भारत पहुंची बच्चों की क्लाइमेट स्ट्राइक, दुनिया भर में प्रदर्शन

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ स्टॉकहोम से शुरू एक स्कूली बच्ची ग्रेटा थुनबर्ग की हड़ताल (क्लाइमेट स्ट्राइक) भारत पहुंच चुकी है। 20 सितंबर को दिल्ली के कुछ स्कूली बच्चों ने प्रदर्शन किया
जलवायु परिवर्तन के खिलाफ नई दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन करते बच्चे। फोटो: विकास चौधरी
जलवायु परिवर्तन के खिलाफ नई दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन करते बच्चे। फोटो: विकास चौधरी
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जलवायु परिवर्तन के खिलाफ स्टॉकहोम से शुरू एक स्कूली बच्ची ग्रेटा थुनबर्ग की हड़ताल (क्लाइमेट स्ट्राइक) भारत पहुंच चुकी है। 20 सितंबर को दिल्ली के कुछ स्कूली बच्चों ने इस क्लाइमेट स्ट्राइक में हिस्सा लिया। और जंतर-मंतर पर पहुंच कर जलवायु परिवर्तन पर अपनी चिंता जाहिर की। 

भारत में सबसे बुरी बुराई का प्रतीक रावण को माना जाता है। यही वजह है कि प्रदर्शनकारी अपने साथ दस सिर वाले रावण का पुतला भी लाए थे। 20 सितंबर को जकार्ता से लेकर न्यूयॉर्क शहर तक के बच्चों और किशोरों ने जलवायु परिवर्तन को रोकने की मांग को लेकर सड़कों पर मार्च किया। ये युवा जलवायु कार्यकर्ता अपने नैतिक अधिकार का उपयोग सोशल-मीडिया में जमकर रहे हैं।

इस बच्ची ने की थी शुरुआत 

15 साल की उम्र में ग्रेटा थुनबर्ग ने स्टॉकहोम में स्वीडिश संसद के बाहर जलवायु कार्रवाई के लिए 2018 में स्कूल छोड़ना शुरू कर दिया था। यह आंदोलन जल्दी ही वैश्विक हो गया। मार्च के मध्य में विरोध प्रदर्शन के दौरान 125 देशों के अनुमानित 16 लाख बच्चों ने सड़कों पर प्रदर्शन किया और आज यानी 20 सितंबर, 2019 को दुनिया भर में एक युवा-नेतृत्व वाले प्रदर्शन की योजना बनाई गई जो अब तक का सबसे बड़ा जलवायु विरोध हो सकता है।

विश्व भर के युवा दशकों से जलवायु परिवर्तन के बारे में बात कर रहे हैं, लेकिन हाल में और आज प्रदर्शनकारी बच्चों और युवाओं यह नवीनतम पीढ़ी है और ये अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में अधिक समन्वित हो कर प्रदर्शन कर रहे हैं। इन युवाओं के प्रदर्शन से अन्य युवा आकर्षित हो रहे हैं और इनका कारवां दिनप्रति दिन बढ़ते ही जा रहा है।

ब्रिटेन के लीड्स विश्वविद्यालय के पर्यावरण सामाजिक वैज्ञानिक हैरियेट थेव ने कहा कि थनबर्ग और अन्य युवा जलवायु प्रचारक  या  पारंपरिक पेड़ लगाने वाले पर्यावरणविद नहीं हैं। वह कहते हैं, कई लोग जलवायु परिवर्तन से निपटने को वैश्विक न्याय के मामले के रूप में देखते हैं। इस प्रकार का विरोध विशुद्ध रूप से पर्यावरण संदेश से अधिक प्रभावी होता है। युवा अधिक से अधिक लोगों से इस समस्या के बारे में बात कर रहे हैं और वास्तव में उस मानव-पर्यावरण कनेक्शन को पहचान रहे हैं। वे केवल ध्रुवीय भालू के बारे में चिंतित नहीं हैं। उनका संदेश वर्षावन को बचाने या व्हेल को बचाने के बारे में नहीं है।

वास्तव में यह पृथ्वी पर सबसे कमजोर लोगों को बचाने के बारे में है। ध्यान रहे कि दुनिया भर के मीडिया ने अटलांटिक के पार थुनबर्ग की यात्रा को कवर किया। और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा “मेरी पीढ़ी जलवायु परिवर्तन की नाटकीय चुनौती का ठीक से जवाब देने में विफल रही है। यह युवा लोगों द्वारा गहराई से महसूस किया जाता है। कोई आश्चर्य नहीं कि वे नाराज हैं।” 

वर्जीनिया के फेयरफैक्स में जॉर्ज मेसन विश्वविद्यालय के जलवायु-संचार शोधकर्ता कोनी रोज़र-रेनॉफ़ का कहना है कि उनकी कुछ चिंताएं जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित हैं, जैसे कि पिछले साल पश्चिमी संयुक्त राज्य में रिकॉर्ड तोड़ने वाले जंगल की आग और तूफान मारिया आदि।

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