विश्व के महासागरों में ऑक्सीजन की कमी से समुद्री जीवों और मछली की प्रजातियों पर खतरा बढ़ रहा है। ऑक्सीजन की यह कमी पारिस्थितिकी प्रणालियों को भी प्रभावित कर रही है। प्रकृति के संरक्षण के लिए बने अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) की नई रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है। जैसे-जैसे महासागर गर्म हो रहा है, पानी में ऑक्सीजन का स्तर कम होता जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप समुद्र की गहराई के साथ-साथ सतह के पास ऑक्सीजन युक्त पानी का मिश्रण कम हो रहा है।
यह रिपोर्ट स्पैन की राजधानी मद्रिद में चल रहे यूएन क्लाइमेट चेंज कांफ्रेंस कॉप-25 में शनिवार को जारी की गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण से पटे महासागरों में ऑक्सीजन की कमी हो गई है। इस कमी से ट्यूना, मार्लिन और शार्क जैसी मछलियों की प्रजातियों के लिए खतरा बढ़ गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, कम ऑक्सीजन वाले महासागरों का लगातार विस्तार हो रहा है। दुनिया भर में लगभग 700 समुद्री स्थान ऐसे है जो ऑक्सीजन की कमी से प्रभावित हैं। 1960 के दशक में इनकी संख्या केवल 45 थी।
कम ऑक्सीजन का उपयोग करने वाले प्रजातियों (जैसे माइक्रोब्स, जेलिफ़िश आदि) ने समुद्री जीवन के संतुलन बनाने के लिए प्रदूषित हवा को साफ करना शुरू कर दिया है। इससे समुद्री जीवन में संतुलन हो रहा है, जिससे अधिकांश मछलियों सहित कई समुद्री प्रजातियों का जीवन बच सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह का प्रभाव लाखों लोगों को भी प्रभावित करेगा। टूना, मार्लिन और शार्क जैसे प्रजाति समूह अपने बड़े आकार, अधिक खाने की मांग और कम ऑक्सीजन के कारण प्रभावित हो सकते हैं।
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि महासागरों में कम ऑक्सीजन पृथ्वी पर जीवन के लिए महत्वपूर्ण तत्वों की सायक्लिंग जैसी बुनियादी प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकती है, जैसे कि नाइट्रोजन और फॉस्फोरस। इससे ऑक्सीजन लेवल में 3 से 4 प्रतिशत की कमी आएगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि महासागरीय ऑक्सीजन की कमी का प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण हैं। जो बाद में तटीय क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। विभिन्न तत्वों के प्रदूषण से समुद्र के किनारों के जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, क्योंकि उर्वरक, मल, पशु और जलीय कृषि अपशिष्ट शैवाल की अत्यधिक वृद्धि के कारण ऑक्सीजन ख़त्म हो जाती है।
14 समुद्री देशों द्वारा कराए गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि अनियंत्रित जलवायु परिवर्तन मत्स्य उद्योग और प्रवाल भित्ति (कोरल रीफ) पर्यटन को तबाह कर सकता है। जिससे 2050 तक सैकड़ों अरबों डॉलर का नुकसान हो सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने से, समुद्र के निकट के (तटीय) देशों के लिए आर्थिक नुकसान कम होगा। लेकिन उन्हें अपने आप को समुद्र के परिवर्तनों के अनुकूल ढालने की भी आवश्यकता होगी।