हिमाचल प्रदेश में कभी कम बारिश तो कभी भारी बारिश, बेमौसमी बर्फबारी और प्राकृतिक आपदाओं के पीछे मूल कारण जलवायु परिवर्तन है। इसको देखते हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा में पहली बार जलवायु परिवर्तन के विषय पर चर्चा की गई। हिमाचल विधानसभा के मानसून सत्र के तीसरे दिन 4 अगस्त को चार विधायकों की ओर से सदन में जलवायु परिवर्तन की वजह से प्रदेश में बेमौसमी बारीश और बर्फबारी से हुए किसानों के नुकसान को लेकर सदन में चर्चा के लिए लाया गया।
इस मामले में चर्चा के दौरान सता पक्ष की ओर से सदन में चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए गए। सदन में बताया कि हिमाचल में सर्दियों के मौसम में कम बारीश और बर्फबारी पड़ने की वजह से अप्रैल-मई माह में भारी सूखे का सामना करना पड़ा। जबकि इसके बाद भारी ओलावृष्टि और बारिश की वजह से फसलों को नुकसान पहंचा। इसके बाद जुलाई माह में बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने की जैसी प्राकृतिक आपदाओं से हजारों करोड़ की संपति के नुकसान के साथ 218 लोगों की जानें चली गई। वहीं 800 करोड़ रुपए की संपति का नुकसान बिजली, पानी और सड़क विभाग का ही होना पाया गया है। जबकि अन्य विभागों का भी सैंकडों करोड़ रुपए की संपत्ति का नुकसान पहुंचा है।
सदन में दिए गए आंकड़ों के अनुसार सूखे के इस साल सूखे के कारण कृषि क्षेत्र की 1,48,908 हेक्टेयर भूमि पर असर पड़ा है। जिससे करोड़ रुपए के नुकसान का आंकलन किया गया है। जबकि इसके एवज में कृषि विभाग को 3.75 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं। इसी तरह सूखे के कारण बागवानी क्षेत्र के 23173 हैक्टेयर भूमि पर असर पड़ा है। जिससे 144 करोड़ रुपए के नुकसान का आंकलन है और इसके एवज में विभाग को 5 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं। सरकार की ओर से दिए गए आंकडों में हैरानी की बात यह देखने को मिली है कि सरकार की ओर से कृषि और बागवानी में 133.50 और 144 करोड का नुकसान बताया गया है, लेकिन यदि राहत देने की बात की जाए तो नाममात्र की राशि जारी कर मात्र औपचारिक्ता पूरी की गई है।
इसके अलावा बेमौसमी भारी बारीश और ओलावृष्टी के कारण प्रदेश में 645 करोड़ रुपए के नुकसान की रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी गई है, ताकि इसके बदले में प्रदेश को राहत राशि मिल सके।
यदि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सरकार के प्रयासों की बात की जाए तो सदन में बताया गया कि राज्य का विज्ञान, पर्यावरण पौद्योगिकी विभाग इसमें मामले में अध्ययन कर रहा और पंचायत स्तर पर लोगों को जागरूक किया जा रहा है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रकोष्ठ जलवायु परिवर्तन से जल संसाधनों पर बढ़ते संकट का आंकलन एवं उपायों पर तत्परता से काम कर रहा है। हिमाचल में प्राकृतिक आपदांए बढ़ रही हैं, नई ग्लेशियर लेक बन रही हैं। जो कभी भी प्रदेश के कई स्थानों में तबाही मचा सकती हैं।
हिमाचल के वेट्ररन जर्नलिस्ट सुशील शर्मा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि वे पिछले 45 वर्षाें से पत्रकारिता के क्षेत्र से जुडे़ हुए हैं। लेकिन अभी तक जलवायु परिवर्तन के मुद्दे के प्रति किसी भी सरकार को संजीदा नहीं देखा है। अब इस मामले को सदन में लाया गया है, लेकिन सरकारों को इस मामले के प्रति संजीदा होकर काम करना चाहिए, मुझे नहीं लगता वो करेंगी। सरकारों को चाहिए कि सतत् विकास के लक्ष्यों की पूर्ती के लिए काम करे और सभी विभाग एक साथ सामंजस्य के साथ करे।