फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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जलवायु परिवर्तन से समुद्री वातावरण में 87 फीसदी तक बदलाव के आसार

एक नए शोध में कहा गया है कि 2030 तक समुद्र के खारेपन में भारी वृद्धि होने के आसार हैं।
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एक नए शोध से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन दुनिया के महासागरों की परिचित स्थितियों को बदल रहा है और नए वातावरण बना रहा है। जो दुनिया के सबसे बड़े समुद्री संरक्षित क्षेत्रों में समुद्री जीवों की रक्षा के प्रयासों को कमजोर कर सकता है। यह शोध ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी (ओएसयू) के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।

ओएसयू के कॉलेज ऑफ अर्थ, ओशन एंड एटमॉस्फेरिक साइंसेज में सहायक प्रोफेसर और शोधकर्ता जेम्स वाटसन ने कहा कि बदलती परिस्थितियों का उन लोगों पर सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव पड़ता है, जिनकी परंपराएं और आजीविका समुद्र के संसाधनों पर निर्भर हैं।

वॉटसन ने कहा आज हमारे चारों ओर जो वातावरण है वह भविष्य में अस्तित्व में नहीं होगा। यह एक पर्यावरणीय, सांस्कृतिक और आर्थिक नुकसान है जिसकी भरपाई हम नहीं कर सकते हैं।

शोधकर्ताओं के कई जलवायु परिदृश्यों के विश्लेषण से पता चला है: वर्ष 2060 तक 60 से 87 फीसदी महासागर में कई जैविक और रासायनिक बदलाव होने के आसार हैं, जैसे पानी के तापमान में वृद्धि, खारेपन का उच्च स्तर और ऑक्सीजन के स्तर में बदलाव आदि होना है।

ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क और इक्वाडोर में गैलापागोस मरीन रिजर्व जैसे बहुत बड़े समुद्री संरक्षित क्षेत्रों में बदलाव की दर और भी अधिक, यानी 76 से 97 फीसदी तक होने का अनुमान है।

समुद्र के खारेपन 2030 तक भारी वृद्धि होने के आसार हैं। महासागर के अम्लीकरण से समुद्री जल में कार्बोनेट की मात्रा कम हो जाती है, जो समुद्री जीवों, जैसे कोरल और सीप जैसे मोलस्क के लिए आवश्यक है, ताकि उनके गोले और कंकाल विकसित हो सकें।

प्रमुख शोधकर्ता स्टीवन माना'ओकामाई जॉनसन हैं, जिन्होंने ओरेगन स्टेट में अपने डॉक्टरेट शोध प्रबंध के हिस्से के रूप में शोध किया। शोध की अवधारणा उत्तरी मारियाना द्वीप समूह में सायपन के मूल निवासी जॉनसन, पश्चिमी प्रशांत महासागर में एक अमेरिकी राष्ट्रमंडल और इंग्लैंड के मूल निवासी वाटसन के बीच बातचीत से पैदा हुई थी। एक बात यह है कि समुद्र की वह स्थितिया गायब हो गई हैं जिनका उन्होंने बच्चपन में अनुभव किया था।

जॉनसन ने कहा की हम सभी के पास ऐसे अनुभव हैं जिन्हें हम पर्यावरणीय परिस्थितियों के एक संग्रह के रूप में परिभाषित करते हैं। जो पहले से ही सायपन में विनाशकारी प्रवाल विरंजन की घटना जैसे जलवायु परिवर्तन प्रभावों को देख चुके हैं।

शोधकर्ता ने कहा कि तापमान, खारापन और ऑक्सीजन के स्तर जैसे गुणों से पता चलता हैं कि समुद्र का एक हिस्सा कैसा होगा। जेम्स और मेरे दोनों ने कहा कि हम जिस महासागर के अनुभव के साथ बड़े हुए हैं और जिसकी यादें हमारे पोते-पोतियों के लिए अब मौजूद नहीं हैं।

शोधकर्ताओं ने स्थिरता के माप के आधार पर पिछले 50 वर्षों की समुद्री स्थितियों के बारे में पता लगाया। इसके लिए उन्होंने जलवायु मॉडल का उपयोग करके यह देखा कि ग्रह के गर्म होने पर समुद्र की स्थितियों को प्रभावित करने वाले छह चीजे कैसे बदल सकती हैं। उन्होंने गंभीरता की बढ़ती डिग्री के साथ तीन बढ़ते तापमान के परिदृश्यों का उपयोग किया।

उन्होंने बतया की हमारे परिदृश्यों में बढ़ते तापमान की संभावित, असंभावित और अत्यधिक असंभावित डिग्री शामिल हैं। जिनमें से सभी 20 साल पहले की तुलना में आज अधिक गर्म हैं। तीनों परिदृश्यों में, आधे से अधिक महासागर में स्थितियां बदलने जा रही हैं। यह स्थितियां पिछले 50 वर्षों की तुलना में नई और काफी अलग हैं।

अधिकांश बदलाव महासागर के दो चरम सीमाओं में होते हैं जिनमें उष्णकटिबंधीय और आर्कटिक शामिल हैं। सबसे गर्म स्थान पहले कभी नहीं देखे गए, हम बढ़ते तापमान की स्थितियों को देख रहे हैं। सबसे ठंडे स्थान, जैसे आर्कटिक, अब उतने ठंडे नहीं हैं जितने पहले थे। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि उनमें से अधिकतर बदलाव 2060 तक होंगे, हालांकि पीएच, या खारेपन के स्तरों में अधिकांश परिवर्तन दशक के अंत तक होने के आसार हैं।

यह परिवर्तन बहुत बड़े समुद्री संरक्षित क्षेत्रों के लिए अधिक स्पष्ट है जो दुनिया भर में खतरे वाली प्रजातियों और प्रवाल भित्तियों जैसे दुर्लभ आवासों को संरक्षित करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। जैसे-जैसे समुद्र की स्थिति बदलती है, उन संरक्षित क्षेत्रों में जानवरों को अन्य स्थानों की तलाश करने की संभावना है जो उनके अस्तित्व के लिए अधिक अनुकूल हैं।

जॉनसन ने कहा ये समुद्री संरक्षित क्षेत्र संरक्षण लक्ष्यों को हासिल करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण हैं। इसे स्थापित करने और काम करने के लिए बहुत अधिक राजनीतिक और सामाजिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता हो सकती है। हमारे विश्लेषण में, इनमें से 29 में से 28 क्षेत्रों में उन परिस्थितियों में बदलाव का अनुभव होगा जो संरक्षण लक्ष्यों को कमजोर कर सकते हैं।

जॉनसन ने कहा कि शोधकर्ताओं के निष्कर्ष इस बात की तस्वीर पेश करते हैं कि भविष्य में क्या हो सकता है क्योंकि धरती गर्म हो रही है। शोध समुदायों, नीति निर्माताओं और संरक्षित आवासों के प्रबंधकों को महत्वपूर्ण जानकारी भी प्रदान करता है। समुद्र की बदलती स्थितियां उन्हें कैसे प्रभावित कर सकती हैं और वे उन परिवर्तनों को कैसे हल कर सकते हैं।

जॉनसन ने उदाहरण देते हुए कहा कि ट्यूना कुछ समुद्री परिस्थितियों में पनपती है। यदि समुद्र बहुत गर्म हो जाता है, तो ट्यूना दूसरे क्षेत्र में जा सकती है। यदि आपका देश भोजन या आजीविका के लिए ट्यूना पर निर्भर है, तो इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? या यदि आप एक संरक्षित क्षेत्र के प्रबंधक हैं और आप एक ऐसी प्रजाति की रक्षा कर रहे हैं जो अब उस क्षेत्र में नहीं है, तो आप क्या करते हैं?

वाटसन ने कहा कि इस प्रकार के पूर्वानुमान से आगे बढ़ती हुई जलवायु परिवर्तन की मात्रा कैसे निर्धारित की जा सकती है। यह जिस चीज का नुकसान हो रहा है उससे लोगों को आघात के साथ आगे आने का अवसर भी देता है। साथ ही उन संसाधनों के बिना भविष्य के लिए योजना बनाना शुरू करना है।

उन्होंने कहा कि इस तरह का काम पहले भी जलवायु परिवर्तन के कारण भूमि पर परिवर्तन के लिए किया गया है। लेकिन समुद्र के लिए नहीं। यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि किस चीज के नुकसान होने के आसार हैं। यह नुकसान लोगों को इससे निपटने के लिए प्रेरित करने में भी मदद कर सकता है। यह शोध वन अर्थ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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