कॉप29: विकासशील देशों की तरफ से भारत ने मांगे 1.3 ट्रिलियन डॉलर, अभी हैं चुनौतियां अपार
अजरबैजान के बाकू शहर में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के (यूएनएफसीसीसी) के 29वें शिखर सम्मेलन (कॉप29) को "द फाइनेंस कॉप" नाम दिया गया है। इसमें देशों के वार्ताकार 2025 से लागू होने वाले न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल (एनसीक्यूजी) को अंतिम रूप देने के लिए चर्चा कर रहे हैं। एनसीक्यूजी का उद्देश्य विकासशील देशों को प्रभावी जलवायु कार्रवाई के लिए आवश्यक वित्त प्रदान करना है।
पहले दिन ड्राफ्ट पर विवाद
सम्मेलन के पहले दिन, जी-77 और चीन ब्लॉक (134 विकासशील देशों का समूह) ने सम्मेलन में सह-अध्यक्षों द्वारा प्रस्तुत किए ड्राफ्ट को ठोस न मानते हुए खारिज कर दिया। यह ड्राफ्ट पिछले दो वर्षों की चर्चाओं पर आधारित था और इसमें विभिन्न देशों के विचारों को शामिल किया गया था। लेकिन जी-77 और चीन ने आरोप लगाया कि उनके विचारों को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया गया।
नए ड्राफ्ट की विशेषताएं
सह-अध्यक्षों ने वार्ता के बाद एनसीक्यूजी के मसौदे का संशोधित करके प्रस्तुत किया। यह 34 पेज का दस्तावेज था।
विकासशील देशों ने इस पर काम करने की सहमति तो दी, लेकिन शर्त रखी कि उनके सुझाए गए विकल्प हटाए या बदले न जाएं।
ड्राफ्ट में विकासशील देशों द्वारा 1.3 ट्रिलियन डॉलर सालाना जलवायु वित्त की मांग की। यह मांग समान विचारधारा वाले विकासशील देशों की तरफ से भारत ने रखी। इसके अलावा अधूरी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने, और जलवायु वित्त को अनुदान-आधारित व ऋण-मुक्त बनाने जैसे प्रावधान शामिल थे। इसमें पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9 (विकसित देशों से वित्त प्रावधान) का भी उल्लेख था।
जलवायु न्याय और पारदर्शिता
नए ड्राफ्ट में जलवायु न्याय को प्राथमिकता दी गई। इसमें यह स्पष्ट किया गया कि जलवायु वित्त में क्या गिना जाएगा और क्या नहीं (जैसे बाजार दर पर दिए गए ऋण या जीवाश्म ईंधन वित्त को बाहर रखा गया)।
पारदर्शिता पर चर्चा
पेरिस समझौते के अनुच्छेद 13 के संवर्धित पारदर्शिता ढांचे (ईटीएफ) पर केंद्रित रही। इसे जलवायु वित्त रिपोर्टिंग और निगरानी का मुख्य तंत्र माना जा रहा है।
सामंजस्य की चुनौतियां
सम्मेलन में अब तक सुलभता, पारदर्शिता और मानवाधिकार जैसे आसान मुद्दों पर प्रगति हुई है। लेकिन वित्त की कुल राशि, स्रोत, और योगदानकर्ताओं के चयन जैसे मुख्य विषयों पर वार्ता लंबित है।
कॉप29 में एक महत्वाकांक्षी परिणाम प्राप्त करने के लिए इन जटिल मुद्दों पर सहमति आवश्यक होगी। हालांकि, मौजूदा गतिरोध को देखते हुए यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य प्रतीत होता है।