कॉप-26: फण्ड फ्लो में कमी के चलते बढ़ी अनुकूलन की लागत

यूनेप द्वारा जारी अडॉप्टेशन गैप रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों में अनुकूलन की लागत और वित्त की जरुरत मौजूदा वित्त प्रवाह से पांच से 10 गुना ज्यादा है।
कॉप-26: फण्ड फ्लो में कमी के चलते बढ़ी अनुकूलन की लागत
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दुनिया में जलवायु अनुकूलन की स्थिति पर जारी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) की ताजा रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कई प्रभावों को अपरिवर्तनीय बताया है। साथ ही दुनिया को यह भी याद दिलाया है कि जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए उसकी तैयारियों में कितनी खामियां हैं।

अडॉप्टेशन गैप रिपोर्ट: द गैदरिंग स्टॉर्म के अनुसार वर्तमान में जलवायु प्रभावों में जो वृद्धि  रही है, वो अनुकूलन के लिए किए जा रहे प्रयासों से कहीं ज्यादा है। 

रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक विकासशील देशों के लिए अनुकूलन की लागत 14,000 से 30,000 करोड़ डॉलर प्रतिवर्ष के बीच होगी। हालांकि इसके 30,000 करोड़ डॉलर प्रतिवर्ष के आसपास रहने की सम्भावना है। वहीं 2050 में यह बढ़कर 28,000 से 50,000 करोड़ डॉलर प्रतिवर्ष तक जा सकती है। यही नहीं, विकसित और उच्च आय वाले देशों ने विकासशील देशों को जो समर्थन का वादा किया है वो उसे शायद ही पूरा कर पाए। 

यूनेप द्वारा जारी नवीनतम अनुमानों के अनुसार विकासशील देशों को जलवायु शमन और अनुकूलन योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए दिया जा रहा जलवायु वित्त 2019 में 7,960 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया था।

रिपोर्ट से पता चला है कि 2020 में भी जो फण्ड दिया गया है वो पर्याप्त नहीं है। अनुमान है कि 2020 में 10,000 करोड़ डॉलर जुटाने का जो लक्ष्य रखा गया था उसके पूरा होने की कोई सम्भावना नहीं है क्योंकि 2020 में करीब 2,000 करोड़ डॉलर (26 फीसदी) की वृद्धि का लक्ष्य हासिल नहीं हो पाया था। 

ऐसे में यूनेप ने चेतावनी दी है कि विकासशील देशों में जो अनुकूलन की अनुमानित लागत है वो इसके लिए दिए जा रहे वित्त से करीब पांच से दस गुना ज्यादा है। यही नहीं यह अंतर भी लगातार बढ़ रहा है। 

इससे पहले 2020 में जारी रिपोर्ट से तुलना करने पर पता चला है कि अनुकूलन के लिए दिए जा रहे वित्त और उसकी लागत के बीच का अंतर लगातार बढ़ रहा है क्योंकि अनुकूलन की लागत में वृद्धि हुई है जबकि उसके लिए दिया जा रहा वित्त उस अनुपात में नहीं बढ़ रहा है। 

यूनेप ने देशों के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) और राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं का अध्ययन किया है, जिससे पता चला है कि कई देशों में वित्त की जरुरत लगातार बढ़ रही हैं। यह अनुकूलन के तहत अधिक क्षेत्रों को शामिल करने के कारण भी हो सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार अलग-अलग क्षेत्रों के लिए जो जानकारी साझा की गई है उनके विश्लेषण से पता चला है कि चार क्षेत्रों, कृषि, बुनियादी ढांचे, पानी और आपदा जोखिम प्रबंधन के लिए अब तक करीब तीन-चौथाई वित्त की जरूरत है।

हालांकि अब पहले की तुलना में कहीं  ज्यादा देश अनुकूलन योजनाओं को अपना रहे हैं।  लगभग 79 फीसदी देशों ने राष्ट्रीय स्तर पर कम से कम एक अनुकूलन योजना उपकरण जैसे कि योजना, रणनीति, नीति या कानून को अपनाया है। यही नहीं 2020 के बाद से इसमें 7 फीसदी की वृद्धि दर्ज  की गई है। 

रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 महामारी से लड़ने और अर्थव्यवस्थाओं को दोबारा पटरी पर लाने के लिए दी जा रही मदद जलवायु अनुकूलन के लिए भी एक अवसर हो सकता है। वैश्विक स्तर पर अब तक इसके लिए 16.7 लाख करोड़ डॉलर की सहायता राशि की घोषणा की जा चुकी है। 

अध्ययन किए गए 66 देशों में से एक तिहाई से भी कम देशों ने जून 2021 तक कोविड-19 के खिलाफ उपायों के रूप में जलवायु जोखिमों को दूर करने के लिए वित्त जारी किया था। साथ ही उसी समय ऋण चुकाने की बढ़ी हुई लागत और सरकारी राजस्व में आने वाली कमी, भविष्य में अनुकूलन के लिए किए जा रहे सरकारी खर्च में विशेष रूप से विकासशील देशों में बाधा उत्पन्न कर सकती है। 

यूनेप की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन के अनुसार दुनिया ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती के ऐसे प्रयासों को आगे बढ़ाना चाहती है जो अभी कहीं भी मजबूती के साथ अपनाए नहीं गए हैं, ऐसे में उसे जलवायु अनुकूलन के लिए किए जा रहे प्रयासों को भी नाटकीय रूप से बढ़ाना चाहिए।

उनके अनुसार अगर हम आज ही अपने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को बंद कर देते हैं तो भी जलवायु परिवर्तन का असर आने वाले कई दशकों तक हमारे साथ रहेगा। ऐसे में उनके अनुसार हमें जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान को सीमित करने और वित्त पोषण के लिए अनुकूलन महत्वाकांक्षा में बदलाव करने की तुरंत जरुरत है। 

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