कॉप 27 में नुकसान और क्षति पर सहमति और फंड की स्थापना बरसों पुरानी मांग थी जो अब तक वैश्विक राजनीति के चलते अपने मुकाम पर नहीं पहुंची थी। इस साल जलवायु परिवर्तन के चलते चरम मौसमी घटनाओं को देखते हुए इसे नजरअंदाज करना मुश्किल था। भारत सहित कई विकासशील देशों की ओर से इस मांग को लेकर भारी दबाव था। डाउन टू अर्थ के कॉप का हासिल विश्लेषणात्मक रिपोर्ट की पहली कड़ी पढ़ें : डाउन टू अर्थ विश्लेषण: कॉप-27 से क्या हुआ हासिल? । इस कड़ी में आप पढ़ेंगे कि आखिर नुकसान एवं क्षति फंड पर सहमति जताने की मजबूरी थी या बहुत जरूरी था।
पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने जलवायु परिवर्तन के कारण इस साल बाढ़ का भीषण दंश झेला है। यही वजह है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोहम्मद शहबाज शरीफ को 23 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र की महासभा में कहना पड़ा, “40 दिन और 40 रात तक हम पर प्रलयंकारी बाढ़ का कहर टूटा रहा और इस बाढ़ ने सदियों के मौसमी रिकॉर्ड्स को ध्वस्त कर दिया। आपदा को लेकर हम जितने भी एहतियातों और प्रबंधनों के बारे में जानते हैं, उन सबको इसने चुनौती दे दी।” इस साल जुलाई और अगस्त में पाकिस्तान में 391 मिलीमीटर बारिश हुई थी, जो विगत 30 सालों में इन महीनों में हुई औसत बारिश से 190 प्रतिशत अधिक थी। इससे अचानक बाढ़ आ गई और भूस्खलन हुआ।
बारिश के चलते देश का एक तिहाई हिस्सा डूब गया। सिंध के दक्षिणी प्रांत में तो इस अवधि में औसत से 466 मिलीमीटर अधिक बारिश दर्ज की गई। पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “जब हमारे पास पाकिस्तान के बीचोंबीच 100 किलोमीटर लम्बी झील है, तो हमें बताया जाए कि इस बेतहाशा बारिश के पानी को निकालने के लिए कितने बड़े ड्रेन मैं बना सकता हूं? ऐसा कोई मानव निर्मित ढांचा नहीं है, जो इतना पानी बाहर निकाल सके।”
संयुक्त राष्ट्र ऑफिस के कोऑर्डिनेशन ऑफ ह्युमैनिटेरियन अफेयर्स (ओसीएचए) की ओर से जारी एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, बढ़ते जलस्तर ने 79 लाख लोगों को अस्थायी तौर पर विस्थापित किया। इसी रिपोर्ट के अनुसार, 1 अक्टूबर तक 1,700 लोगों की मौत भी हो गई और 3.3 करोड़ लोग प्रभावित हुए, जो ऑस्ट्रेलिया की कुल आबादी से अधिक है।
पाकिस्तान में बाढ़ का पानी उतरना शुरू ही हुआ था कि नाइजीरिया में हालिया इतिहास में सबसे भयावह बाढ़ का कहर बरपा। नाइजीरिया के मानवीय मामलों के मंत्रालय ने ट्वीट कर बताया कि बाढ़ से मृतकों की संख्या 600 के पार पहुंच गई है। बाढ़ सभी 36 सूबों में फैल गई और इससे अब तक 25 लाख लोग प्रभावित हुए तथा 2 लाख मकान क्षतिग्रस्त हो गए (देखें, चारों ओर अनिष्ट,)। मंत्रालय ने बताया कि बाढ़ से फसलों को भी भारी नुकसान हुआ है। नाइजीरिया की मौसम विज्ञान एजेंसी ने चेतावनी दी है कि कुछ सूबों में नवंबर के आखिर तक बाढ़ का असर बरकरार रह सकता है। हालांकि, मौसमी बाढ़ यहां सामान्य तौर पर आती रहती है, लेकिन इस साल की बाढ़ ने भीषण प्रभाव डाला। सरकार का कहना है कि असामान्य बारिश और जलवायु परिवर्तन इसके लिए दोषी है।
डाउन टू अर्थ का विश्लेषण बताता है कि साल 2022 के हर महीने में रिकाॅर्ड ध्वस्त करने वाली कम से कम एक आपदा आई और इन चरम मौसमी घटनाओं से सभी महाद्वीप प्रभावित हुए। मसलन, इस्लामाबाद ने प्राथमिक तौर पर बाढ़ से 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर के नुकसान का अनुमान लगाया है। इतना ही नहीं, जलवायु मंत्री शेरी रहमान न केवल त्वरित मदद बल्कि ग्रीनहाउस गैस के चलते होने वाले नुकसान के एवज में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित करने वाले अमीर और औद्योगीकृत मुल्कों से मुआवजे की भी मांग की थी। सितंबर में हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र में जरदारी ने कॉप-27 के एजेंडे में क्षति और नुकसान की फंडिंग के प्रस्ताव पर जोर दिया था। पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने पाकिस्तान का दौरा किया था। उन्होंने भी सरकारों से कॉप-27 में जलवायु संबंधी नुकसान और क्षति पर गंभीरता के साथ विमर्श करने की अपील की थी। भारत भी 2022 में जलवायु परिवर्तन की मार सहता रहा (देखें, चरम मार,)।
वैश्विक समझौते की मांग
यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कनवेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) की स्थापना के समय से ही कमजोर देश जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान के मुआवजे के लिए ऐतिहासिक तौर पर अधिक ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन करने वाले अमीर देशों के साथ एक वैश्विक समझौते की मांग करते रहे हैं। यूं तो जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अमीर और गरीब सभी देशों में पड़ रहा है, लेकिन नुकसान की भरपाई का जिम्मा अमीर देशों के सिर पर देने के पीछे का तर्क सीधा व सपाट है।
मौसम विज्ञानियों का वैश्विक संगठन द वर्ल्ड वेदर ऐट्रिब्यूशन (डब्ल्यूडब्ल्यूए) चरम मौसमी गतिविधियों में जलवायु परिवर्तन की भूमिका का मूल्यांकन करता है। यह संगठन पाकिस्तान में मानसून के सीजन में भीषण बारिश खासकर सिंध और बलूचिस्तान में हुई बारिश की वजह ग्लोबल वार्मिंग को मानता है। इन दोनों प्रांतों में अगस्त महीने में सामान्य से सात व आठ गुना अधिक बारिश दर्ज की गई। ग्लोबल वार्मिंग ने बारिश की तीव्रता 75 प्रतिशत बढ़ा दी। इसका अर्थ यह है कि जलवायु परिवर्तन ने पाकिस्तान में बाढ़ की स्थिति और खराब कर दी जबकि वैश्विक स्तर पर होने वाले कार्बन उत्सर्जन में पाकिस्तान की भागीदारी 0.7 प्रतिशत है। तुलनात्मक तौर पर देखें, तो ऐतिहासिक उत्सर्जन (1870-2019) के 25 प्रतिशत हिस्से का जिम्मेवार अमेरिकी है। उत्सर्जन में 17 प्रतिशत से अधिक की भागीदारी यूरोपीय संघ की है।
जलवायु परिवर्तन के जोखिमों के मामले में प्रदूषण फैलाने वाले ये अमीर मुल्क, विकाशील देशों से कहीं पीछे हैं। डाउन टू अर्थ के विश्लेषण से पता चलता है कि साल 2022 के सिर्फ 9 महीनों में ही चरम मौसमी गतिविधियों के चलते वैश्विक स्तर पर 10,000 लोगों की मौत हो गई और 7.5 करोड़ लोग प्रभावित हुए। मृत्यु और प्रभाव के मामले में बुरी तरह प्रभावित 10 देशों की सूची में न तो अमेरिकी और न ही यूरोपीय संघ शामिल है।
इसके अलावा अमीर मुल्कों की तुलना में जलवायु जोखिम से जूझने वाले निम्न-आय वाले देशों के पास इससे निबटने के लिए सुरक्षा कवच और संसाधनों का अभाव है। अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन ऑक्सफैम की इसी साल सितंबर में आई रिपोर्ट “फूटिंग द बिल” में इस पर विस्तार से बताया गया है। जर्मनी की पूर्व चांसलर एंजेला मार्केल ने साल 2021 की गर्मियों में आई बाढ़ के कुछ हफ्ते बाद ही 30 बिलियन यूरो (29.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के पुनर्निर्माण फंड की घोषणा कर दी। इसके विपरीत, चरम मौसमी घटनाओं का भीषण जोखिम झेलने वाले प्रशांत द्वीपीय देश वानुअतु का कर्ज हाल के वर्षों में खासकर 2015 में आए चक्रवात पान के बाद बढ़कर दोगुना हो गया है।
अब तक इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर अंकुश लगाने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के खिलाफ लचीलापन अपनाने के सामूहिक उपायों के बावजूद नुकसान और क्षति अपरिहार्य है। इसलिए आपदाओं की लागत का आकलन और इससे निपटने की कार्रवाई के दस्तावेजीकरण के लिए अलग-अलग देशों की राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान या एनडीसी) में नुकसान और क्षति को शामिल करना जरूरी है। हालांकि अधिकांश विकासशील देशों के एनडीसी लक्ष्यों में क्षति और नुकसान शामिल नहीं होता है। यूके की स्वतंत्र नीति शोध संस्था इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरमेंट एंड डेवलपमेंट की ओर से इस साल अगस्त में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि 46 कम विकसित देशों में से महज 10 देश अपने दस्तावेज में नुकसान और क्षति का जिक्र करते हैं। अन्य 35 देश अपने दस्तावेज में क्षति और नुकसान का अप्रत्यक्ष संदर्भ देते हैं।
स्पेन की संस्था बास्क सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के शोधकर्ताओं के साल 2018 के अनुमान के अनुसार साल 2030 तक विकासशील देशों में नुकसान और क्षति का आंकड़ा 290 बिलियन अमेरिकी डॉलर व 580 मिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुंच सकता है। अगर राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होता है, तो इस नुकसान की भरपाई का बोझ वह आबादी उठाती रहेगी, जो सबसे कम उत्सर्जन करती है।
अधूरी तस्वीर
वर्तमान में, विकासशील देश जलवायु से होने वाली क्षति की भरपाई के लिए अपने खजाने से खर्च करते हैं या आपातकालीन अपील के जरिए आर्थिक मदद लेते हैं। लेकिन ये फंड असल नुकसान व क्षति, जो आर्थिक और गैर आर्थिक दोनों हो सकते हैं, की भरपाई करने के लिए अपर्याप्त होता है। उदाहरण के लिए संयुक्त राष्ट्र, पाकिस्तान को 160 मिलियन डॉलर फंड के लिए सहयोग कर रहा है। अब तक अमेरिकी ने 30 मिलियन डॉलर, यूके ने लगभग 17.3 मिलियन डॉलर और कनाडा ने 3.8 मिलियन डॉलर देने का वादा किया है। वहीं, विश्व बैंक ने 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर देने का भरोसा दिया है, तो एशियन डेवलपमेंट बैंक ने 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की मदद का वादा किया है। पाकिस्तान ने बाढ़ से नुकसान का आकलन 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर किया है, जो बढ़ भी सकता है। ऐसे में ये मदद असल नुकसान से काफी कम है।
गौरतलब है कि खर्च का अनुमान अमूमन वैश्विक तौर पर स्वीकृत दो फॉर्मूले के आधार पर लगाया जाता है– त्वरित जरूरी मूल्यांकन और आपदा बाद की जरूरत का विस्तृत मूल्यांकन। ये आकलन अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से प्रभावित देशों की सरकारें करती हैं। त्वरित जरूरी मूल्यांकन आपदा के तुरंत बाद किया जाता है। साल 2020 की विश्व बैंक की एक रिपोर्ट कहती है, “त्वरित मूल्यांकन का उद्देश्य व्यापक आकलन करना होता है, जो सरकार को गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्रों की शिनाख्त करने और प्राथमिक जरूरतों के अनुसार कुछ ही दिनों में हस्तक्षेप करने में मदद कर सकता है।” वहीं, आपदा के बाद का जरूरी मूल्यांकन लम्बी अवधि तक चलता है।
भ्रम की स्थिति
दोनों आकलनों से जो अनुमान निकाले जाते हैं, वे भविष्य की जलवायु घटनाओं के अनुकूलन के फंड को लेकर भ्रम पैदा करते हैं। क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल के नेतृत्व वाले एक वैश्विक गैर सरकारी समूह ने इस साल जारी एक विमर्श पत्र में बताया कि नुकसान और क्षति वित्त को अक्सर गलत तरीके से अनुकूलन वित्त से जोड़ दिया जाता है, जो नुकसान और क्षति को कम करने में मदद करता है और कुछ हद तक नुकसान व क्षति को और टाल सकता है। हालांकि, तथ्य यह है कि नुकसान और क्षति के मुआवजे का इस्तेमाल भविष्य में होने वाली आपदाओं को टालने के बजाय जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में करने पर विचार किया जाना चाहिए।
दोनों आकलनों का वर्तमान तरीका हालांकि वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य है, मगर इसमें विस्थापन और बेरोजगारी जैसे दीर्घकालिक नुकसान शामिल नहीं होते हैं। यद्यपि सभी जलवायु प्रभाव ऐतिहासिक उत्सर्जन का परिणाम हैं, मगर आपदाओं में ऐतिहासिक रूप से प्रदूषण फैलाने वाले देशों की भूमिका तय करना और मुआवजे का आकलन करना अब भी चुनौती बना हुआ है।
विकसित और विकासशील देशों के बीच नुकसान और क्षति में भी अंतर है। विकसित देशों में आर्थिक नुकसान, ढांचागत नुकसान से अधिक होता है और इसलिए इन देशों के तत्काल आंकड़े विकासशील देशों के मुकाबले अधिक होते हैं। विकासशील देशों में मानव जीवन और आजीविका का नुकसान अधिक होता है। पाकिस्तान में यह देखा जा सकता है। ओसीएचए का कहना है कि हाल की बाढ़ में 12 लाख पशुधन का नुकसान हुआ है।
वहीं, प्रधानमंत्री शरीफ ने दावा किया कि बाढ़ में 16 लाख हेक्टेयर में लगी फसल बह गई, जिससे खेती को भारी नुकसान पहुंचा है। विकसित देश नुकसान और क्षति का आकलन बेहतर तरीके से करने में भी सक्षम हैं। मसलन यूरोपीय संघ में पिछली और भविष्य की घटनाओं से नुकसान और क्षति का महाद्वीप-व्यापी आकलन इको और यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (ईईए) द्वारा किया जाता है। ईईए में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन विशेषज्ञ वाउटर वेन्यूविल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि नुकसान और क्षति के आकलन के लिए जलवायु घटनाओं के बहु-दशकीय आंकड़ों की जरूरत होती है और ये आंकड़े सिर्फ विकसित देशों में बीमा उद्योग के पास मिलते हैं।
विश्व बैंक, यूरोपीय संघ और यूएन डेवलपमेंट प्रोग्राम ने साल 2018 की रिपोर्ट में वर्तमान आपदा के बाद की जरूरतों के आकलन के तरीकों की चुनौतियों पर प्रकाश डाला। 2008 से किये जा रहे आकलनों की समीक्षा की गई है। समीक्षा में ये संगठन बताते हैं कि छोटे देशों, छोटी आपदाओं और असामान्य पुनर्प्राप्ति आवश्यकताओं हेतु अधिक उपयुक्त आकलन के लिए मौजूदा दृष्टिकोण को बदलने की जरूरत है। संगठनों ने प्रभावित लोगों के लिए बड़ी जवाबदेही की जरूरत का जिक्र करते हुए भविष्य में होने वाले नुकसान और क्षति के मूल्यांकन की सूचना के लिए सबसे कमजोर और सामाजिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समूहों को शामिल करने की जरूरत बताई।
रणनीति में नवाचार
वर्तमान आकलन की एक मुख्य दिक्कत यह है कि इसमें बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय क्षति और गैर आर्थिक प्रभावों मसलन संस्कृतियों, परम्पराओं, भाषाओं व यहां तक कि पूरे समुदायों को होने वाले नुकसान, जो अपूरणीय होते हैं और जिनका आकलन काफी मुश्किल है, शामिल नहीं होते। वर्तमान आकलन आबादी में पहले से मौजूद ऐतिहासिक सामाजिक-आर्थिक कमजोरियों की भी अनदेखी करता है। संभव है कि वानुअतु ने कुछ कमियों को ठीक करने की शुरुआत की हो।
2020 में ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात हेरोल्ड के बाद वानुअतु ने सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में पर्यावरण को होने वाले नुकसान और क्षति के आकलन के लिए एक नया सेक्शन बनाया। प्रधानमंत्री कार्यालय ने समुदायों के साथ काम किया और जगंलों तथा समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर पड़े प्रभावों का आकलन करने के लिए कुछ प्रमुख आवासों का दौरा किया। इसमें प्रभावित क्षेत्र का आकलन कर भविष्य के प्रभावों के लिए छूट सहित आर्थिक मूल्य से गुणा कर आर्थिक प्रभावों का मूल्यांकन किया। मसलन वनों के लिए इसने 2012 के शोध के निष्कर्षों के आधार पर प्रति वर्ष प्रति हेक्टयर 5,264 अमेरिकी डॉलर का आकलन किया।
मरीन ईकोसिस्टम में मूंगे की चट्टान का आर्थिक मूल्य प्रति हेक्टेयर 352,915 डॉलर, मैंग्रोव का आर्थिक मूल्य प्रति हेक्टेयर 1,93,845 डॉलर और समुद्री शैवाल का आर्थिक मूल्य प्रति हेक्टेयर 28,917 डॉलर माना गया। वानुअतु ने निष्कर्ष निकाला कि हेरोल्ड चक्रवात ने वनों को 3.8 बिलियन डॉलर और मरीन ईकोसिस्टम को 8.2 बिलियन डॉलर का नुकसान और क्षति पहुंचाया। देश ने आधिकारिक तौर पर आपदा के बाद के आकलन में कुल आर्थिक लागत 617 मिलियन डॉलर रखी है।
इसमें पर्यावरणीय क्षति शामिल नहीं है। ब्रुसेल्स स्थित थिंक टैंक ग्लोबल गवर्नेंस इंस्टीट्यूट द्वारा 2017 में नुकसान और क्षति को लेकर तैयार किए गए पॉलिसी ब्रीफ के अनुसार, नुकसान और क्षति से निपटने के लिए स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर-सरकारी स्तरों पर तंत्र विकसित करने के लिए नवाचार भी चल रहे हैं। बांग्लादेश ने अपने क्लाइमेट चेंज एंड स्ट्रेटजी एंड एक्शन प्लान के तहत नुकसान और क्षति सहित विभिन्न जलवायु संबंधी आपदाओं से निपटने के लिए दो फंड स्थापित किए हैं। साल 2017 तक आठ वर्षों में, देश ने दो फंडों में तत्काल आपदा राहत के लिए 0.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आवंटन किया था और इन फंडों का इस्तेमाल कर नुकसान और क्षति पर एक राष्ट्रीय तंत्र लागू कर रहा है।
अंतर-सरकारी स्तर पर कैरेबियन क्षेत्र ने 2017 में विश्व बैंक, जापान, यूरोपीय संघ और कनाडा की मदद से नुकसान और क्षति से निपटने के लिए कैरेबियन आपदा जोखिम बीमा सुविधा (सीसीआरआईएफ) की स्थापना की। सीसीआरआईएफ के सदस्यों में कैरेबियन क्षेत्र के 19 देश, मध्य अमेरिका के तीन देश और बिजली आपूर्तिकर्ता समूह का एक सदस्य शामिल है। इसने अब तक 245 मिलियन डॉलर के 54 बीमा दावों का भुगतान किया है। …यूएनएफसीसीसी प्रक्रिया के बाहर नुकसान और क्षति के वित्तपोषण के लिए कुछ अंतरराष्ट्रीय प्रस्ताव हैं। इन्हीं में से एक प्रस्ताव अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संस्था हेनरिक बोएल फाउंडेशन का अंतरराष्ट्रीय एकजुटता निधि का है।
इस प्रस्ताव के तहत नुकसान और क्षति के वित्तपोषण के सार्वजनिक, निजी और अभिनव तरीकों को एक साथ लाने की योजना बनाई जा रही है। इसमें 2030 तक विकसित देशों से 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर लाने की परिकल्पना है। इसका सार्वजनिक निधि के जरिए वैकल्पिक और नवीन स्रोतों से हर साल 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक अतिरिक्त धन जुटाने का पूर्वानुमान है। कुछ वैकल्पिक और अभिनव स्रोत अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का मौद्रिक रिजर्व, विकसित देशों द्वारा जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में कमी, स्टॉक, बांड, जलवायु क्षति टैक्स, हवाई यात्री लेवी और ऋण राहत जैसे वित्तीय साधनों पर वित्तीय लेनदेन टैक्स हो सकते हैं। सांस्कृतिक और सामाजिक प्रणालियों से संबंधित अन्य गैर-आर्थिक लागतों के आकलन के लिए विश्व स्तर पर कार्य प्रणाली को विकसित किया जाना बाकी है। लेकिन ये उदाहरण बताते हैं कि इन दृष्टिकोणों का पालन भविष्य के आकलन में किया जा सकता है। आगे पढ़ें: भारत में कैसे की जाती है नुकसान एवं क्षति की लागत की गणना
(नाइजीरिया से बेनेट ओगिफो, मेडागास्कर से रिवोनाला रजाफिसन और मौजांबिक से चार्ल्स मंग्विरो के इनपुट्स)