जोशीमठ की तरह हिमाचल के लिंडूर गांव में भारी भू-धंसाव, मौसम में आ रहा बदलाव बड़ा कारण

गांव में भू-धंसाव से 16 घरों में दरारें आई हैं। आईआईटी मंडी के विशेषज्ञों ने जांच शुरू कर दी है।
Photo : लाहौल स्पीति के लिंडूर गांव में घरों में आई दरारें, द्वारा : रोहित पराशर
Photo : लाहौल स्पीति के लिंडूर गांव में घरों में आई दरारें, द्वारा : रोहित पराशर
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जोशीमठ में भू-धंसाव की तर्ज पर हिमाचल प्रदेश में जनजातीय जिले लाहौल के लिंडूर गांव में भी पिछले चार माह में भारी भू घंसाव देखा जा रहा है। लिंडूर गांव में अभी तक 16 घरों में दरारें आ चुकी हैं जिनमें 9 भवनों को भारी नुकसान पहुंच चुका है। वहीं दरारें बढ़ने का सिलसिला लगातार जारी है जिससे ग्रामीणों में भय का माहौल बन गया है। पिछले दो तीन वर्षों सें लाहौल स्पीति जिले में भारी बारिश और प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं अधिक देखने को मिली हैं, जिससे ग्रामीण और विशेषज्ञ भू-धंसाव की इस घटना को जलवायु परिवर्तन से भी जोड़कर देख रहे हैं।

गौर रहे कि इस साल जुलाई माह में लाहौल-स्पीति जिले में बारिश से 72 सालों का रिकार्ड टूटा था। जिले में नौ जुलाई 2023 को 112.2 मिली मीटर बारिश हुई, जबकि सामान्य बारिश की अगर बात करें तो इस दिन केवल 3 मिमी बारिश होनी चाहिए थी। यानी कि एक दिन में 3640 प्रतिशत अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई। आम तौर पर जुलाई महीने में इस जिले में 131.5 मिमी बारिश होती है। इसका मतलब है कि नौ जुलाई को यहां महीने भर के बराबर बारिश हो चुकी है। इससे पहले लाहौल स्पीति में 1951 में लाहौल स्पीति में 24 घंटों में 73 मिमी बारिश दर्ज की गई थी।

लिंडूर गांव के हीरा लाल रास्पा ने बताया कि पिछले दो तीन सालों से गांव में भू-धंसाव की घटनाओं में तेजी आई है। इसके पीछे मुख्य कारण मौसम में आ रहा बदलाव है। उन्होंने बताया कि इस बार भारी बारिशें हुई हैं जिससे पूरे गांव में दरारें बढ़ गई हैं और इससे निपटने के लिए जल्द ही काम करने की जरूरत देखी जा रही है।

 
इसके अलावा गोहरमा पंचायत की प्रधान सरिता ने बताया कि लिंडूर गांव के सभी घरों में दरारें आ चुकी हैं और लोगों की खेती वाली जमीनों को भी भारी नुकसान पहुंचा है। उन्होंने कहा कि लोगों में भय बना हुआ है और हमने प्रशासन से गांव को बचाने और दरारें के कारणों की शीघ्र जांच पूरी कर आगामी कार्रवाई करने की मांग की है।

जिला उपायुक्त लाहौल-स्पीति राहुल कुमार का कहना है कि लिंडूर गांव और इसके आसपास के इलाके आ रही दरारों और भू-धंसाव के कारणों की जांच के लिए आईआईटी मंडी और एनएचपीसी के विशेषज्ञों से क्षेत्र का सर्वेक्षण करवाया जा रहा है। दोनों संस्थाओं के विशेषज्ञों ने मौके का कई बार मुआयना कर लिया और अभी उनकी फाइनल रिपोर्ट आना बाकि है। इसके अलावा गांव के साथ लगते नाले को चैनलाइज करने के लिए चरणबद्ध तरीके से काम किया जा रहा है।
 
क्षेत्र में बढ़ रही भू-धंसाव और प्राकृतिक आपदाओं को देखते हुए लिंडूर, जसरथ, जोबरंग, जुंडा, ताड़ग और फूड़ा गांव के लोगों ने क्षेत्र की पारिस्थितिकी में आए बदलावों पर गहन शोध की मांग की है। लाहौल पोटेटो सोसायटी के अध्यक्ष सुदर्शन जास्पा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का असर क्षेत्र में दिखने लगा है और इससे निपटने के लिए अब हमें सही नीतियों का निर्माण कर काम करने की जरूरत है। पिछले कुछ सालों में क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाएं अधिक देखने को मिली हैं जो बड़ी चिंता का विषय है। हमने सरकार से पूरे क्षेत्र में गहन शोध करने की मांग की है और इसके बाद ही क्षेत्र में विकास को गति दी जाएगी।
जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय में पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर डॉ सुनील धर का कहना है कि पर्यावरण में आ रहे बदलावों की वजह से बारिश की प्रवृत्ति पर गहरा असर पड़ा है अब एकदम बहुत अधिक बारिश देखने को मिल रही है जिसकी वजह से ढलानें अस्थिर  हो रही हैं और भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। क्योंकि लाहौल स्पीति जिला कम बारिश वाले क्षेत्र में आता है और इस क्षेत्र में अब ज्यादा बारिश देखने को मिल रही हैं तो भूस्खलन की घटनाओं की वजह से नुकसान भी अधिक देखने को मिलेगा।
जर्नल ऑफ इंडियन सोसायटी ऑफ रिमोट सेंसिंग में हिमालयन क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के पड़ रहे प्रभावों के आंकलन को लेकर प्रकाशित शोधपत्र में लाहौल स्पीति की केस स्टडी में बताया गया है कि लाहौल क्षेत्र में 2014 के बाद ग्लेशियरों के पिघलने से बन रही ग्लेशियर लेक के आकार में बहुत तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। इससे इस क्षेत्र में ग्लेशियर लेक फटने से भारी तबाही की संभावना जताई गई है। गौर करने लायक है  कि जहालमा नाले में ग्लेशियर लेक के फटने से इस साल की बरसात और पिछले वर्ष की बरसात में भारी नुकसान पहुंचा था और इस नाले में आई बाढ़ के मलबे से चिनाब नदी का बहाव भी कई बार रूक चुका है।

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