जलवायु संकट: क्या है तुवालु के लिए ऑस्ट्रेलिया की नई वीजा नीति

क्या ऑस्ट्रेलिया की नई 'क्लाइमेट वीजा' नीति से जलवायु विस्थापन का समाधान निकल पाएगा

लगभग 10,000 लोगों की आबादी वाले तुवालु में नौ छोटे-छोटे कोरल द्वीप शामिल हैं। यह दुनिया के सबसे छोटे देशों में से एक है। लेकिन अब यह एक गंभीर अस्तित्व संकट का सामना कर रहा है। समुद्र का बढ़ता जलस्तर इसकी भूमि को निगल रहा है, जिससे यह जलवायु परिवर्तन के कारण रहने एक ऐसा देश बनता जा रहा है जहां रहा नहीं जा सकता। इसका प्रभाव पहले से ही नजर आने लगा है। समुद्री पानी बहुमूल्य पेयजल कुओं में घुसपैठ कर रहा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगली सदी के भीतर तवालु की राजधानी फुनाफूटी में जहां अधिकांश जनसंख्या रहती हैं वहां 90 फीसद से अधिक क्षेत्र केवल दैनिक ऊंचे ज्वार से ही डूब सकता है। इस अभूतपूर्व संकट का जवाब देने के लिए ऑस्ट्रेलिया ने पहली बार "क्लाइमेट वीजा" नामक एक पहली नीति शुरू की है। यह योजना फालेपिली यूनियन संधि का हिस्सा है और इसका मकसद है: "गरिमा के साथ आवाजाही का मार्ग" प्रदान करना। इस वीजा योजना के तहत हर साल 280 तुवालु नागरिकों को स्थायी निवास और स्वतंत्र आवाजाही का अधिकार मिलेगा। लेकिन इस दर से पूरी आबादी को स्थानांतरित करने में लगभग 40 साल लगेंगे। इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया तुवालु में तटीय अनुकूलन परियोजनाओं में करोड़ों डॉलर का निवेश भी कर रहा है। लेकिन तुवालु सिर्फ राहत की प्रतीक्षा में नहीं बैठा है — यह वैश्विक मंच पर एक प्रभावशाली आवाज बन चुका है, जो जलवायु परिवर्तन के खतरों को उजागर कर रहा है। देश के पूर्व विदेश मंत्री साइमन कोफे ने दुनिया का ध्यान खींचने के लिए एक लैगून के अंदर खड़े होकर भाषण दिया था, यह एक शक्तिशाली प्रतीकात्मक संदेश था। इसके अलावा, तुवालु ने वैश्विक जीवाश्म ईंधन अप्रसार संधि (global fossil fuel nonproliferation treaty) की भी मांग की है — यह एक ऐसी संधि होगी जो दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन के उपयोग और विस्तार को रोकने का प्रयास करेगी। यह अनोखी वीज़ा योजना तुवालु को जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले अंतरराष्ट्रीय विस्थापन का पहला परीक्षण मामला बना रही है — जिससे यह तय होगा कि आने वाले दशकों में जब लाखों लोग जलवायु संकट से विस्थापित होंगे, तब दुनिया किस प्रकार से उनका समर्थन और पुनर्वास करेगी।

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