जलवायु परिवर्तन की वजह से सर्दियों में भी बढ़ रहा है मच्छरों का प्रकोप:अध्ययन

वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया कि गर्म होती सर्दियों के चलते मच्छर अधिक सक्रिय हो गए हैं तथा ठंड के मौसम में भी ये अब अपने आपको ढाल रहे हैं
Photo : Wikimedia Commons
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जैसा कि हम सभी जानते है दुनिया के कई हिस्सों में गर्मी के मौसम में मच्छरों का आना आम बात है। लेकिन फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के नए शोध ने खुलासा किया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते ये रोग फैलाने वाले मच्छर साल भर में हर दिन की समस्या बन सकते हैं।

सहायक प्रोफेसर ब्रेट शेफर्स ने कहा कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, मच्छर पूरे साल सक्रिय रहते हैं, लेकिन दुनिया के बाकी हिस्सों में ऐसा नहीं है। उष्णकटिबंधीय इलाकों के बाहर, सर्दियों के तापमान के कारण मच्छर एक प्रकार के हाइबरनेशन में चले जाते हैं जिसे डायपॉज कहा जाता है। हम इन मच्छरों को कोल्ड बाउंडेड कहते हैं क्योंकि उनकी गतिविधि कम तापमान से सीमित होती है।

शेफर्स ने कहा हालांकि जलवायु परिवर्तन के चलते हम इस बात की उम्मीद करते हैं कि गर्मियां लंबी और सर्दियां छोटी और गर्म हो जाएंगी। ठंडे में रहने वाले मच्छरों के लिए इसका क्या अर्थ होगा? वे कैसे प्रतिक्रिया देंगे?

इन सवालों के जवाब देने के लिए, अध्ययनकर्ताओं ने उपोष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण जलवायु के बीच विभाजन रेखा पर उत्तर मध्य फ्लोरिडा शहर गेन्सविले में और उसके आसपास एकत्रित मच्छरों के साथ प्रयोग किए। शोधकर्ताओं ने तुलना की कि वर्ष के विभिन्न हिस्सों में एकत्रित मच्छरों ने तापमान में परिवर्तन के प्रति कैसे प्रतिक्रिया दी।

शेफर्स ने कहा कि हमारे अध्ययन में मच्छरों को हम 'प्लास्टिक' कहते हैं, जिसका अर्थ है कि, ये एक रबर बैंड की तरह हैं, तापमान की अलग-अलग सीमा में वे साल के अलग-अलग समय में खिंचाव यानी अधिक और कम तापमान को सहन कर सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि वसंत ऋतु में, जब रात का तापमान ठंडा होता है और दिन का तापमान गर्म होना शुरू हो जाता है, मच्छर अधिक तापमान को सहन कर सकते हैं। शेफर्स ने बताया कि गर्मियों में जब हर दिन का तापमान गर्म होता है, तो वह सीमा सिकुड़ जाती है। शरद ऋतु में, जब तापमान ठंडा होने लगता है, तो सीमा फिर से फैल जाती है। शेफर्स ने कहा कि जैसे ही जलवायु परिवर्तन हमारे शरद ऋतु और सर्दियों को गर्म बनाता है, समशीतोष्ण क्षेत्रों में मच्छर उस समय अधिक सक्रिय होने लगते हैं।

शोधकर्ता ब्रूनो ओलिवेरा ने कहा नतीजे बताते हैं कि आबादी और प्रजातियां वर्तमान में चल रहे जलवायु परिवर्तन को कितनी अच्छी तरह बर्दाश्त कर सकती हैं, हमें साल के अलग-अलग समय में प्रजातियों की गर्मी सम्बन्धी (थर्मल) प्रतिक्रियाओं को मापने की जरूरत है।

मच्छरों पर गर्म और ठंडे तापमान का प्रयोग
शोधकर्ता ओलिवेरा ने कहा यह जानकारी हमें उस तापमान की सीमा के अधिक सटीकता के बारे में जानने में मदद करेगी जो एक प्रजाति सहन कर सकती है। अपने प्रयोग के लिए, शोधकर्ताओं ने गेन्सविले और पास के आईएफएएस ऑर्डवे-स्विशर बायोलॉजिकल स्टेशन के आसपास 70 से अधिक जगहों पर मच्छरों को एकत्र किया, जो शहर के पूर्व में लगभग 20 मील की दूरी पर स्थित 9,500 एकड़ में फैला अनुसंधान और संरक्षण क्षेत्र है।

वैज्ञानिकों ने मच्छरों को विशेष जाल से ललचाया जो कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करते हैं, वही गैस जो मनुष्य और जानवर सांस लेते समय छोड़ते हैं। एक मच्छर के लिए, कार्बन डाइऑक्साइड की एक तेज फूंक का मतलब है कि भोजन उसके पास है। इन जालों के साथ, शोधकर्ताओं ने 18 प्रजातियों के अलग-अलग 28,000 से अधिक मच्छरों को पकड़ा। इस संग्रह से, वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में परीक्षण करने के लिए लगभग 1,000 मच्छरों का रैन्डम्ली नमूना लिया।

प्रत्येक मच्छर को एक शीशी में रखा जाता था जिसे बाद में पानी में डाल दिया जाता था। समय के साथ, शोधकर्ताओं ने शीशियों के अंदर के तापमान को बढ़ाते या घटाते हुए पानी के तापमान को बदल दिया। वैज्ञानिकों ने प्रत्येक मच्छर की गतिविधि की निगरानी की, यह देखते हुए कि मच्छर कब निष्क्रिय होते हैं, इसे तब तक जारी रखा गया जब तक कि ऊपरी या निचले तापमान की सीमा पूरी नहीं हो गई थी।

अध्ययनकर्ता गेसिका योगो ने कहा, यह देखना आश्चर्यजनक था कि प्रयोगों के दौरान ये छोटे जीव उच्च तापमान को कितनी अच्छी तरह सहन कर सकते हैं, यह अक्सर मौसम स्टेशनों द्वारा मापा जाने वाला औसत परिवेश तापमान से ऊपर था। शोधकर्ताओं का कहना है कि वे अभी तक नहीं जानते थे कि तापमान में तेजी से बदलाव करने पर मच्छर इसके अनुसार ढल जाएंगे।

सह-अध्ययनकर्ता और प्रोफेसर डैनियल हैन ने कहा बहुत से लोगों को यह नहीं पता कि प्राकृतिक चयन कम समय के लिए जिंदा रहने वाले जानवरों पर कितनी जल्दी कार्य कर सकता है। क्या हम मच्छर में बदलाव देख रहे हैं या नहीं। तापमान सहन करने के गुण सभी मौसमों में तेजी से प्राकृतिक चयन के कारण होते हैं, मौसमी प्लास्टिसिटी - जैसे कुत्ते अपना फर या खाल बदलते हैं आदि।

शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अध्ययन लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से मुकाबला करने के लिए बेहतर तरीके से तैयार करने में मदद कर सकता है, जैसे मच्छरों से मुकाबला करने जो मनुष्यों और जानवरों में बीमारियों को फैलाते हैं।

शेफर्स ने कहा मच्छरों की सक्रियता जितनी अधिक होगी, इनके बीमारियों को फैलाने का खतरा उतना ही अधिक होगा। यह जानना कि मच्छर वर्ष के अधिक समय तक अधिक सक्रिय रहेंगे, यह इस बात की ओर इशारा करता है कि हम जलवायु परिवर्तन के मुकाबले के लिए किस तरह तैयार होते हैं।

अध्ययनकर्ता पीटर जियांग ने कहा कि निवासी अभी और भविष्य में मच्छरों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सामान्य तरीके से की गई कार्रवाई मच्छरों की आबादी को कम कर सकती हैं। जियांग ने कहा कि हमें अपने आसपास में पड़े पानी से भरे बर्तनों को खाली करने, हटाने या ढकना चाहिए। विशेष रूप से पुरानी बोतलें, टिन के डिब्बे, कबाड़ और टायर, टपकता हुआ नल, की मरम्मत करनी चाहिए, छोटी नावों को उल्ट देना आदी। सप्ताह में दो बार पक्षियों के पीने के लिए रखे पानी और फूलदान का पानी बदलना चाहिए।

शेफर्स ने कहा जब हम एक बात को सोचते हैं कि जलवायु परिवर्तन पौधों और जानवरों को कैसे प्रभावित कर सकता है, तो हम अक्सर प्रजातियों के नए इलाकों में जाने के बारे में बात कर रहे हैं क्योंकि परिस्थितियां बदल रही हैं। दूसरे शब्दों में कहें, कुछ नया हमारे सामने आ रहा है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन उन प्रजातियों को भी प्रभावित करेगा जिनके साथ हम अभी रहते हैं, जैसे आसानी से ढलने वाले मच्छर।  

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