पिछले दो दशकों के दौरान ग्लेशियरों में जमा बर्फ रिकॉर्ड तेजी से पिघल रही है| शोध के अनुसार 2000 से 2019 के दौरान दुनिया भर में ग्लेशियरों में जमा बर्फ औसतन 26,700 करोड़ टन प्रति वर्ष की दर से पिघल रही है, जोकि समुद्र के जलस्तर में होने वाली वृद्धि के 21 फीसदी के बराबर है|
इससे पहले 2000 से 2004 के बीच यह 22,700 करोड़ टन प्रति वर्ष की दर से पिघल रही थी| अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में छपे शोध के मुताबिक बर्फ के पिघलने की यह दर 2015 से 2019 के बीच रिकॉर्ड 29,800 करोड़ टन प्रतिवर्ष पर पहुंच गई थी| जिसका मतलब है कि पिछले 20 वर्षों में बर्फ के खोने की दर में 31.3 फीसदी का इजाफा हुआ है|
वहीं यदि इस अवधि के दौरान इन ग्लेशियरों पर जमा बर्फ की मोटाई को देखें तो वो करीब दोगुनी रफ्तार से पिघल रही है| जहां इन ग्लेशियरों से 2000 में औसतन 36 सेंटीमीटर बर्फ पिघली थी वो 2019 में बढ़कर 69 सेंटीमीटर पर पहुंच गई थी| शोधकर्ताओं का अनुमान है कि पिछले 20 वर्षों में यह ग्लेशियर अपनी कुल बर्फ का करीब 4 से 5 फीसदी हिस्सा खो चुके हैं|
यह ग्लेशियर किस रफ्तार से पिघल रहे हैं इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने उपग्रहों की मदद से दुनिया के करीब 217,175 ग्लेशियरों का अध्ययन किया है, जोकि 7 लाख वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र में फैले हैं| यह दुनिया के करीब 99.9 फीसदी ग्लेशियर हैं| यदि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका पर जमा बर्फ के पिघलने से तुलनात्मक रूप में देखें तो पिछले 20 वर्षों में इन ग्लेशियरों से जितनी बर्फ पिघली हैं वो ग्रीनलैंड में बर्फ के पिघलने से करीब 47 फीसदी ज्यादा है, जबकि अंटार्कटिका में बर्फ के पिघलने से करीब दोगुनी ज्यादा है|
ग्लेशियरों के पिघलने के कारण हर वर्ष 0.74 मिमी की गति से बढ़ रहा है समुद्र का जलस्तर
वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसा तापमान में हो रही तीव्र वृद्धि के कारण हो रहा है, जिसके लिए हम इंसान जिम्मेवार हैं| दुनिया में जिस तेजी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं उसका असर सभी तटीय क्षेत्रों पर पड़ेगा| निष्कर्ष बताते हैं कि 2000 से 2019 के बीच ग्लेशियरों के पिघलने के कारण हर वर्ष समुद्र का जलस्तर 0.74 मिमी की गति से बढ़ रहा है। जिसका मतलब है कि पिछले 20 वर्षों के दौरान समुद्र के जलस्तर में जो वृद्धि हुई है उसके पांचवे हिस्से के लिए इन ग्लेशियरों का पिघलना ही जिम्मेवार है| शोध के अनुसार सदी के अंत तक करीब 20 करोड़ लोग समुद्र के बढ़ते जलस्तर की जद में होंगे|
यह ग्लेशियर भारत सहित कई देशों में साफ पानी का एक बहुत बड़ा स्रोत हैं| जिसका उपयोग कृषि और पेयजल के लिए किया जाता है| भारत और चीन जैसे देशों में जहां भूजल तेजी से घट रहा है वहां ज्यादा से ज्यादा लोग अपनी जरूरतों के लिए नदी जल पर निर्भर होते जा रहे हैं|
वहां कुछ दशकों तक जब ग्लेशियर पिघल रहे हैं और नदी जल में वृद्धि कर रहे हैं तब तक तो स्थिति ठीक रहेगी, लेकिन एक बार यदि यह ग्लेशियर पूरी तरह पिघल गए या इनपर जमा बर्फ की मात्रा घट गई तो इनपर निर्भर नदियों में भी जलप्रवाह घट जाएगा| जिसका असर यहां रहने वाले करोड़ों लोगों के जीवन पर पड़ेगा| अनुमान है कि जिस तेजी से यह पिघल रहे हैं उसके चलते अगले तीन दशकों में करीब 100 करोड़ लोग पीने के पानी और खाद्य की कमी का सामना करने को मजबूर हो जाएंगे|