पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में मूंगे की चट्टानें 2060 तक ही रह सकती हैं जिंदा: अध्ययन

जब तक दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम नहीं किया जाता और बड़े पैमाने पर बढ़ते तापमान पर लगाम नहीं लगती है, तब तक उनका अस्तित्व उस तारीख से आगे नहीं बढ़ सकता है
मूंगे का पोसिलोपोरा वंश,  फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, फिलिप बोरजोन
मूंगे का पोसिलोपोरा वंश, फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, फिलिप बोरजोन
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बढ़ता तापमान दुनिया भर में मूंगे की चट्टानों के नुकसान को बढ़ा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कुछ मूंगे अपने साथ रहने वाले शैवालों को बदलकर गर्मी के प्रति अपनी सहनशीलता को बढ़ा रहे हैं। शैवाल प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से उन्हें जीने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करते हैं।

जीव विज्ञानी एना पलासियो-कास्त्रो ने कहा कि, अध्ययन के परिणाम से पता चलता है कि पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में कुछ चट्टानें, जिनमें पनामा, कोस्टा रिका, मैक्सिको और कोलंबिया के प्रशांत तट शामिल हैं, 2060 के दशक के दौरान मूंगे की चट्टानों के आवरण को भारी मात्रा में बनाए रखने में सक्षम हो सकते हैं।

हालांकि, इसे इन मूंगों के लिए अच्छी खबर के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन जब तक हम दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम नहीं करते हैं और बड़े पैमाने पर बढ़ते तापमान पर लगाम नहीं लगाते हैं, तब तक उनका अस्तित्व उस तारीख से आगे नहीं बढ़ सकता है। 

पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतही मूंगे की चट्टानें मुख्य रूप से पोसिलोपोरा वंश के मूंगे की शाखाओं से बनी होती हैं, जो इस क्षेत्र में मूंगे की चट्टानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। सूक्ष्म शैवाल अपने ऊतकों को प्रकाश में बढ़ाते हैं ताकि मूंगे को बढ़ने के लिए ऊर्जा पैदा करने में मदद मिल सके।

इन साथ में जीने वाले शैवाल के नुकसान के कारण मूंगा सफेद हो जाता है या इसे ब्लीचिंग भी कहते है। मूंगा अपनी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करता है, जो अक्सर घातक साबित हो सकता है।

यह समझने के लिए कि कैसे मूंगे ने गर्मी के तनाव के प्रति अपनी सहनशीलता में सुधार किया, शोधकर्ताओं ने पनामा के कोरल रीफ-मॉनिटरिंग के 40 से अधिक वर्षों के आंकड़ों की जांच की। उन्होंने 1982-1983, 1997-1998 और 2015-2016 में तापमान, मूंगे के आवरण, विरंजन और मृत्यु दर के आंकड़ों का विश्लेषण किया, साथ ही अंतिम दो वर्षों के दौरान शैवालों के साथ में जीने वाले समुदाय के आंकड़ों की भी तुलना की।

विश्लेषण से पता चला है कि 1982-83 की लू या हीटवेव ने मूंगे की चट्टानों के इलाके को काफी कम कर दिया था। लेकिन 1997-98 और 2015-16 के अल नीनो के प्रभाव हल्के थे, विशेष रूप से पोसिलोपोरा वंश के मूंगे के लिए। यह कभी- कभार फूलगोभी मूंगे के रूप में भी जाना जाता है। यह पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख तौर पर फैला हुआ है।  

अध्ययनकर्ताओं ने यह भी पुष्टि की कि भीषण समुद्री गर्मी के दौरान, गर्मी को सहन करने वाले शैवाल ड्यूरसडीनियम ग्लाइनी मूंगे के इस विशेष वंश में तेजी से सामान्य हो जाते हैं, जिससे उन्हें ऊंचे तापमान की अवधि का बेहतर सामना करने में मदद मिलती है।

भविष्य के गर्मी के तनाव के जलवायु अनुमानों के साथ चट्टानें जो मुख्य रूप से पोसिलोपोरा मूंगे से बनी थीं और जिन्होंने इस गर्मी सहने वाले शैवाल की मेजबानी की थी। वर्तमान के दूसरे भाग में मूंगे से घिरे इलाकों  के अधिक स्तर को जीवित रहने और बनाए रखने के लिए बेहतर ढंग से मदद कर सकती हैं। सदी, यह दर्शाता है कि कुछ मूंगे की प्रणालियां पहले की तुलना में गर्मी से सही तरीके से निपट सकते हैं।

अध्ययनकर्ता एंड्रयू बेकर ने कहा, इस अध्ययन से पता चलता है कि कुछ असामान्य चट्टानें हैं जो साथ में जीने में फेरबदल करने की क्षमता के कारण कई दशकों तक जीवित रहने में सक्षम हो सकती हैं। बेकर, रोसेनस्टील स्कूल में समुद्री जीव विज्ञान और पारिस्थितिकी के प्रोफेसर हैं।

उन्होंने कहा, हम यह नहीं सोचते हैं कि अधिकांश चट्टानें इस तरह से जीवित रहने में सफल होंगी, लेकिन इससे पता चलता है कि हमारी वर्तमान चट्टानों के अवशेष हमारे विचार से अधिक समय तक बने रह सकते हैं। मूंगे की चट्टानें अविश्वसनीय रूप से बहुमूल्य प्राकृतिक संपत्ति हैं, तटीय सुरक्षा और मत्स्य पालन में अहम भूमिका निभाते हैं। कई तटीय और स्थानीय लोगों को फायदा पहुंचाती हैं। यह अध्ययन प्रोसीडिंग्स ऑफ दि नेशनल अकादमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुआ है।

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