25 वर्षों में अंटार्कटिका ने खोई साढ़े सात लाख करोड़ टन बर्फ, कौन है इसके लिए जिम्मेवार?

रिसर्च के अनुसार अंटार्कटिका में 40 फीसदी से अधिक बर्फ की चट्टानें सिकुड़ चुकी हैं और उनमें से आधी में सुधार के कोई संकेत नहीं दिख रहे
बढ़ते तापमान के साथ अंटार्कटिका में तेजी से पिघलते हिमखंड, फोटो: आईस्टॉक
बढ़ते तापमान के साथ अंटार्कटिका में तेजी से पिघलते हिमखंड, फोटो: आईस्टॉक
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आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले 25 वर्षों में अंटार्कटिका करीब साढ़े सात लाख करोड़ टन बर्फ खो चुका है। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि अंटार्कटिका में 40 फीसदी से अधिक बर्फ की चट्टानें सिकुड़ चुकी हैं और उनमें से आधी चट्टानों में सुधार के कोई संकेत नहीं दिख रहे। वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसा बढ़ते तापमान और जलवायु में आते बदलावों की वजह से हो रहा है।

यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए अध्ययन से पता चला है कि 1997 से 2021 के बीच 25 वर्षों में अंटार्कटिका में मौजूद 162 में से 71 बर्फ की चट्टानों में गिरावट आई है, जबकि इस दौरान 29 में बर्फ की मात्रा बढ़ी है। वहीं 62 में कोई खास बदलाव नहीं दर्ज किया गया है। इनमें से 68 शेल्फ में "महत्वपूर्ण" कमी दर्ज की गई है।

रिसर्च के मुताबिक पश्चिमी हिस्से में बर्फ की कई चट्टानों की स्थिति बेहद नाजुक है जहां 48 शेल्फ ने करीब 30 फीसदी बर्फ को पूरी तरह खो दिया है। यह इस बात का एक और सबूत है कि बढ़ते तापमान के साथ अंटार्कटिका तेजी से बदल रहा है। गौरतलब है कि अंटार्कटिका एक विशाल महाद्वीप है, जो आकार में ब्रिटेन से करीब 50 गुणा है।

बता दें कि बर्फ की यह शेल्फ, अंटार्कटिका के आसपास के समुद्रों पर तैरती हैं, जो बर्फ की चादरों का ही विस्तार हैं। यह अंटार्कटिका की जमीन के आसपास के समुद्रों तक फैली होती हैं। यह शेल्फ ग्लेशियरों के अंत में विशाल "स्टॉपर्स" की तरह काम करते हैं, जिससे महासागरों में बर्फ के पिघलने की गति धीमी हो जाती है।

ग्राफिक अंटार्कटिक क्षेत्र में पानी के तापमान को प्रदर्शित करती है। पश्चिमी हिस्से में, समुद्र तल का तापमान दो डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया है, जो ऊपरी बर्फ को पिघलाने के लिए पर्याप्त गर्म है। वहीं पूर्वी हिस्से में समुद्र का तापमान ठंडा है। फोटो: डॉक्टर बेंजामिन डेविसन/ लीड्स विश्वविद्यालय

ऐसे में जब बर्फ की यह परतें पतली या छोटी हो जाती हैं, तो ये "स्टॉपर्स" कमजोर पड़ जाते हैं, जिससे ग्लेशियरों से कहीं ज्यादा बर्फ महासागरों में प्रवाहित होने लगती है।

जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित इस रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि जहां अंटार्कटिका के पश्चिमी हिस्से की करीब-करीब बर्फ सभी चट्टानों में गिरावट आई है। वहीं इसके विपरीत, पूर्वी हिस्से में बर्फ की अधिकांश शेल्फ में या तो बर्फ बढ़ी है या उनके आयतन में कोई बदलाव नहीं आया है। आइस शेल्फ में जमा बर्फ की सही स्थिति का आंकलन करने के लिए अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उपग्रहों और रडारों से प्राप्त 100,000 से अधिक छवियों का विश्लेषण किया है।

ऐसा क्यों हो रहा है इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर बेंजामिन डेविसन का कहना है कि आइस शेल्फ पर पड़ते प्रभावों की एक मिश्रित तस्वीर सामने आई है और इसका संबंध अंटार्कटिका के आसपास समुद्र के तापमान और समुद्री धाराओं से है।" उनके मुताबिक अंटार्कटिका के पश्चिमी हिस्से गर्म पानी का सामना करते हैं, जो बर्फ की परतों को नीचे से जल्द कमजोर कर सकता है। वहीं दूसरी ओर पूर्वी अंटार्कटिका का अधिकांश भाग मौजूदा समय में तट के पास ठन्डे पानी से घिरा है जो उसे गर्म पाने से बचाता है।

प्राकृतिक नहीं यह गिरावट, बदलती जलवायु है इसके लिए जिम्मेवार

वैज्ञानिकों के अनुसार इन 25 वर्षों में अंटार्कटिका पर जमा कुल 67 लाख करोड़ टन बर्फ पिघली है। वहीं उसकी भरपाई के लिए 59 लाख करोड़ टन बर्फ और जमा हुई है। मतलब की इस दौरान वहां मौजूद बर्फ में 750,000 करोड़ टन की शुद्ध गिरावट आई है।

डॉक्टर बेंजामिन  को लगता था कि अधिकांश हिमखंड जल्द सिकुड़ जाएंगें, और फिर धीरे-धीर वापस बढ़ेंगें। लेकिन ऐसा नहीं है उनके अनुसार इनमें से करीब आधे से ज्यादा हिमशैल लगातार छोटे होते जा रहे हैं उनमें सुधार नहीं हो रहे हैं।

उनका मानना है कि इंसानों की वजह से जिस तरह तापमान में वृद्धि हो रही है वो इसकी सबसे ज्यादा बड़ी वजह है, क्योंकि यदि जलवायु के पैटर्न में आते प्राकृतिक बदलाव की वजह से होता तो पश्चिम की इन बर्फ की चट्टानों में सुधार के कुछ संकेत तो जरूर सामने आते।

25 वर्षों के इस अध्ययन के दौरान गेट्ज आइस शेल्फ ने बड़ी मात्रा में बर्फ खोई है। अनुमान है कि इस शेल्फ से करीब 190,000 करोड़ टन गायब हो चुकी है। इस नुकसान का केवल पांच फीसदी इसलिए हुआ क्योंकि बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़े इससे टूटकर समुद्र में समा गए। वहीं अधिकांश में गिरावट की वजह इन आइस शेल्फ के आधार का पिघलना था।

इसी तरह पाइन द्वीप की आइस शेल्फ से भी करीब 130,000 करोड़ टन बर्फ पिघल चुकी है। इस नुकसान के करीब एक तिहाई हिस्से यानी  45,000 करोड़ टन के लिए बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़ों के टूटकर समुद्र में गिरने को जिम्मेवार माना गया है। वहीं इनके विपरीत अमेरी आइस शेल्फ जोकि अंटार्कटिका के दूसरी ओर स्थित है वहां बर्फ में 120,000 करोड़ टन की वृद्धि हुई है।

शोध के मुताबिक यदि बर्फ की यह परतें गायब या छोटी हो जाती हैं तो यह इससे न केवल अंटार्कटिका की बर्फ प्रणाली पर बल्कि वैश्विक स्तर पर महासागर के सर्कुलेशन पर भी गंभीर प्रभाव होंगें। बता दें कि यह सर्कुलेशन एक "कन्वेयर बेल्ट" की तरह है जो महत्वपूर्ण पोषक तत्वों, गर्मी और कार्बन को इस नाजुक ध्रुवीय पारिस्थितिकी तंत्र के अंदर और बाहर ले जाता है।

रिसर्च के अनुसार बर्फ की इन शेल्फ और ग्लेशियरों से आने वाला पानी समुद्र की तरह खारा न होकर पूरी तरह ताजा होता है। पिछले 25 वर्षों के दौरान, इन आइस शेल्फ से करीब 66,90,000 करोड़ टन ताजा पानी अंटार्कटिका के आसपास दक्षिणी महासागर में बह गया।

दक्षिणी महासागर में, भारी, खारा पानी समुद्र तल तक चला जाता है, जो वैश्विक महासागर की इस 'कन्वेयर बेल्ट' को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पानी का यह नीचे की ओर प्रवाह उन इंजनों में से एक की तरह काम करता है जो इस कन्वेयर बेल्ट को चलाता है।

वहीं अंटार्कटिका का ताजा पानी, समुद्र के खारे पानी को पतला कर देता है, जिससे यह साफ और हल्का हो जाता है, जिसे नीचे जाने में अधिक समय लगता है। इससे समुद्र का सर्कुलेशन सिस्टम कमजोर हो सकता है। जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन ने भी इसकी पुष्टि की है कि यह प्रक्रिया पहले से चल रही है।       

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