हिंदू कुश हिमालय की जैव विविधता को बड़ी तेजी से बदल रहा है जलवायु परिवर्तन: रिपोर्ट

आईसीआईएमओडी की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में जीव जंतुओं, पौधों, फूलों आदि की प्रवृति में काफी बदलाव आ रहा है
The Kiang or the Tibetan Wild Ass will also lose its habitat due to changing temperatures across the Hindu Kush Himalayas. Photo: iStock
The Kiang or the Tibetan Wild Ass will also lose its habitat due to changing temperatures across the Hindu Kush Himalayas. Photo: iStock
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वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस वृद्धि को यदि आगे नहीं भी बढ़ाने दिया जाता है, तब भी हिंदू कुश हिमालय (एचकेएच) क्षेत्र में जैव विविधता और पारिस्थितिकी के खतरे को रोका नहीं जा सकेगा।

इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन और इंसानी हस्तक्षेप बढ़ने के कारण अच्छा खासा असर पड़ा है।

हालांकि तापमान में वृद्धि की वजह से कुछ प्रजातियों को फायदा हो रहा है, लेकिन अधिकांश प्रजातियां पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।

रिपोर्ट बताती है कि हिमालयी क्षेत्र में पत्तियों के गिरने और खिलने का समय बदल गया है। इससे पौधों के अस्तित्व में कमी आई है और प्रजातियों की भेद्यता को खतरा पैदा हो गया है। उदाहरण के लिए, पश्चिमी हिमालय में अल्पाइन अदरक रोसकोइया प्रजातियों में फेनोलॉजी परिवर्तन हो रहा है, जिससे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में गिजर घाटी में पीले एमरेलिस फूल जल्दी खिल रहे हैं।

हिमालयी रोडोडेंड्रोन जिसे बुरांश भी कहा जाता है, नेपाल और उसके आसपास के इलाकों में कभी पहले खिलने लगे हैं तो कभी देर से खिलते हैं। पूर्वोत्तर चीन में तो इन फूलों के खिलने का समय प्रति वर्ष एक दिन आगे बढ़ा है।

तापमान में वृद्धि के कारण बर्फबारी के पैटर्न में बदलाव के कारण वृक्ष रेखा में भी बदलाव आया है।

कई पौधों की प्रजातियां जैसे कि हिमालयन पाइन भारत के पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों में 11 से 54 मीटर प्रति दशक की दर से ऊपर की ओर खिसक रहे हैं। एक झाड़ीदार प्रजाति जुनिपरस पॉलीकार्पस की ट्रीलाइन 4,000 मीटर से ऊपर पाई गई है।

सिक्किम हिमालय में लगभग 90 प्रतिशत स्थानिक प्रजातियां 27.53 से 22.04 मीटर प्रति दशक की दर से विस्थापित हुई हैं। पूर्वी लद्दाख के उत्तर-पश्चिम हिमालय में पाई जाने वाली पोटेंटिला पामीरिका सहित कई प्रजातियां लगभग 150 मीटर ऊपर की ओर बढ़ गई हैं।

इस तरह के परिवर्तन भारत के बाहर, नेपाल में और चीन में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में भी देखे गए हैं।

जबकि इन विविधताओं के परिणामस्वरूप अधिकांश अल्पाइन क्षेत्र हरे हो गए हैं। बढ़ते शहरीकरण, ऊंचाई पर खेती, सूखे और मानवजनित दबाव के संपर्क में आने वाले कुछ क्षेत्रों में हरापन कम हो गया है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि आक्रामक प्रजातियों के प्रसार की वजह से देशी पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य, स्थिरता और उत्पादकता को भी खतरा बढ़ा है।

भारत के कैलाश पवित्र में 5,000 मीटर से ऊपर की ऊंचाई क्षेत्र में लैंटाना कैमारा के प्रसार में 29.8 प्रतिशत और एग्रेटिना एडेनोफोरा के प्रसार में 45.3 प्रतिशत वृद्धि होने का अनुमान लगाया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदू कुश हिमालय में 26 आक्रामक पौधों की प्रजातियों में से 75 प्रतिशत का विस्तार हो चुका है, जबकि 25 प्रतिशत आक्रामक प्रजातियां सिकुड़ गई हैं। जिससे भारी आर्थिक नुकसान के साथ-साथ जैव विविधता और खाद्य सुरक्षा को खतरा बढ़ेगा।

रिपोर्ट में हिंदू कुश क्षेत्र में घटते जीवों का भी उल्लेख किया गया है। स्तनधारी, कीड़े, सूक्ष्म जीव, पक्षी, उभयचर और मछलियां विलुप्त हो रहे हैं या आनुवंशिक और व्यवहारिक परिवर्तनों का सामना कर रहे हैं।

2080 तक भूटान, नेपाल, भारत और म्यांमार में स्नोलाइन (बर्फीला क्षेत्र) के ऊपर की ओर खिसकने से हिम तेंदुए के आवास प्रभावित होने की आशंका है। हिम तेंदुओं के अलावा, हिमालयी कस्तूरी मृग, गोल्डन स्नब-नोज्ड बंदर और हिमालयी ग्रे लंगूरों की आबादी घटने की आशंका भी जताई गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक भोजन की उपलब्धता में कमी की वजह से आवास में ऐसे परिवर्तन सामने आ रहे हैं। विशाल पांडा, एशियाई भूरा भालू, नीली भेड़, तिब्बती मृग, तिब्बती जंगली गधे और जंगली याक जैसी अन्य प्रजातियां, जो हिंदू कुश हिमालय की स्थानिक हैं में क्रमशः 44 प्रतिशत, सात प्रतिशत और 20 प्रतिशत कमी आई है।

सैटर ट्रैगोपैन जैसे पक्षियों अब अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में चले गए हैं। काली गर्दन वाले सारस के व्यवहार व आवास में परिवर्तन हो रहा है।

जलवायु परिवर्तन के कारण उभयचरों में सबसे अधिक प्रभाव देखा गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर और हिमालय में पाए जाने वाले मेंढकों की प्रजातियां भी विलुप्ति का खतरा झेल रही हैं।

सिक्किम हिमालय में मोनोक्लेड और किंग कोबरा 1,000 मीटर से 1,700 मीटर ऊपर चले गए हैं। सिक्किम में पाए जाने वाले मेंढक के प्रजनन काल में भी बदलाव देखा जा रहा है।

चीन में स्थानिक अपोलो तितलियों की आबादी में गिरावट आ रही है। पूर्वी हिमालय में पूरे क्षेत्र में मोनोटोनिक चींटियों और कैटरपिलर फंगस में गिरावट आई है।

पाकिस्तान में, मुरी पहाड़ियों और पड़ोसी क्षेत्रों में रहने वाली तितलियों की 14 प्रजातियों के गायब होने की सूचना है। चीन में तीन-पूंछ वाली स्वैलटेल, हिमालयी राहत ड्रैगनफ्लाई और टी शॉट-होल बोरर जैसे कीटों में भी बदलाव की खबर है। एवरेस्ट क्षेत्र में मच्छर आ गए हैं।

विशेषज्ञों का अनुमान है कि क्रायोस्फीयर में परिवर्तन जो पहले से ही पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता को प्रभावित कर चुके हैं, हिंदू कुश हिमालय में प्रजातियों की गिरावट का कारण बने रहेंगे।

2050 में हिमालयी ग्रे लंगूर का आवास 60 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा। तिब्बती भूरे भालू के आवास स्थल में 34 प्रतिशत तक कमी होने की आशंका है, जबकि नीली भेड़ के आवास क्षेत्र में 56 से 58 प्रतिशत कमी हो सकती है। हिमालयन आईबेक्स के मामले में, यह 33.7 से 64.8 प्रतिशत तक कम होने की आशंका है।

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