कॉप29 समझौता: भारत ने जताई कड़ी आपत्ति, विशेषज्ञों ने कहा, 300 अरब डॉलर जुटाना भी अनिश्चित

उम्मीद जताई गई है कि ब्राजील में अगले साल होने वाले काप30 में एक सकारात्मक हल निकले
Photo: Joel Michael / CSE
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कॉप29 समझौत को भारत की प्रतिनिधि इकोनमिक अफेयर्स विभाग में सलाहाकर चांदनी रैना ने स्वीकारने पर आपत्ति जताई और कहा, ‘मुझे खेद है कि यह डाक्यूमेंट (समझौता) एक भ्रम से अधिक कुछ नहीं है। हमारे विचार में यह हम सबके सामने खड़ी विशाल चुनौती का सामना नही कर सकेगा। इस कारण हम इस डाक्यूमेंट का समर्थम नहीं करते हैं।’

क्लाइमेट ट्रेंडस की निदेशक आरती खोसला ने कहा, ‘सौ अरब डालर सालाना के स्थान पर नया जलवायु वित्त पोषण (क्लाइमेट फाइनेंस) लक्ष्य विकसित देशों से पैसा एकत्र कर पाने की मुश्किलों से घिरा है। सभी स्रोतों से 2035 तक 300 अरब डालर जुटाना भी अनिश्चित और अस्पष्ट है लेकिन फिर भी विश्व में बढ़ रहे तनावके बीच सर्वश्रेष्ठ उपाय है।

फाइनल एग्रीमेंट पर भारत ने आपत्ति की है। धन जुटाने के लिहाज से यह अपर्याप्त है और कड़वी गोली निगलने के समान है। हालांकि कम विकसित देशो के लिए धन की व्यवस्था करने का कदम थोड़ी प्रगति वाला है। कुछ देशों के लिए जलवायु परिवर्तन जीवन और मृत्यु का सवाल है। ’

एक प्रेस बयान में टेरी में अर्थ साइंस और क्लाईमेट चेंज के डिस्टिंग्सिश्ड फेलो और आईपीसी एआर6 डब्लूजी3 के लेखक दीपक दासगुप्ता कहते हैं, ‘300 अरब डॉलर पर रजामंदी स्वागतयोग्य है यदि यह ग्रांट या अत्यधिक रियायत वाले धन के रूप में हो न कि मल्टी डेवलपमेंट बैंक या निजी क्षेत्र से लोन के रूप में। दूसरी बात, यदि 1300 अरब डॉलर डालर का लक्ष्य टिका रहता है तो स्वागयोग्य है।’

अगली फऱवरी तक अधिकांश विकसित देशों को आगे बढ़कर ऊर्जा के क्षेत्र में काम करना होगा। काप29 का परिणाम दुनिया भर में स्टाक मार्केट, बोर्डरूम और सरकारी विभागों में हो रहे फैसलों को समर्थन देने का भी स्पष्ट संकेत देता है।

बाकू में यूनाईटेड किंगडम और ब्राजील ने बहुत मजबूत राष्ट्रीय क्लाईमेट प्लान सामने रखे। जी20 देशों ने इस बात का इशारा किया कि वे अंतर्राष्ट्रीय फाइनेंशियल सिस्टम और टैक्स प्रदूषकों को सुधारने की जरूरत को समझते हैं ताकि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए अधिक धन की व्यवस्था की जा सके।

एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि मल्टी डेवलपमेंट बैंकों का अनुमान है कि वे 2030 तक हर साल 120 बिलियन डालर की रकम निम्न और मध्यम आय वाले देशों को दे सकेंगे जिसमें जलवायु अनुकूलन के लिए 42 अरब डालर की रकम भी शामिल है। निजी क्षेत्र से भी 65 अरब डालर की रकम की उम्मीद है। बिना रेटिंग गिराए इस रकम में 480 अरब डालर तक ले जाने की कोशिश बेमानी ही साबित होगी।

विश्व में अब जीवाश्म ईंधन की तुलना में दोगुना से अधिक धन स्वच्छ ऊर्जा पर लग रहा है। सोलर पीवी में निवेश अब अन्य इस तरह की तकनीकी में हो रहे निवेश से अधिक है। स्वच्छ ऊर्जा अब जीवाश्म ईंधन से दोगुनी अधिक गति से बढ़ रही है और इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार 2030 तक इसकी मांग चरम पर होगी। 

जीवाश्म ईंधन की पैरोकारी करने वाले लॉबीस्ट ने कॉप29 में भी समझौते की राह बाधित करने की कोशिश की लेकिन जो वह करना चाहते थे, उसमें सफल नहीं रहे। बातचीत रोकी ताकि प्रगति न हो और जलवायु परिवर्तन से हो रहे खतरे से निपटने की दुनिया की कोशिश का कीमती समय खराब किया। वह भले ही असफल रहे लेकिन फिर भी भविष्य में यह प्रगति कराने के लिए उनके द्वारा बनाए गए अवरोध को खत्म करना होगा।

उम्मीद जताई गई है कि ब्राजील में अगले साल होने वाले काप30 में एक सकारात्मक हल निकले और विश्व में इस बढ़ती समस्या के समाधान के लिए धन की व्यवस्था हो। ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा ने इसे परिवर्तनकारी कॉप कहा है और उनके पास मौका होगा कि वह काप30 को एक परिणाम देने वाला कार्यक्रम बनाएं।

उत्सर्जन अब भी गलत दिशा में ही हो रहे हैं और जब दुनिया में बीते 20 साल में  चरम मौसमी घटनाओं के कारण करीब पांच लाख लोगों की मौत हो चुकी है और इनका कारण जलवायु परिवर्तन बताया जा रहा है तब लगातार बिगड़ रहे मौसम से दुनिया को हर साल 227 बिलियन डालर का नुकसान हो रहा है।

अब ये फैसले आगे की चर्चा के लिए बान और बेलम तक जाएंगे। सरकार की महत्वाकांक्षा की असली परीक्षा 2025 में होगी जब जीवाश्म ईंधन में कमी के लिए नेशनल क्लाईमेट प्लान पर अमल की बात होगी। यूके ने लक्ष्य ऊंचा रखा है-1990 के स्तर से 2035 तक 81 प्रतिशत की कमी। अन्य बड़ी इकोनमी को भी इसी तरह करने की जरूरत है। काप29 में बरसों से लंबित चल रहे गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट कार्बन मार्केट्स पर रजामंदी बनी। हालांकि विशेषज्ञों को अभी संदेह है। कार्बन मार्केट वाच ने आर्टिकल 6.2 को अपारदर्शी और अत्यंत खतरनाक बताते हुए इसे फ्री फार आल करने वालों के लिए टेलर मेड कहा है।

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