कॉप 27: पहली बार कृषि एवं खाद्य प्रणाली पर होगी चर्चा, ग्रीनवाशिंग से दूर रहने की सलाह

ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन की वजह से फसलों को बड़ा नुकसान हो रहा है, तब कॉप-27 में कृषि व खाद्य प्रणाली पर बातचीत काफी सामयिक है
फोटो: यूएनएफसीसीसी
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जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के पार्टियों के सम्मेलन (कॉप 27) में पहली बार खाद्य प्रणाली और कृषि पर चर्चा होगी। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ), सीजीआईएआर और द रॉकफेलर फाउंडेशन द्वारा इसकी मेजबानी की जाएगी।

खास बात यह है कि यह चर्चा ऐसे समय में हो रही है, जब यूरोप, अमेरिका और अफ्रीका भीषण सूखे के दौर से गुजर रहे हैं। भारत में भी गेहूं की फसल को लू या हीटवेव ने प्रभावित किया और पाकिस्तान और चीन में बाढ़ और सूखा सभी इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि चरम मौसम की घटनाओं से खाद्य उत्पादन किस तरह खतरे में है।

35 करोड़ से अधिक किसानों और उत्पादकों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों ने सात नवंबर को दुनिया भर के नेताओं को एक खुला पत्र लिखा था और चेतावनी दी थी कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा खतरे में है, इसलिए सरकारों को छोटे पैमाने पर कृषि उत्पादन के लिए कोष का इंतजाम करना होगा और कम लागत वाली खेती को बढ़ावा देना होगा। 

कृषि, एक गायब कड़ी

यह सही है कि कृषि जलवायु परिवर्तन का शिकार है। लेकिन यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के एक तिहाई से अधिक के लिए भी जिम्मेदार है। बावजूद इसके, किसी भी कॉप में खाद्य प्रणालियों को व्यापक रूप से बातचीत नहीं की गई। अधिकांश देशों की जलवायु योजनाओं में खाद्य प्रणालियों पर कार्रवाई करने की योजना शामिल नहीं है।

यूएनएफसीसीसी के तहत कृषि और खाद्य सुरक्षा पर केंद्रित एकमात्र कार्यक्रम कृषि पर कोरोनिविया संयुक्त कार्य (केजेडब्ल्यूए) था, जिसे 2017 में जर्मनी के बॉन में कॉप 23 में स्थापित किया गया था।

केजेडब्ल्यूए को तब से कॉप में खाद्य प्रणाली पर चर्चा के लिए औपचारिक तंत्र माना जाता है। इसने ग्लासगो में हुए कॉप-26 में कुछ कार्यक्रम आयोजित किए, लेकिन हमेशा की तरह इसकी आवाज दब गई।

खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने अपने एक बयान में कहा, "खाद्य और कृषि से संबंधित जलवायु संकट के समाधान के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में पहली बार कॉप एजेंडे के केंद्र में कृषि प्रणालियों के परिवर्तन को रखेगा।"

अगले दो हफ्तों के दौरान चर्चाओं में अफ्रीका में आसानी से ढलने वाली कृषि के लिए अनुकूलन, शुष्क भूमि के लिए जलवायु सुरक्षा, वैश्विक खाद्य संकट के लिए खाद्य प्रणालियों की कमजोरी, संघर्ष और व्यापार में नुकसान और कम उत्सर्जन जलवायु में बदलाव के अनुसार ढलने वाली रणनीतियां शामिल हैं।

शोधकर्ता श्वेता सैनी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि "पिछले एक साल में हमने फसल उत्पादन पर साफ असर देखा है। इस साल, दुनिया इस विचार के प्रति जाग गई है कि कृषि में हमारे पास जो बचा है, वह वास्तव में मौजूद नहीं है। सैनी, कृषि और नीति शोधकर्ता और आर्कस पॉलिसी रिसर्च में प्रमोटर-निदेशक हैं।

उन्होंने कहा “हमने सोचा था कि भारत में, हमें चावल और गेहूं की कभी कमी नहीं होगी। लेकिन इस साल इन दोनों फसलों पर जलवायु परिवर्तन का असर साफ तौर पर देखा गया। इसलिए, कॉप-27 में यह चर्चा बहुत सामयिक है"।

विशेषज्ञ इस क्षेत्र से बड़े पैमाने पर उत्सर्जन के लिए औद्योगिक कृषि को दोष देते हैं और कृषि पारिस्थितिकी में बदलाव की सख्त आवश्यकता जताते हैं। इसका मतलब है कि खाद्य सुरक्षा, आजीविका, जैव विविधता का समर्थन करने के लिए प्रकृति और स्थानीय समुदायों के साथ काम करना और तापमान चरम सीमा और कार्बन को अलग करने में मदद करना अहम है।

सतत खाद्य प्रणालियों पर विशेषज्ञों के अंतर्राष्ट्रीय पैनल (आईपीईएस) की खाद्य, परियोजना प्रबंधक, निकोल पिटा ने कहा कि हमें खाने, खेती करने और भोजन वितरित करने के तरीके को पूरी तरह से बदलना होगा।

पिटा ने कहा कि कृषि के औद्योगिक मॉडल के तहत खेतों में रसायनों का इस्तेमाल बढ़ा है और मोनोकल्चर फसलों पर ध्यान दिया जाने लगा है। इसने जलवायु और इंसान दोनों को प्रभावित किया है।" 

उन्होंने कहा, "हमें कृषि विज्ञान पर आधारित लचीली, विविध खाद्य और कृषि प्रणालियों का निर्माण करने की आवश्यकता है।"

थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क के एक शोधकर्ता और आईपीईएस पैनल की लिम ली चिंग ने आईपीईएस-फूड एंड नॉन-प्रॉफिट ए ग्रोइंग कल्चर द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा "जलवायु परिवर्तन के लिए कौन सी कृषि जिम्मेदार है, इसकी पहचान करना महत्वपूर्ण है। कृषि के छोटे पैमाने के पारंपरिक और जैविक रूप से विविध रूपों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए तुलनात्मक रूप से कम से कम लागत होती है, लेकिन छोटे पैमाने के किसान जलवायु में हो रहे बदलाव से असमान रूप से प्रभावित होते हैं, भले ही वे इस संकट को पैदा करने में उनकी न के बराबर भूमिका ही क्यों न हो"।

ग्रीनवाशिंग औद्योगिक कृषि

सैनी ने कहा कि “सबसे स्पष्ट मुद्दा इस समय खाद्य सुरक्षा को बनाए रखना है। शमन का समय चला गया है और हमें अब फसलों, तकनीकों का तेजी से अनुकूलन करना होगा”।

इस बीच, पिटा ने कॉप 27 पर औद्योगिक कृषि पद्धतियों के ग्रीनवाशिंग की चेतावनी दी। कॉप में खाद्य प्रणाली में सुधार में बाधा डालने के लिए इस मुहावरे का उपयोग किया जा रहा है। इसका मतलब, जब कोई कंपनी यह गलत दावा करती है कि उसके उत्पाद पर्यावरण अनुकूल हैं तो उसे ग्रीनवाशिंग कहा जाता है। कृषि व्यवसाय से जुड़े लोगों पर ग्रीनवाशिंग का आरोप लगता रहा है। इसे नेचर बेस्ड सोल्यूशन यानी 'प्रकृति आधारित समाधान' शब्द से भी पुकारा जाता है।

आईपीईएस-फूड द्वारा 27 अक्टूबर को जारी स्मोक्स एंड मिरर नामक एक रिपोर्ट ने 2021 के संयुक्त राष्ट्र खाद्य शिखर सम्मेलन, कॉप 26 में आख्यानों का विश्लेषण किया। इसमें  पाया गया कि कृषि खाद्य निगम, कई अंतर्राष्ट्रीय संगठन और कुछ सरकारें 'प्रकृति-आधारित समाधान' शब्द का उपयोग "खाद्य प्रणाली स्थिरता एजेंडा को हाईजैक या अपहरण" करने के लिए कर रही हैं, इसे अप्रमाणित कार्बन ऑफसेटिंग या कार्बन उत्सर्जन को कम करने की योजनाओं के साथ जोड़ रही हैं जो भूमि प्रतिस्पर्धा, जलवायु और बड़ी कृषि व्यवसाय शक्ति को मजबूत करना है।

उदाहरण के लिए, आरोप है कि अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के नेतृत्व वाले जलवायु के लिए कृषि नवाचार मिशन (एआईएम4 सी) द्वारा बड़े व्यवसायियों के पक्ष लिया जा रहा है। यह मिशन को कॉप 26 में लॉन्च किया गया था।

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