जलवायु परिवर्तन: आर्कटिक व्हेल की इन प्रजातियों को है सबसे अधिक खतरा

बढ़ते तापमान के कारण दक्षिण पूर्व ग्रीनलैंड में, पूरे पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव आया है, आर्कटिक प्रजातियों में से कुछ गायब हो गए हैं
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स,टेड ची
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आर्कटिक व्हेल ग्रीनलैंड के तट पर बर्फीले पानी में तैरते हैं, लगभग दो किलोमीटर की गहराई तक गोता लगाते हैं और एकांत में रहते हैं। ठंडे पानी के जीवों पर नजर रखने से बढ़ते तापमान के खतरनाक प्रभावों की जानकारी मिलती है।

नरवाल व्हेल, अन्य जानवरों की तरह, जो आर्कटिक महासागर में साल भर रहते हैं, एक विशेष समूह से संबंधित हैं, जो गेट-क्रैशर्स अर्थात बिन बुलाए मेहमानों की बढ़ती संख्या का सामना करते हैं। जैसा कि बढ़ते तापमान के कारण आर्कटिक का पानी गर्म हो जाता है और समुद्री बर्फ पिघल जाती है, एकांत में रहने वाले जीवों के लिए अनुकूलित समुद्री जानवरों को अन्य जलीय स्तनधारियों के आगमन और मानव गतिविधि में वृद्धि से खतरा बढ़ गया है।

साल भर आर्कटिक में रहने वाली तीन व्हेल प्रजातियां  - नरवाल, बेलुगास और बोहेड्स विशेष रूप से जोखिम में हैं।

डेनमार्क के कोपेनहेगन में ग्रीनलैंड इंस्टीट्यूट ऑफ नेचुरल रिसोर्सेज के प्रोफेसर मैड्स पीटर हेइड-जोर्जेंसन ने कहा, सभी आर्कटिक प्रजातियों-यहां तक कि ध्रुवीय भालू की तुलना में, बढ़ते तापमान के द्वारा संचालित निवास स्थान में बदलाव के लिए नरवालों की पहचान पहले ही सबसे संवेदनशील के रूप में की जा चुकी है।

डॉ. फिलीपीन चैंबॉल्ट के साथ, प्रोफेसर हेइड-जोर्गेनसन यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि कैसे जलवायु परिवर्तन केटासियन के व्यवहार और शरीर विज्ञान को बदल रहा है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि स्थितियां पहले ही एक अहम बिंदु को पार कर चुकी हैं, जिसे एक सीमा के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके आगे बड़े, अक्सर अपरिवर्तनीय, जलवायु व्यवधान उत्पन्न होंगे।

प्रो हेइड-जोर्जेंसन ने कहा दक्षिण पूर्व ग्रीनलैंड में, पूरे पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव आया है। आर्कटिक प्रजातियों में से कुछ गायब हो गए हैं और अधिक समशीतोष्ण अटलांटिक की प्रजातियों कहीं और चली गई हैं।

ठंड कम, परेशानी ज्यादा

गर्मियों के महीनों में  बर्फ की कमी, ग्रीनलैंड के पूर्वी तट से ठंडे प्रवाह के आसपास गर्म पानी के तापमान के साथ, हम्पबैक, फिन और किलर व्हेल के साथ डॉल्फिन की बाढ़ आ जाती है।

इसका मतलब है कि सालाना लगभग 7 लाख टन कम मछलियों का शिकार नरवाल और वालरस के द्वारा किया जाएगा, जिनकी संख्या में गिरावट आई है।

क्योंकि नरवाल, बेलुगा और बोहेड ठंडे पानी के विशेषज्ञ हैं, उनके पास ब्लबर की बहुत मोटी परतें होती हैं, यह नरवाल के लिए, 40 सेंटीमीटर तक होती है। प्रोफेसर हेइड-जोर्गेनसन के अनुसार, किसी को भी 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म पानी पसंद नहीं है।

उन्होंने कहा जब व्हेले इस गड़बड़ी का सामना करती है तो उन्हें वहां से भागना पड़ता है। ऐसी प्रजातियां कितने गर्म पानी तक जीवित रह सकती हैं, उनकी एक शारीरिक सीमा भी है।

टैगिंग, एक्सेलेरोमीटर और स्वॉल्व्ड पिल सेंसर के उपयोग से, शोधकर्ता आहार में बदलव के साथ-साथ समुद्र के तापमान और खारेपन के बारे में आंकड़े  एकत्र कर रहे हैं।

ग्रीनलैंड की यात्राओं के दौरान, टीम ने जूप्लैंकटन के अपने शिकार का रिकॉर्ड करने के लिए टैग लगाया, जिससे उनके ठंडे पानी के आवास कहां हैं इस बारे में जानकारी लेने में मदद मिलती है।

प्रोफेसर हेइड-जोर्गेनसन ने कहा कि आर्कटिक में ठंडा पानी कहां है, यह जानने के लिए हम एक तरह के सोनोग्राफिक रिसर्च प्लेटफॉर्म के रूप में बॉलहेड्स का उपयोग करने में सफल हुए। बोहेड ह्वेल हमारी तुलना में जूप्लैंकटन का पता लगाने में बहुत बेहतर हैं।

जहां तक नरवालों की बात है, उन्हें कुछ समय के लिए कोने में रखा जाता है और उन्हें एक ट्रांसमीटर गोली खिलाई जाती है जो पेट में तापमान परिवर्तन को ट्रैक कर सकती है।

जब नरवाल हैलिबट, कॉड और स्क्वीड सहित शिकार को निगलते हैं, तो सेंसर उनके शरीर की सामान्य 35 डिग्री गर्मी से तापमान में गिरावट दर्ज करता है।

प्रोफेसर हेइड-जोर्गेनसन ने कहा हर बार जब तापमान गिरता है, तो गोली जानवर की पीठ पर लगे एक उपग्रह ट्रांसमीटर को एक संकेत भेजती है जिसे हम कोपेनहेगन के कार्यालय में हासिल करते हैं।

शोधकर्ता इकोलोकेशन ध्वनियों को भी रिकॉर्ड करते हैं, जिन्हें गूंज के रूप में जाना जाता है, जिसका उपयोग नरवाल शिकार को खोजने के लिए करते हैं, यह सीखते हुए कि किस गहराई और तापमान पर भोजन कहां उपलब्ध होता है। पूरी ट्रैकिंग प्रक्रिया लगभग आठ दिनों तक चलती है।

लोगों के कारण खतरे

लगभग एक लाख की संख्या में, दक्षिण पूर्व ग्रीनलैंड में नरवालों की आबादी पहले से ही शिकार से काफी खतरे में है, जो उनके दांत, मांस और त्वचा की मांग के कारण बढ़ रही है। शोधकर्ताओं ने बताया कि नरवाल की संरक्षण स्थिति खतरे के करीब है।

लेकिन शोध के नए आंकड़े लोगों से संबंधित संकट को दिखाते हैं, जिसमें शिपिंग में वृद्धि क्योंकि कम समुद्री बर्फ के कारण अधिक संसाधनों की खोज होती है।

शोधकर्ताओं ने पाया है कि नरवाल 40 किलोमीटर दूर तक जहाजों से आने वाली आवाजों का पता लगा सकते हैं और अगर वे किसी जहाज से पांच किलोमीटर से कम दूरी पर हैं तो जानवर उत्तेजित हो जाते हैं और तेजी से गोता लगाते हैं।

प्रोफेसर हीड-जोर्गेनसन ने कहा यह एक तरह की आश्चर्यजनक बात है। हम जानते हैं कि वे चिड़चिड़े हो जाते हैं, लेकिन उस हद तक नहीं। यह अतिरिक्त तनाव उन्हें स्थानीय रूप से विलुप्त होने के का कारण हो सकता है, यानी कि ग्रीनलैंड में पारंपरिक आवासों से उनका गायब हो जाना।

प्रो हेइड-जोर्गेनसन ने कहा वे पिछले हिम युग के बाद से वे वहां रहे हैं और उनके पास यह थोड़ा विशिष्ट निवास स्थान है। एक बार जब वे चले जाएंगे, तो हम उनके वापस आने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं।

हालांकि नरवालों के आवास में अतिरिक्त पशु प्रतिस्पर्धियों को रोकने के लिए बहुत देर हो गई है, वह यह सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियमों का आग्रह करता है कि शिकार टिकाऊ हो और शिपिंग खतरनाक रूप से विघटनकारी न हो।

खाद्य श्रृंखला में निचली समुद्री प्रजातियां भी दबाव में हैं। डॉ. एलेक्सी गोलिकोव इस बात का अध्ययन कर रहे हैं कि कैसे बढ़ता तापमान आर्कटिक सेफेलोपोड्स-स्क्वीड, ऑक्टोपस और कटलफिश के जीवन चक्र को बदल रहा है।

डॉ. गोलिकोव का अनुमान है कि नॉर्वे और ग्रीनलैंड के आसपास के समुद्रों में लगभग 7.2 ट्रिलियन स्क्वीड हैं और इससे भी अधिक सेफालोपोडा हैं।

वे ग्यारह प्रजातियों से संबंधित हैं और उन्होंने अभी बारहवीं की खोज की है, जो उनके लिए, यह निर्धारित करने के महत्व को रेखांकित करता है कि आर्कटिक में सेफेलोपोड्स कैसे आगे बढ़ रहे हैं।

डॉ. गोलिकोव ने कहा, बदलाव बहुत तेजी से हो रहे हैं, इससे पहले कि हम उन्हें ढूंढें, कमजोर वातावरण में प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं। आधारभूत स्तरों को स्थापित करने के लिए, वह बार्ट्स सागर में नार्वेजियन और रूसी ट्रॉलरों से बायकैच का उपयोग कर रहा है। जहाजों पर लगे कैमरों द्वारा खींची गई तस्वीरों से बड़े सेफलोपोड्स को ट्रैक किया जाता है।

पर्यावरण डीएनए के लिए समुद्र की खोज करके और आनुवंशिक प्रयोगशाला में इसका विश्लेषण करके जानवरों की आबादी को एक साथ रखा जा सकता है।

डॉ गोलिकोव ने कहा, वे त्वचा के टुकड़े और कीचड़ में छोड़ देते हैं जो पानी में रहते हैं। उनमें अनुवांशिक सामग्री होती है जिसका उपयोग क्षेत्र में सेफालोपोडा की पहचान करने के लिए किया जा सकता है।

यह पता लगाने के लिए कि उनका आहार कैसे बदल गया है, वह शिकार को काटने के लिए दांतों के बजाय सेफलोपोड्स की एक और अनूठी विशेषता का उपयोग कर रहा है जिसे चिटिनस चोंच कहते हैं।

जब सेफालोपोडा बढ़ता है, तो चोंच का नवीनतम हिस्सा दर्शाता है कि उसने क्या खाया। इसका पिछला आहार कार्बन और नाइट्रोजन के संग्रहीत समस्थानिकों के माध्यम से चोंच में आगे पीछे जमा होता है।

डॉ गोलिकोव आधुनिक स्क्वीड से चोंच के नमूनों के साथ-साथ कोपेनहेगन में जूलॉजिकल म्यूजियम से 19वीं और 20वीं सदी के नमूनों का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि क्या वे अलग हैं या वे वही हैं?। हम देखेंगे कि स्क्विड के जीवन इतिहास पर जलवायु परिवर्तन से कोई असर पड़ता है या नहीं।

डॉ गोलिकोव ने कहा, उनके लचीलेपन और अनुकूलता के साथ, सेफालोपोडा हमें जल्दी से देखे जाने में मदद कर सकते हैं। वे हमें यह देखने में मदद करेंगे कि आर्कटिक के किन क्षेत्रों को अधिक संरक्षित किए जाने की जरूरत है। यह शोध होराइजन : ईयू रिसर्च एंड इनोवेशन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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