आवरण कथा: संवेदनशील इलाकों में कितनी कारगर है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना?

जलवायु के लिहाज से ज्यादा संवेदनशील क्षेत्रों के किसानों को फसल बीमा के प्रीमियम पर करना पड़ता है ज्यादा भुगतान
आवरण कथा: संवेदनशील इलाकों में कितनी कारगर है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना?
इलस्ट्रेशन: योगेन्द्र आनंद / सीएसई
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तीस सितंबर 2024 तक के आंकड़ों के हिसाब से भारत में 2024 के 274 दिनों में चरम मौसम की 255 घटनाएं दर्ज की गईं, जिससे 32 लाख हेक्टेयर का फसल-क्षेत्र प्रभावित हुआ। 2023 और 2022 के 365 दिनों में देश में क्रमशः 318 और 314 दिन ऐसे रहे, जिनमें चरम मौसम की घटनाएं हुईं। फसल के नुकसान की स्थिति में उसका बीमा किसानों के लिए महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच है। भारत की प्रमुख, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) चरम मौसम की घटनाओं के खिलाफ किसानों का बीमा करने में कैसा प्रदर्शन कर रही है?

आधिकारिक तौर पर देश के 573 खेती वाले ग्रामीण जिलों में से आधे से अधिक (54 फीसदी) या 310 जिलों को जलवायु परिवर्तन के कारण “बहुत ज्यादा” या “उच्च” जोखिम का सामना करना पड़ता है। करीब 19 फीसदी यानी 109 जिले, जलवायु के खतरों के लिहाज से “बहुत ज्यादा” और 35 फीसदी यानी 201 जिले “ज्यादा” जोखिम वाली श्रेणी में शामिल हैं। केवल दस फीसदी यानी 59 जिले ऐसे हैं, जिनमें ऐसा खतरा कम या बहुत कम है। बाकी 36 फीसदी (204 जिले) मध्यम श्रेणी में आते हैं।

2016 के बाद से पीएमएफबीवाई का लक्ष्य है कि किसी प्राकृतिक आपदा, कीड़ों या बीमारियों से नुकसान होने की हालत में सूचीबद्ध फसलों के लिए किसानों को बीमा कवरेज और आर्थिक मदद दी जाए। इसमें निजी स्तर पर किसानों को ओलावृष्टि, भूस्खलन, बाढ़ और जंगल की आग जैसी स्थानीय आपदाओं के साथ-साथ चक्रवात, भारी बारिश और ओलावृष्टि से फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान के लिए शामिल किया गया है।

पीएमएफबीवाई के 20 दिसबंर 2024 तक के आंकड़ों के हिसाब से 2023 के खरीफ के मौसम के दौरान 2.41 करोड़ किसान फसल बीमा योजना के दायरे में आए थे, यह आंकड़ा 2018 के खरीफ मौसम के दौरान बीमा के दायरे में आने वाले किसानों की संख्या से 11.7 फीसदी ज्यादा था।

वहीं 2023 में रबी के मौसम में इन पांच सालों के दौरान फसल बीमा के दायरे में आने वाले किसानों की तादाद में साढ़े आठ फीसदी की कमी आई। 2023 में खरीफ के मौसम में बीमाकृत क्षेत्र भी सीमित रूप से 15 फीसदी बढ़ा और रबी में पांच फीसदी कम हो गया। हालांकि, इस अवधि के दौरान फसल बीमा के लिए किसानों के आवेदनों में खरीफ के मौसम के दौरान 180 फीसदी और रबी के मौसम के दौरान 150 फीसदी की भारी वृद्धि देखी गई।

इस दौरान कुल जुटाए गए प्रीमियम में भी बढ़त हुई जो खरीफ की फसल के दौरान 20 फीसदी और रबी की फसल के दौरान 16 फीसदी बढ़ गया। हैरत में डालने वाली बात यह है कि 2023 में खरीफ की फसल के दौरान भुगतान किए जाने वाले कुल दावे 26 फीसदी घट गए, वह भी तब जब बीमा का लाभ पाने वाले किसानों की तादाद 16 फीसदी बढ़ गई। रबी के दौरान भुगतान किए जाने वाले दावे 63 फीसदी घटे और लाभ पाने वाले किसानों की तादाद भी 68 फीसदी कम हो गई।

2023 में खरीफ की फसल के दौरान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में शामिल करीब 2.15 करोड़ किसानों के आंकड़ों के विश्लेषण के मुताबिक, इनमें से 54 लाख यानी 23.37 फीसदी बहुत ज्यादा जोखिम वाले जिलों के थे, करीब 78 लाख यानी 36.15 फीसदी ज्यादा जोखिम वाले जिलों के और 87 लाख यानी 40. 48 फीसदी मध्यम से कम और बहुत कम जोखिम वाले जिलों के थे।

यह साफ है कि प्रति किसान कुल प्रीमियम “बहुत ज्यादा” जोखिम वाले जिलों में अधिक है, उसके बाद “ज्यादा” जोखिम वाले जिलों में और सबसे कम “मध्यम” से कम और “बहुत कम” जोखिमवाले जिलों में है। जोखिम वाले जिलों की तीनों श्रेणियों में विभिन्न राज्यों का योगदान साफ तौर पर अलग- अलग रहता है।

इसका मतलब है कि राज्य सरकारें एक औसत आधार पर जलवायु के लिहाज से “बहुत ज्यादा” या “ज्यादा” जोखिम वाले जिलों के लिए ज्यादा प्रीमियम का भुगतान करती हैं लेकिन उम्मीदों के विपरीत सबसे ज्यादा संवेदनशील क्षेत्रों के किसानों द्वारा चुकाया जाने वाला प्रीमियम भी सबसे ज्यादा है।

यह सबसे अधिक “बहुत ज्यादा” जोखिम वाले और उसके बाद, “ज्यादा” जोखिम वाले क्षेत्रों में है। एक औसत के हिसाब से “बहुत ज्यादा” जोखिम वाले जिले का एक किसान “मध्यम से कम” और “बहुत कम” जोखिम वाले जिले के किसान से लगभग 70 फीसदी ज्यादा प्रीमियम का जबकि “ज्यादा” जोखिम वाले मिले के किसान से 60 फीसदी ज्यादा प्रीमियम का भुगतान करता है।

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