कॉप29: जलवायु वित्त पोषण पर अमीर व विकासशील देशों के बीच तकरार जारी

आखिरी दिन जलवायु वित्त पोषण के लिए रूप में सालाना 250 अरब डॉलर का प्रस्ताव रखा गया विकासशील देश 1300 अरब डॉलर की मांग कर रहे हैं
Photo: X@COP29_AZ
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बाकू में आयोजित कॉप29 जलवायु सम्मेलन के अन्तिम दिन वार्ताकारों के समक्ष एक नए समझौते का मसौदा पेश किया गया। इसमें सम्पन्न देशों से जलवायु चुनौतियों से जूझ रहे विकासशील देशों के लिए हर साल 250 अरब डॉलर की सहायता धनराशि मुहैया कराने का आग्रह किया गया। हालांकि विकासशील देश 1300 अरब डॉलर की मांग पर अड़े हैं। यही वजह है कि तय दिन 22 नवंबर 2024 को कॉप का समापन नहीं हो पाया। उम्मीद है कि 23 नवंबर को समापन होगा।

इस सालाना राशि के जरिए जरूरतमन्द देश वैश्विक तापमान (ग्लोबल वार्मिंग) में वृद्धि के दुष्प्रभावों से निपटने और स्वच्छ, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की दिशा में तेजी से आगे बढ़ने में सक्षम होंगे।

साथ ही, प्रस्ताव में आग्रह किया गया है कि जलवायु वित्त पोषण के लक्ष्य को वर्ष 2035 तक 1,300 अरब डॉलर तक पहुंचाना होगा, हालांकि इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि इस रकम का इंतजाम किस तरह किया जाएगा। यह राशि अनुदान, ऋण के जरिये या फिर निजी सैक्टर की ओर से दी जाएगी?

प्रस्ताव पर नाराजगी

नागरिक समाज के प्रतिनिधियों व जलवायु कार्यकर्ताओं ने इस प्रस्ताव पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। एशियाई क्षेत्र के एक संगठन की लिडी नैकपिल ने यूएन न्यूज से बातचीत में भी अपनी निराशा जताई। उन्होंने कहा कि जलवायु वित्त पोषण को ऋण का रूप नहीं दिया जाना चाहिए, चूंकि इससे विकासशील देशों का कर्ज का बोझ बढ़ेगा।

उन्होंने बताया कि विकासशील देशों को तत्काल जलवायु कार्रवाई करने और अपने लोगों तक आवश्यक सेवाएं पहुंचाने में सबसे बड़ी बाधा, उन पर मंडराने वाला कर्ज का दबाव है।

वहीं, जलवायु कार्रवाई नैटवर्क के जैकोबो ओचारन ने सभी विकासशील देशों से आग्रह किया है कि वार्ता के दौरान अपनी मांगों पर मज़बूत रुख अपनाएं, चूंकि यह मसौदा प्रस्ताव बहुत खराब है।

खास बात यह है कि कॉप29 को इस बार जलवायु वित्त पोषण का कॉप कहा गया है, चूंकि इस सम्मेलन में एक नए वैश्विक जलवायु समझौते पर सहमति की सम्भावना है, जिससे जलवायु कार्रवाई के लिए वित्तीय सहायता को मजबूती दी जाएगी।

इससे पहले, हर वर्ष विकासशील देशों को 100 अरब डॉलर मुहैया कराने पर समझौता रहा है, मगर इसकी अवधि 2025 में समाप्त हो रही है।

विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु कार्रवाई के लिए 1,000 अरब डॉलर से 1,300 अरब डॉलर की धनराशि की आवश्यकता होगी। इस रकम के जरिये जलवायु प्रभावों के कारण होने वाली हानि व क्षति से निपटने में जरूरतमन्द देशों को मदद दी जाएगी। उनके लिए बचाव, अनुकूलन उपाय किए जाएंगे और स्वच्छ ऊर्जा की नई प्रणालियों का निर्माण किया जाएगा।

पिछले सप्ताह, इस नए लक्ष्य के समर्थन में, बहुपक्षीय विकास बैंकों ने निम्न- और मध्य-आय वाले देशों के लिए जलवायु मद में वित्तीय सहायता को मजबूती देने की घोषणा की थी। इसे 2030 तक 120 अरब डॉलर तक पहुंचाए जाने का लक्ष्य है और निजी सैक्टर से 65 अरब डॉलर जुटाए जाएंगे। इसके स्तर को फिर 2035 तक बढ़ाए जाने का प्रयास किए जाएगा।

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