सामाजिक-आर्थिक प्रभावों की बात करें तो गरीब आबादी जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक प्रभावित हो रही है, उन्हें अधिक खतरे उठाने पड़ रहे हैं।
सामाजिक-आर्थिक प्रभावों की बात करें तो गरीब आबादी जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक प्रभावित हो रही है, उन्हें अधिक खतरे उठाने पड़ रहे हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक

जलवायु संकट: अमीर देशों में अमीर, गरीब देशों में गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित

अगले 20 सालों में, जलवायु परिवर्तन अनियमित मौसम के कारण आर्थिक खतरों में और भी इजाफा होगा।
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जलवायु में दिन प्रति दिन हो रहा बदलाव पहले से ही भारी आर्थिक नुकसान पहुंचा रहा है। भविष्य में मौसम की बढ़ती चरम घटनाएं आर्थिक गतिविधि और विकास में रुकावट डालती रहेंगी। कुल मिलाकर जलवायु परिवर्तन का असर दुनिया भर में एक जैसा नहीं है। तापमान में बदलाव और इसके कारण होने वाली बारिश की चरम घटनाएं आर्थिक गतिविधि में रुकावट के लिए जिम्मेवार हैं, ये रुकावटें क्षेत्रीय आधार पर अलग-अलग होती हैं।

इन प्रभावों के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों की बात करें तो गरीब आबादी जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक प्रभावित हो रही है, उन्हें अधिक खतरे उठाने पड़ रहे हैं। बदलती जलवायु पर लगाम लगाए बिना गरीबी में पड़े लोगों को उससे बाहर निकालना बहुत कठिन है।

अब एक नए शोध में शोधकर्ताओं ने विश्लेषण किया कि कैसे अनियमित मौसम की घटनाएं, जो ग्लोबल वार्मिंग के कारण और भी विनाशकारी हो गई हैं, विभिन्न आय वर्ग में दुनिया भर के उत्पादन और खपत पर असर डालती है। यह अध्ययन पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (पीआईके) के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किया गया है।

"दुनिया भर में मौसम में तेजी से होने वाले बदलाव का अमीर और गरीब पर पड़ने वाला आर्थिक प्रभाव" नामक शीर्षक शोधपत्र नेचर सस्टेनेबिलिटी पत्रिका में प्रकाशित किया गया है

शोध के परिणाम पिछले अध्ययनों की पुष्टि करते हैं कि दुनिया भर में सबसे गरीब लोग जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे बड़ा खतरा उठाते हैं। अध्ययन में इस बात की भी तस्दीक की गई है कि अमीरों के लिए भी खतरों में भारी इजाफा हो रहा है।

ब्राजील या चीन जैसी तेजी से बदलती अर्थव्यवस्थाएं भी गंभीर प्रभावों और व्यापार के बुरे प्रभावों की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। सभी देशों में, ये देश अस्थिर मौसम और प्रतिकूल व्यापार प्रभावों के गंभीर प्रभावों के कारण सबसे अधिक खतरों का सामना करते हैं।

जैसे-जैसे धरती का तापमान बढ़ रहा है, इन खतरों के अधिकतर देशों में और भी बदतर होने की आशंका जताई गई है, जिसका वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, जिससे दुनिया भर में वस्तुओं और सेवाओं पर असर पड़ेगा।

पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (पीआईके) के शोधकर्ता ने के शोध के हवाले से कहा कि अगले 20 सालों में, जलवायु परिवर्तन अनियमित मौसम के कारण आर्थिक खतरों में और भी इजाफा होगा।

शोध में कहा गया है की दुनिया भर में सबसे ज्यादा खतरे में सबसे गरीब लोग होंगे। लेकिन अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे देशों में आर्थिक जोखिम में सबसे ज्यादा वृद्धि अमीर लोगों के लिए है। इस प्रकार, दुनिया भर के उपभोक्ताओं को, चाहे उनकी आय कुछ भी हो, ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ती चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, कार्बन को कम किए बिना हम इन चुनौतियों का सामना नहीं कर पाएंगे।

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