जलवायु आपदा की आशंका को नजरअंदाज किया जा रहा है: वैज्ञानिक

अध्ययन के मुताबिक अगर वैश्विक तबाही के 1 फीसदी भी हालात बनते हैं, तो आने वाली सदी में लोगों के विलुप्त होने का खतरा 1 फीसदी भी बहुत अधिक होगा।
जलवायु आपदा की आशंका को नजरअंदाज किया जा रहा है: वैज्ञानिक
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शीर्ष वैज्ञानिकों के एक समूह का दावा है कि विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन के आने वाले सबसे खराब दौर की अनदेखी कर रहे हैं, जिसमें लोगों को भारी खतरा यहां तक की उनकी विलुप्ति होने की आशंका भी जताई गई है। उन्होंने कहा हालांकि इसके बहुत कम आसार हैं।

दुनिया भर के ग्यारह वैज्ञानिक संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल, जो कि दुनिया का आधिकारिक जलवायु विज्ञान संगठन है, के विनाशकारी जलवायु परिवर्तन पर एक विशेष वैज्ञानिक रिपोर्ट पर गौर करने का आह्वान कर रहे हैं। उनके द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में लोगों के विलुप्त होने और दुनिया भर में सामाजिक पतन संबंधी विचारों को उजागर किया गया हैं, जिसे वैज्ञानिक खतरनाक रूप से अनदेखा विषय कहते हैं।

वैज्ञानिकों ने कहा कि वे यह नहीं कह रहे हैं कि सबसे बुरा होने वाला है। वे कहते हैं कि परेशानी यह है कि कोई नहीं जानता कि जलवायु अंत में क्या खेल खेलेगा, कितना संभव या असंभव है तथा दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने के लिए उन गणनाओं की आवश्यकता है।

इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ एक्जिस्टेंशियल रिस्क में अध्ययन के प्रमुख अध्ययनकर्ता ल्यूक केम्प ने कहा मुझे लगता है कि इस बात के आसार नहीं है कि आप अगली शताब्दी में भी विलुप्त होने के करीब देखे जा रहे हैं, क्योंकि मनुष्य अविश्वसनीय रूप से परीस्थि‍ति में ढलना जानता है। यहां तक ​​कि अगर वैश्विक तबाही के 1 फीसदी भी हालात बनते हैं, तो आने वाली सदी में विलुप्त होने का खतरा 1 फीसदी भी बहुत अधिक है।

केम्प ने कहा कि जलवायु परिदृश्य के भयावह स्थि‍ति ध्यान देने के लिए काफी होती है ये रोकथाम और चेतावनी प्रणाली को जन्म दे सकती है।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि खतरों का अच्छी तरह से विश्लेषण दोनों घटनाओं पर विचार करते हैं कि क्या सबसे अधिक होने की संभावना हैं और सबसे बुरा क्या हो सकता है। लेकिन जलवायु परिवर्तन को न मानने वाले, इनके पीछे हटने के कारण, मुख्यधारा के जलवायु विज्ञान ने इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि अंतरराष्ट्रीय लक्ष्यों के करीब आने वाले कम तापमान के बढ़ने के परिदृश्यों पर सबसे अधिक किस बात के आसार हैं।

लेंटन ने कहा वहां इस बात पर पर्याप्त जोर नहीं है कि कैसे चीजें, खतरे, बड़े खतरे गलत भी हो सकते हैं। उन्होंने कहा यह एक हवाई जहाज की तरह है। इसकी अत्यधिक संभावना है कि यह सुरक्षित तरीके से उतरेगा, लेकिन यह केवल इसलिए है क्योंकि सबसे खराब स्थिति की गणना करने के लिए इस पर इतना ध्यान दिया गया था और फिर यह पता लगाया गया था कि दुर्घटना से कैसे बचा जाए।

यह केवल तभी काम करता है जब आप शोध करें कि क्या गलत हो सकता है और यह जलवायु परिवर्तन के साथ पूरी तरह से नहीं किया जा रहा है।

मिशिगन विश्वविद्यालय में  पर्यावरण के अध्यक्ष जोनाथन ओवरपेक ने कहा दांव हमारे विचार से अधिक हो सकते हैं। उन्होंने चिंता जताई है कि दुनिया जलवायु के किन खतरों से ठोकर खा सकती है जिसके बारे में हम नहीं जानते हैं।

जब वैश्विक विज्ञान संगठन जलवायु परिवर्तन को देखते हैं तो वे देखते हैं कि दुनिया में क्या होता है, चरम मौसम, उच्च तापमान, तेजी से पिघलने वाली बर्फ की चादरें, बढ़ते समुद्र और पौधे और पशुओं की विलुप्ति। लेकिन इनसे बहुत अधिक जानकारी नहीं मिल रही हैं कि ये लोगों की सोसाइटी में किस तरह के प्रभाव छोड़ेंगे और मौजूदा समस्याओं जैसे युद्ध, भूख और बीमारी आदि पर इनका किस तरह का असर पड़ेगा।

प्रोफेसर क्रिस्टी एबी ने कहा अगर हम एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने वाले खतरों को नहीं देखते हैं, तो यह और भी दर्दनाक होगा। प्रोफेसर एबी वाशिंगटन विश्वविद्यालय के सार्वजनिक स्वास्थ्य और जलवायु अध्ययनकर्ता हैं।

ईबी ने कहा कि संभावित महामारियों का आकलन करते समय कोविड​​-19 से पहले यह स्वास्थ्य पेशेवरों की गलती थी। उन्होंने बीमारी फैलने की बात की, लेकिन लॉकडाउन, आपूर्ति श्रृंखला की समस्याओं और बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के बारे में नहीं सोचा।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि वे सामाजिक पतन के बारे में चिंतित हैं, जिनमें युद्ध, अकाल, आर्थिक संकट-जलवायु परिवर्तन से जुड़े पृथ्वी पर भौतिक परिवर्तन आदि शामिल हैं।

विक्टोरिया विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक एंड्रयू वीवर ने कहा मैं सभ्यता में विश्वास नहीं करता क्योंकि हम जानते हैं कि यह इस सदी से बाहर हो जाएगी। परीस्थि‍ति के अनुरूप ढलने वाला मनुष्य जीवित रहेगा, लेकिन हमारे समाज जो शहरीकरण कर चुके हैं और ग्रामीण कृषि पर निर्भर हैं, वे नहीं रहेंगे।

ब्राउन यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक किम कॉब ने कहा लोगों के विलुप्त होने के बारे में बात करना एक बहुत प्रभावी संचार उपकरण नहीं है। लोग तुरंत कहते हैं, ठीक है, बस, आप ही जानते हैं, कयामत के दिन के बारे में। उन्होंने कहा कि विलुप्त होने से पहले जो हो रहा है वह काफी खराब है।

सह-अध्ययनकर्ता टिम लेंटन ने कहा कि सबसे खराब स्थिति पर शोध करने से चिंता की कोई बात नहीं हो सकती है, हो सकता है कि आप इन बुरे परिदृश्यों में से कई को पूरी तरह से खारिज कर दें। तब हम सभी को थोड़ा खुश हो जाना चाहिए। यह अध्ययन नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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