विज्ञानियों के मुताबिक, मवेशियों के शरीर से निकलने वाले मीथेन को कम करने में समुद्री शैवाल काफी मददगार हो सकता है। समुद्री शैवाल को सुपरफूड माना जाता है, लेकिन मवेशियों के चारे के रूप में इसका इस्तेमाल अभी तक नहीं हुआ था। क्वीन्स यूनिवर्सिटी बेलफास्ट के इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल फूड सिक्योरिटी (आईजीएफएस) के विज्ञानियों अपने शोध में पाया है कि समुद्री शैवाल का इस्तेमाल मवेशियों के चारे के रूप में करने पर मीथेन उत्सर्जन में 30 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। विज्ञानियों ने आयरलैंड और यूके के समुद्री शैवाल को लेकर लैब में शोध किया और इसका परिणाम सकारात्मक आया है।
पूर्व में इसको लेकर आस्ट्रेलिया और अमरीका में शोध हुआ था जिसमें पता चला था कि लाल समुद्री शैवाल की प्रजाति फूड सप्लिमेंट के रूप में मवेशियों को खिलाने पर मीथेन उत्सर्जन में 80 प्रतिशत की कमी आती है। लाल समुद्री शैवाल गर्म जलवायु में बड़े पैमाने पर उगता है। लेकिन, शोध में ये भी मालूम चला था कि लाल समुद्री शैवाल में भारी मात्रा में ब्रोमोफॉर्म पाया जाता है जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने के लिए जाना जाता है। समुद्री शैवाल यूके और आयरलैंड का स्थानीय पौधा तथा ये मुख्य तौर पर भूरा या हरा होता है, जिसमें ब्रोमोफॉर्म नहीं होता।
यूके और आयरलैंड के समुद्री शैवाल में फ्लोरोटैनिन भी पाया जाता है, जो अमूमन रेड वाइन और बेरी में होता है। ये एंटी बैक्टीरियल होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। ऐसे में ये मवेशियों के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है।
आईजीएफएस के विज्ञानी आयरलैंड व उत्तरी समुद्र से समुद्री शैवाल इकट्ठा कर जल्द ही प्रयोग शुरू करेंगे। तीन साल चलने वाले प्रोजेक्ट में यूके के सुपरमार्केट मॉरिसन और ब्रिटिश गाय किसानों के नेटवर्क साझेदार हैं। किसान अपने फार्म को प्रयोग के लिए मुहैया कराएंगे। प्रोजेक्ट में उत्तरी आयरलैंड का एग्रीफूड एंड बायोसाइंसेज इंस्टीट्यूट (एएफबीआई) भी शामिल है।
समुद्री शैवाल को लेकर आईजीएफएस और एफबीआई के दूसरे प्रोजेक्ट का नेतृत्व आयरलैंड की एजेंसी एन टीगैससी करेगा। इसमें हरी घास में समुद्री शैवाल मिलाकर दुधारू गायों को खिलाया जाएगा और इससे पड़ने वाले प्रभावों की निगरानी की जाएगी। प्रोजेक्ट अगले साल शुरू होगा।
इन प्रोजेक्ट्स के तहत न केवल इस बात की समीक्षा की जाएगी कि समुद्री शैवाल के सेवन के बाद दुधारू मवेशी व गायों से कितना मीथेन उत्सर्जित होता है, बल्कि घरेलू स्तर पर उगाये गये समुद्री शैवाल के पौष्टिक तत्व और मवेशियों की उत्पादकता और मीट की गुणवत्ता का भी अध्ययन किया जाएगा। स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज में पशु विज्ञान व माइक्रोबायोलॉजी की प्रोफेसर शौरॉन ह्यूस ने कहा कि संयुक्त शोध से उन्हें उम्मीद है कि ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में 30 प्रतिशत की कमी के सबूत मिलेंगे।
“इसमें विज्ञान है। इसके लिए बस जरूर आंकड़ा उपलब्ध कराना है और फिर इसे लागू करना है। समुद्री शैवाल का इस्तेमाल मीथेन उत्सर्जन को कम करने का प्राकृतिक व टिकाऊ तरीका है और इसके विस्तार की भी अपार संभावनाएं हैं। इसका कोई कारण नहीं है कि हम क्यों समुद्री शैवाल की खेती नहीं कर सकते हैं। ये समुद्री किनारों की जैवविविधता को भी सुरक्षित रखेंगे,” उन्होंने कहा।
वे कहती हैं, “अगर यूके के किसान शून्य कार्बन मॉडल अपनाना चाहते है, तो हमें वास्तव में इस तरह के शोधों को व्यवहार में लाना होगा। मुझे उम्मीद है कि आईजीएफएस व एएफबीआई के शोध सरकारों को अग्रेतर कदम उठाने के लिए जल्द ही जरूरी आंकड़े व आश्वासन उपलब्ध करा सकते हैं।”
उल्लेखनीय हो कि यूके में ग्रीन हाउस गैस का 10 प्रतिशत हिस्सा कृषि से उत्पन्न होता है। कृषि क्षेत्र में भी सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन गाय पालन से होता है क्योंकि गाय चारा खाकर मीथेन छोड़ती है। वहीं उत्तरी आयरलैंड में कुल ग्रीनहाउस गैस में मीथेन की हिस्सेदारी एक चौथाई है और इसका 80 प्रतिशत हिस्सा खेती से निकलता है।
मॉरिसन्स सुपरमार्केट की साल 2030 तक नेट जीरो कार्बन कृषि उत्पाद मुहैया कराने की योजना है। मॉरिसन्स के कृषि प्रमुख सोफी थ्रौप ने कहा, “ब्रिटिश कृषि के सबसे बड़े ग्राहक के तौर पर हम टिकाऊ खेती के लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन किसानों को सहयोग देने और प्रेरित करने को लेकर अपनी भूमिका के प्रति सावधान हैं, जिनके साथ हम काम करते हैं।”