के लिए अब भी तेल राजस्व का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन भुगतान की समय-सीमा को 2024 के बाद तक बढ़ा दिया गया है, जिससे देश को अस्थायी राहत मिली है।
इसी तरह, जाम्बिया, जिसकी निर्यात आय तांबे (कॉपर) पर निर्भर है, 2020 में बाहरी ऋण को चुकाने में चूक कर बैठा, क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण उसका निर्यात प्रभावित हुआ था। इसके बाद उसे निजी और द्विपक्षीय ऋणदाताओं से यह दबाव झेलना पड़ा कि वह तांबे के निर्यात से प्राप्त आय को ऋण चुकाने के लिए प्राथमिकता दे।
इसके अतिरिक्त, 2021 में जाम्बिया की एक सरकारी खनन कंपनी ने ग्लेनकोर के प्रति 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर का ऋण भी विरासत में ले लिया, जब उसने मोपानी कॉपर माइन्स पर पूर्ण नियंत्रण हासिल किया। इस समझौते के तहत ऋण का भुगतान तांबे की बिक्री से होने वाली आय के हिस्से से किया जाना था।
इस व्यवस्था ने यह सुनिश्चित किया कि जाम्बिया की तांबे से होने वाली आय का बड़ा हिस्सा देश से बाहर चला जाए।
इस तरह के उदाहरण यह दर्शाते हैं कि कैसे विकासशील देशों से संसाधनों का दोहन, ऋण चुकौती के नाम पर, एक व्यवस्थित ढंग से किया जा रहा है।