जलवायु परिवर्तन से ठंडे खून वाले जीवों में बढ़ रहे हैं घातक संक्रमण

शोधकर्ताओं ने बैक्टीरिया, फंगल और अन्य संक्रमणों से पीड़ित ठंडे खून वाले जानवरों पर 60 प्रयोगात्मक अध्ययन किए, जिसमें पाया गया कि ठंडे खून वाले जानवर तापमान पर निर्भर होते हैं
शोध में पाया गया कि ठंडे खून वाले जानवर सीधे तापमान पर निर्भर होते हैं और इसलिए, ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं।
शोध में पाया गया कि ठंडे खून वाले जानवर सीधे तापमान पर निर्भर होते हैं और इसलिए, ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं।फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, फ्रैक्टल24
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दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में भारी वृद्धि हो रही है और इससे संक्रामक रोगों का प्रकोप बढ़ सकता है, जिससे प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। तापमान में वृद्धि और संक्रमण मिलकर जीवों के स्वास्थ्य को किस हद तक नुकसान पहुंचा सकते हैं, यह स्पष्ट नहीं है।

ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय (यूबीसी) के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण कोरल, कीड़े और मछली जैसे ठंडे खून वाले जीवों के लिए जीवाणु और फंगल संक्रमण घातक हो सकते हैं। जिससे पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को नुकसान पहुंच सकता है, इसकी वजह से लोगों पर बढ़ते तापमान का और क्या-क्या असर पड़ सकता है इस बारे में कई सवाल उठते हैं।

गर्म होती दुनिया में ठंडे खून वाले जीवों पर असर

शोधकर्ताओं ने बैक्टीरिया, फंगल और अन्य संक्रमणों से पीड़ित ठंडे खून वाले जानवरों पर 60 प्रयोगात्मक अध्ययन किए, जिसमें पाया गया कि ठंडे खून वाले जानवर सीधे तापमान पर निर्भर होते हैं और इसलिए, ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हो सकते हैं।

अध्ययनों में जमीनी कीटों, मछलियों, मोलस्क और कोरल सहित 50 प्रजातियों को शामिल किया गया जो ग्रह पर सबसे अधिक जैव विविधता वाले और सबसे अधिक खतरे वाले पारिस्थितिकी तंत्रों में से कुछ हैं।

शोधकर्ताओं ने सांख्यिकीय मॉडलों का उपयोग करते हुए पाया कि जीवाणु संक्रमण से ग्रस्त ठंडे खून वाले जीवों के सामान्य पर्यावरणीय परिस्थितियों की तुलना में अधिक तापमान के संपर्क में आने पर उनके मरने की अधिक आशंका होती है।

फंगल संक्रमण और ठंडे खून वाले जीव

शोध में विश्लेषण से पता चला कि फंगल रोगजनकों से संक्रमित जीवों ने एक विशिष्ट तापमान सीमा के भीतर गर्मी के प्रभाव को महसूस किया। तापमान बढ़ने पर वे अधिक बार नहीं मरे, जब तक कि तापमान कवक की आदर्श सीमा की ओर नहीं बढ़ा, जिसे "थर्मल ऑप्टिमम" के रूप में जाना जाता है। इस बिंदु पर, संक्रमित जानवरों के मरने की अधिक आशंका जताई गई थी।

हालांकि जब तापमान इतना ज्यादा हो गया कि कवक जीवित नहीं रह सके, तो संक्रमित जानवरों में मृत्यु दर कम हो गई।

इसका क्या मतलब है?

इन निष्कर्षों से पता चलता है कि बढ़ती गर्मी से ठंडे खून वाले जानवरों के लिए अधिक खतरा हो सकता है, जो पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा कि इस बात पर अधिक शोध करने की जरूरत है कि बढ़ते तापमान का मनुष्यों सहित गर्म खून वाले जानवरों पर क्या प्रभाव पड़ता है।

शोध के परिणाम गर्म, रोग-प्रवण दुनिया में पशु आबादी के लिए खतरों का पूर्वानुमान लगाने में मदद करने के लिए अहम जानकारी प्रदान करते हैं। यह शोध पीएलओएस बायोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है

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