जलवायु संकट: बढ़ते तापमान से बदल रहा तितलियों का रंग-रूप

एक नए अध्ययन से पता चला है कि बढ़ते तापमान से तितलियों के रंग-रूप पर असर पड़ रहा है, जो उन्हें पहले से कम धब्बेदार बना रहा है
सूखी घास में घुल मिल चुकी मैदानी भूरी तितली (मैनिओला जुर्टिना); फोटो: आईस्टॉक
सूखी घास में घुल मिल चुकी मैदानी भूरी तितली (मैनिओला जुर्टिना); फोटो: आईस्टॉक
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बढ़ता तापमान न केवल हम इंसानों को बल्कि अन्य जीवों को भी प्रभावित कर रहा है। इससे तितलियां भी सुरक्षित नहीं है। एक नए अध्ययन में सामने आया है कि बढ़ते तापमान से तितलियों के रंग-रूप पर असर पड़ रहा है, जो उन्हें पहले से कम धब्बेदार बना रहा है।

इस बारे में मैदानी भूरी तितलियों (मैनिओला जुर्टिना) पर किए अध्ययन से पता चला है कि यदि यह मादा तितलियां गर्म मौसम में बड़ी होती हैं, तो उन पर कम धब्बे होते हैं। यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित हुए हैं।

रिसर्च से पता चला है कि जब इस प्रजाति की मादा तितली 11 डिग्री सेल्सियस में बढ़ती है तो उसके शरीर पर औसतन छह धब्बे होते हैं, जबकि 15 डिग्री सेल्सियस में विकसित होने वाली मादा तितलियों के पंखों पर औसतन केवल तीन धब्बे ही मौजूद थे। गौरतलब  है कि वैज्ञानिक लम्बे समय से इस सवाल में उलझे थे कि आखिर इन तितलियों के पंखों पर धब्बे कम ज्यादा क्यों होते हैं।

इस बारे में सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड कंजर्वेशन और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर रिचर्ड फ्रेंच-कॉन्स्टेंट का कहना है कि, "मेडो ब्राउन के सामने के पंखों पर हमेशा बड़े 'आईस्पॉट' होते हैं, जो शिकारी जीवों को से बचने के लिए होते हैं। वहीं उनके पंखों के पिछले हिस्सों पर भी छोटे-छोटे धब्बे होते हैं, जो आराम करने के दौरान तितली को वातावरण में घुलने-मिलने में मदद करते हैं।"

उनका आगे कहना है कि, “जब मादा तितलियों को अपने प्यूपा चरण के दौरान गर्म तापमान का सामना करना पड़ता है, तो उनके पिछले पंखों पर कम धब्बे होते हैं।“ गौरतलब है कि प्यूपा, तितलियों के विकास का एक चरण है, इसके बाद लार्वा तितली में विकसित हो जाता है। बता दें कि एक अंडे से निकला लार्वा जब बड़ा होता है तो उसके चारों ओर कड़ा खोल बन जाता है, जिसे प्यूपा कहा जाता है। इस तितली का प्यूपा चरण करीब 28 दिनों का होता है।

इससे पता चलता है कि तितलियां परिस्थितियों के आधार पर अपने छलावरण को अनुकूलित करती हैं। उदाहरण के लिए, कम धब्बे होने से सूखी, भूरी घास पर उन्हें पहचानना कठिन हो सकता है जो गर्म मौसम में अधिक आम होगा।

हालांकि शोधकर्ताओं के मुताबिक नर तितलियों में इतना अधिक बदलाव नहीं देखा गया। उनके मुताबिक शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके यह धब्बे मादाओं को आकर्षित करने के लिए अहम होते हैं।

गौरतलब है कि जीवविज्ञानी ईबी फोर्ड ने इस बारे में उल्लेखनीय काम किया है, जो दर्शाता है कि इन तितलियों में मौजूद यह धब्बे 'आनुवंशिक बहुरूपता' को दर्शाते हैं, जिसका मतलब है कि एक ही आबादी के भीतर बहुत से आनुवंशिक रूप मौजूद होते हैं।

हालांकि इस नए अध्ययन में सामने आया है कि तितली के धब्बों  में यह बदलाव, "थर्मल प्लास्टिसिटी" के कारण होता है, जिसका मतलब है कि यह बदलते तापमान के प्रति अनुकूल होने की क्षमता रखती हैं। वैज्ञानिकों का यह भी अनुमान है कि जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि हो रही है, तितलियों के पंखों पर मौजूद यह धब्बे साल-दर-साल कम होते जाएंगे।

प्रोफेसर रिचर्ड के मुताबिक यह जलवायु परिवर्तन का एक अप्रत्याशित परिणाम है। हम बढ़ते तापमान के साथ ज्यादातर यह सोचते हैं कि वो उत्तर की ओर प्रवास करेंगी, लेकिन यह उनके स्वरूप पर भी असर डाल रहा है।

हाल ही में किए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के चलते बारिश के पैटर्न में आता बदलाव तितली जैसे ‘एक्टोथर्म’ जीवों के लिए खतरा पैदा कर रहा है। गौरतलब है कि ऍक्टोथर्म,​ वो जीव होते हैं जो अपने शरीर को गर्म बनाए रखने के लिए आसपास के वातावरण में मौजूद गर्मी का उपयोग करते हैं। इनके शरीर की अंदरूनी प्रक्रियाएं उनके अपने शरीर के तापमान पर नियंत्रण नहीं रख पाती हैं।

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