मिस्र के शर्म अल-शेख में चल रहे संयुक्त राष्ट्र की जलवायु वार्ता (कॉप 27) में, दुनिया भर के प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञान के प्रमुख विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन पर दस आवश्यक विषय प्रस्तुत किए। रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन से पड़ने वाले प्रभावों के अनुकूल होने के लिए लोगों की सीमाओं पर गौर किया गया। प्रभावों में लगातार और भीषण सूखा, तूफान और बाढ़ आदि शामिल हैं।
"द 10 न्यू इनसाइट्स इन क्लाइमेट साइंस" में इस साल की नवीनतम जलवायु परिवर्तन से संबंधित शोध के महत्वपूर्ण विषय रखे गए है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह रिपोर्ट इस दशक के दौरान नीति निर्माण के लिए मार्गदर्शन में अहम भूमिका निभा सकती है।
इस रिपोर्ट को अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क फ्यूचर अर्थ, द अर्थ लीग और वर्ल्ड क्लाइमेट रिसर्च प्रोग्राम (डब्ल्यूसीआरपी) द्वारा जारी की गई है। रिपोर्ट में निम्नलिखित प्रमुख विषयों को शामिल किया गया हैं:
संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन के कार्यकारी सचिव साइमन स्टील ने कहा कि विज्ञान जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर सबूत और आंकड़े प्रदान करता है, लेकिन यह हमें उपकरण और जानकारी भी प्रदान करता है कि हमें इसे कैसे हल करना है। जैसा कि मिस्र के कॉप 27 प्रेसीडेंसी ने बहुत स्पष्ट कर दिया है, अब हमें सीधे कार्रवाई करनी है। लेकिन इसमें से किसी भी आंकड़े के बिना, निर्णयों को लागू करने के कार्यक्रमों और नीतियों का समर्थन करने वाले विज्ञान के बिना यह नहीं हो सकता है।
वैज्ञानिक संश्लेषण रिपोर्ट में, दुनिया भर के वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन और खतरों के अन्य कारणों, जैसे संघर्ष, महामारी, खाद्य संकट और अंधाधुंध विकास की चुनौतियों के बीच मुख्य जटिल चीजों पर जोर देते हैं और उन्हें सामने लाते हैं। वैज्ञानिकों ने पाया कि जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने की क्षमता बहुत ज्यादा नहीं है।
समुद्र का बढ़ता स्तर जो तटीय समुदायों को डुबोने पर उतारू है, अत्यधिक गर्मी को सहन करने या इसके अनुकूलन होने की हमारी क्षमता के लिए बहुत कठिन सीमा के ये कुछ उदाहरण हैं। वैज्ञानिक इस बात पर भी प्रकाश डालते हैं कि 2050 तक 3 अरब से अधिक लोग अत्यधिक कमजोर कहे जाने वाले इलाकों में रहेंगे, ऐसे क्षेत्र जो जलवायु में बदलाव से होने वाले खतरों से आज की तुलना में दोगुना प्रभावित होंगे।
स्टील ने कहा केवल अनुकूलन से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के साथ नहीं रहा जा सकता है, जो पहले से ही लगाए गए अनुमानों से भी बदतर हैं। अनुकूलन क्रियाएं अभी भी महत्वपूर्ण हैं और छोटे पैमाने पर किए जा रहे प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
लेकिन जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने की क्षमता बहुत अधिक नहीं है। वे हमारे द्वारा देखे गए सभी नुकसान और क्षति को नहीं रोकेंगे। उन्होंने कहा इसलिए मैं कॉप 27 के एजेंडे में नुकसान और क्षति को शामिल करने के लिए पार्टियों की सराहना करता हूं।
वैज्ञानिकों ने आगे बताया हैं कि जीवाश्म ईंधन पर लगातार निर्भरता प्रमुखता से कमजोरियों को बढ़ाती है, विशेष रूप से ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा के लिए। जलवायु परिवर्तन को बढ़ाने वाले कारणों से निपटने के लिए गहन और तेजी से शमन, जो भविष्य के नुकसान और क्षति को रोकने और कम करने के लिए बहुत आवश्यक हैं।
स्टिल ने कहा जितना काम हम कम करते हैं, उतना ही हमें अनुकूलन करना पड़ता है। इसलिए, शमन में निवेश करना अनुकूलन और लचीलापन पर निवेश करने की आवश्यकता को कम करने का एक तरीका है। इसका मतलब है कि मजबूत राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाओं को प्रस्तुत करना अहम है।
प्रो. जोहान रॉकस्ट्रॉम, अर्थ लीग के सह-अध्यक्ष, पृथ्वी आयोग और पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के निदेशक ने कहा जैसे-जैसे विज्ञान आगे बढ़ रहा है, हमारे पास बड़े पैमाने पर लागत, खतरे के अधिक प्रमाण आते जा रहे हैं, लेकिन दुनिया भर में नुकसान कम होने के फायदे भी हैं।
पेरिस जलवायु सीमा के भीतर दुनिया की एक व्यवस्थित सुरक्षित सीमा के माध्यम से हमें सफल होने के लिए दुनिया भर के सहयोग और तेजी से काम करने की आवश्यकता है।