ठंडे ध्रुवीय महासागर में पाए जाने वाले फाइटोप्लांकटन बड़े पैमाने पर ऑटोट्रॉफिक सूक्ष्मजीवों का एक समूह है जिसमें शैवाल और साइनोबैक्टीरिया शामिल हैं। ये सभी मिलकर दुनिया भर में वार्षिक कार्बन निर्धारण का लगभग 50 फीसदी का योगदान देते हैं। साथ ही ठंडे ध्रुवीय महासागर सबसे अधिक खाने की चीजों को पैदा करने के लिए जाने जाते हैं। इस खाद्य प्रणाली के पीछे सूक्ष्म, प्रकाश संश्लेषक शैवालों की अहम भूमिका हैं।
लेकिन अब एक नए अध्ययन से पता चला है कि मानवजनित जलवायु परिवर्तन की वजह से शैवाल का यह ठंडे पानी का वातावरण गर्म हो रहा है। शैवाल अपने आपको गर्म पानी के अनुकूल बनाने के लिए बदल रहे हैं। यह एक ऐसी प्रवृत्ति है जो नाजुक समुद्री खाद्य प्रणाली को अस्थिर करने और महासागरों के बदलने का खतरा है।
समुद्री खाद्य प्रणाली के आधार पर सूक्ष्म प्रकाश संश्लेषक जीव होते हैं जिन्हें फाइटोप्लांकटन कहा जाता है (ग्रीक फाइटो से 'पौधे' और 'वांडरर' के लिए प्लैंकटोस)। लेकिन वे दुनिया भर के महासागर में अलग-अलग होते हैं। उष्णकटिबंधीय सहित गर्म पानी में फाइटोप्लांकटन समुदायों में प्रोकैरियोट्स एक बिना नाभिक के सूक्ष्मजीव होता है।
हालांकि, ध्रुवों के पास ठंडा पानी यूकेरियोट्स नाभिक वाले सूक्ष्मजीव के लिए महत्वपूर्ण है। ये प्रकाश संश्लेषक यूकेरियोट्स या शैवाल, ठंडे, लेकिन ध्रुवीय पानी में उत्पादक खाद्य प्रणाली का आधार बनाते हैं।
ईस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय (यूईए, यूके) के समुद्री सूक्ष्म जीवविज्ञानी थॉमस मॉक ने कहा हमारा बहुत सारा भोजन यूकेरियोटिक फाइटोप्लांकटन के कारण उत्तरी अटलांटिक, उत्तरी प्रशांत और दक्षिण प्रशांत मत्स्य पालन से आता है। प्रोकैरियोट्स सभी रसदार प्रोटीन और लिपिड का उत्पादन करने में सक्षम नहीं हैं जिन्हें यूकेरियोट्स कहा जाता है।
लेकिन नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक नए अध्ययन के मुताबिक गर्म पानी और प्रोकैरियोट्स के वर्चस्व वाले समुदाय यूकेरियोट्स की जगह पहले से कहीं ज्यादा आसानी से ले सकते हैं। मॉक ने कहा यह पूरे खाद्य प्रणाली या जाल में महत्वपूर्ण योगदान देता है और इसलिए पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं इन पर निर्भर करते हैं।
मॉक और अन्य प्रमुख वैज्ञानिकों ने अध्ययन शुरू किया जिसका उद्देश्य प्रयोगशाला में यूकेरियोटिक फाइटोप्लांकटन समुदाय के अलग-अलग अक्षांश के साथ कैसे बदलते हैं, इसकी बारीकियों को समझना था।
एक अदृश्य खतरा जो लगातार बढ़ रहा है
टीम ने नमूने का पता लगाने, उन्हें एकत्र करने और सूचीबद्ध करने के लिए अभियान चलाया और शैवाल से जुड़े माइक्रोबायोम सहित शैवाल समुदायों में बदलाव के पैटर्न की तलाश की। जो कि शैवाल विविधता और जीन अभिव्यक्ति को प्रभावित करते हैं। चार शोधों के आधार पर ध्रुव से ध्रुव तक नौकायन करते हुए, उन्होंने आर्कटिक महासागर, उत्तरी अटलांटिक महासागर, दक्षिण अटलांटिक महासागर और दक्षिण महासागर में ट्रांससेक्ट के साथ शैवालों का नमूना लेने के लिए अपने स्वयं के बंद कंटेनरों को समुद्र के पानी में डुबाया।
शैवालों को छानकर अलग करने के बाद, उन्होंने सूक्ष्म जीवों की पहचान करने के लिए डीएनए 'मार्कर' जीन अनुक्रमों को अनुक्रमित किया। यह निर्धारित करने के लिए कि शैवाल में कौन से जीन हैं, टीम ने उनके आरएनए प्रतिलिपियों को अनुक्रमित किया। सभी अनुक्रमण जेजीआई सामुदायिक विज्ञान कार्यक्रम के माध्यम से किया गया था।
बीटा विविधता नामक एक पारिस्थितिकी मीट्रिक का उपयोग करते हुए, टीम ने देखा कि दुनिया भर के महासागरों में शैवाल धीरे-धीरे नहीं बदले। इसके बजाय, उन्होंने दो बड़े भौगोलिक समूहों में तेजी से बदलाव किया, वे ठंडे, ध्रुवीय जल में और जो गर्म, बिना ध्रुव वाले पानी में बदले। दूसरे शब्दों में कहें तो कुछ शैवाल गर्मी पसंद करते हैं जबकि कुछ नहीं।
जेजीआई फंगल और शैवाल प्रोग्राम प्रमुख और सह- अध्ययनकर्ता इगोर ग्रिगोरिएव ने कहा हम समुद्र के बारे में सरलता से, एक प्रकार के सजातीय माध्यम के रूप में सोच सकते हैं। वास्तव में, ऐसा नहीं है पोषक तत्वों, तापमान और अन्य भौतिक-रासायनिक गुणों में अंतर है। लेकिन फिर भी, समुद्र में कोई सीमा नहीं है। यहां जो पाया गया वह शैवाल समुदायों का यह अदृश्य विभाजन है।
टीम ने पाया कि इन शैवालों के समुदायों के बीच की सीमा या जैव विविधता 'ब्रेक पॉइंट' के माध्यम से पानी में होती है, जिसका सतह का औसतन तापमान लगभग 58 डिग्री फारेनहाइट होता है। समुद्र के चरम सीमा तक लगभग 28 और 97 डिग्री फारेनहाइट तक ठंडा होता है।
अध्ययनकर्ता ठंडे और गर्म माइक्रोबियल नेटवर्क के इस मूल अवलोकन की ओर इशारा करते हैं और उनके बीच जैव-भौगोलिक सीमा कितनी स्पष्ट है इस बात का पता लगाते हैं। उस संबंध में आंकड़े कुछ हद तक अच्छे हैं। यदि प्रणाली गड़बड़ा गई, तो पहले जैसे स्तर पर वापस लौटना बहुत कठिन हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन वास्तव में ध्रुवीय जलवायु में समुद्री बर्फ और पानी के तापमान को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है, जो इन ध्रुवीय समुदायों को संकट में डाल रहा है।
अध्ययनकर्ता कारा मार्टिन और कैटरीन श्मिट ने कहा हम इन अलग-अलग शैवालों के बारे में बहुत कम जानते हैं, वे फायदेमंद हो सकते हैं, जैसे एंटीबायोटिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और नए एंजाइम जो कम तापमान पर काम करते हैं। लेकिन ये पारिस्थितिक तंत्र सचमुच बर्बाद हो रहे हैं।
जलवायु में बदलाव के चलते सब कुछ बदल रहा है
टीम ने इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की 5वीं आकलन रिपोर्ट के एक मॉडल का इस्तेमाल करके यह अनुमान लगाया कि 14 डिग्री सेल्सियस की सीमा कहां और कितनी तेजी से आगे बढ़ रही है। मॉक ने कहा यह जलवायु में हो रहे बदलाव से हो रहे है, गर्म पानी ठंडे पानी के समुदायों की जगह ले रहा है और यह सब कुछ बदल रहा है।
श्मिट ने कहा कि गर्म पानी के ध्रुव की ओर लगातार बढ़ने से इन खाद्य प्रणालियों या जालों से समुद्री जीवों के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं। ग्रे व्हेल और हम्पबैक सहित कई व्हेल प्रजातियां ध्रुवीय क्षेत्रों में भोजन करने के लिए पलायन करती हैं। और झींगा समुद्री बर्फ के नीचे से चिपके शैवाल का खाते हैं।
एक महत्वपूर्ण शैवालों को खाने वाला, जो पानी को गर्म करने और शैवालों के बदलने से प्रभावित हो सकता है, वह है क्रिल है। क्रिल एक ऐसा जीव जो दक्षिणी महासागर में पनपता है, झींगा जैसा दिखता है और व्हेल, पेंगुइन और सील जैसे बड़े जीवों का यह भोजन है। मॉक ने कहा क्रिल का बायोमास कम से कम ग्रह पर सभी मनुष्यों के बायोमास के बराबर है। इससे आपको अंदाजा हो जाता है कि ये जीव कितने महत्वपूर्ण हैं। अब, कल्पना कीजिए कि पारिस्थितिकी तंत्र का आधार ठंडे पानी, यूकेरियोटिक फाइटोप्लांकटन समुदायों से गर्म पानी, प्रोकैरियोटिक फाइटोप्लांकटन समुदायों में बदल रहा है।
फाइटोप्लांकटन (यूकेरियोटिक और प्रोकैरियोटिक दोनो मिलकर) दुनिया के कार्बन की अनुमानित 50 प्रतिशत अवशोषित करने में योगदान करते हैं। यूकेरियोटिक और प्रोकैरियोटिक समुदायों के संतुलन को बदलने से वैश्विक कार्बन चक्र बदल सकता है, जिस दर पर कार्बन विश्व स्तर पर स्थिर और चयापचय होता है।
मॉक ने कहा जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री खाद्य उद्योगों और अन्य पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं, जैसे कि पर्यटन और मनोरंजन के लिए खतरा पैदा हो सकता हैं, जिस पर यूके जैसे तटीय और द्वीप राष्ट्र निर्भर हैं।
मॉक ने कहा मुझे लगता है कि इस अध्ययन का इस्तेमाल नीति निर्माताओं को पारिस्थितिक तंत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए सुझाव देने के लिए किया जा सकता है, क्योंकि अब हमारे पास एक नया दृष्टिकोण है कि इन समुद्री समुदायों पर तापमान कैसे प्रभाव डाल रहा है।
जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) एक तरह की ग्रीनहाउस गैस, जो समुद्र की सतह के तापमान में इजाफा कर रही है। ऐसा क्या किया जाए जिससे सीओ 2 के उत्पादन को कम किया जा सके, यह पहली और सबसे महत्वपूर्ण चीज है जो हमें करने की ज़रूरत है।