जलवायु परिवर्तन हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली पर डाल सकता है बुरा असर: शोध

1,038 घरों को शामिल करते हुए की गई जांच, घर के अंदर की धूल में पाए जाने वाले वायुजनित जीवाणु माइक्रोबायोम को आकार देने, रहने वालों और पर्यावरणीय निर्धारकों की महत्वपूर्ण भूमिका पर गौर करती है
फोटो साभार: आईस्टॉक
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नॉर्वे के बर्गेन विश्वविद्यालय के द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि, जलवायु परिवर्तन हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली पर बुरा असर डाल रहा है। यह शोध पर्यावरणीय कारणों, सूक्ष्मजीवों और मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर पर गौर करता है।

शोध के निष्कर्षों से पता चलता है कि, आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारे रहने की जगह और हमारे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हो सकती हैं। यह शोध एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है

उत्तरी यूरोपीय देशों के पांच शहरों में किए गए अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने मनुष्य के स्वास्थ्य के साथ उनके संबंधों पर प्रकाश डालते हुए, घर के अंदर के माइक्रोबियल समुदायों की जटिल दुनिया पर प्रकाश डाला है।

1,038 घरों को शामिल करते हुए की गई जांच, घर के अंदर की धूल में पाए जाने वाले वायुजनित जीवाणु माइक्रोबायोम को आकार देने, वहां रहने वालों और पर्यावरणीय निर्धारकों की महत्वपूर्ण भूमिका पर गौर करती है।

मेडिसिन संकाय के शोधकर्ता का कहना है कि, यह कार्य, इनडोर  या घरों के अंदर के वातावरण को लेकर हमारी समझ को फिर से बदलाव करने के लिए तैयार है। जो भौगोलिक स्थिति, मौसम संबंधी स्थितियों, रहने वालों की विशेषताओं, पालतू जानवरों, सफाई के तरीकों और घर के अंदर के माइक्रोबायोटा की संरचना के आपसी संबंधों के बारे में खुलासा करता है।

जलवायु परिवर्तन और अस्थमा और एटॉपी या एलर्जी होने का खतरा

शोधकर्ताओं ने देखा कि अलग-अलग माइक्रोबियल के सम्पर्क में आने से अस्थमा और एटॉपी या एलर्जी संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। इस जानकारी के आधार पर, अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि, अस्थमा और एटॉपी के कम खतरों से जुड़े सुरक्षात्मक फार्म-जैसे माइक्रोबायोटा ने घर के बाहर से संबंधित जीवाणु टैक्सा की अधिकता को दिखाया।

दिलचस्प बात यह है कि ये वही टैक्सा बर्गन के घरों में कम पाए गए थे, जहां अधिक बारिश और हवा की धीमी गति उनके घर के अंदर प्रवेश करने में बाधा डालती है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, शोध टीम ने एक महत्वपूर्ण चीजों पर गौर किया। जैसा कि ग्लोबल वार्मिंग से वर्षा के पैटर्न में तेजी आने की आशंका है, गीलेपन की वजह से बाहरी कणों का जमाव बढ़ जाएगा जिससे घर के अंदर बाहरी बैक्टीरिया का प्रवेश कम हो सकता है।

नतीजतन, इस तरह की परिस्थिति बाहरी बैक्टीरिया के घर के अंदर के माइक्रोबायोम में प्रवेश करने को सीमित कर सकता हैं। इस बदलाव से प्रतिरक्षा स्वास्थ्य पर अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं, इस बात के भी आसार हैं की, सहनशील प्रतिरक्षा स्थिति का विकास और रखरखाव कमजोर पड़ सकता है।

शोधकर्ता कहते हैं कि, यह अनोखा शोध पर्यावरणीय कारणों, सूक्ष्मजीव समुदायों और मनुष्य के स्वास्थ्य पर उनके पड़ने वाले प्रभावों के बीच जटिलता पर गौर करता है। शोध के निष्कर्ष हमारे घर के अंदर के परिवेश और हमारे स्वास्थ्य के बीच नाजुक संतुलन की निरंतर जांच के लिए एक स्पष्ट उपकरण के रूप में काम करते हैं। जैसा कि हम एक लगातार बदलती दुनिया में घूमते हैं, यहां हमारे घर के अंदर के माइक्रोबायोम की बारीकियों को समझना अहम हो जाता है।

यह इस बात की जानकारी प्रदान कर सकता है, आकार दे सकता है जो हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए रहने की जगहें और हमारे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।

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