
केंद्रीय विश्वविद्यालय केरल (सीयूके) के शोधकर्ताओं द्वारा हाल ही में किए गए अध्ययन से पता चला है कि पिछले 800 वर्षों में पश्चिमी घाट में मानसून की वर्षा में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज हुई है। पिछले 1,600 वर्षों के भारतीय मानसून के पैटर्न पर शोध करके इस क्षेत्र में दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तनों के बारे में जानकारी मिली है।
विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. के. संदीप के नेतृत्व में किए गए इस शोध को शोधकर्ता के.वी. रेशमा और जी.एच. अरविंद के सहयोग से पूरा किया गया। यह अध्यययन क्वाटरनेरी इंटरनेशनल में प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन में पश्चिमी घाट में होने वाले ऐतिहासिक जलवायु पैटर्न के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है और इस अध्ययन में तीव्र मानसून चक्र से होने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए किए जाने वाले उपायों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. संदीप ने कहा कि मानसून की तीव्रता में दीर्घकालिक वृद्धि हाल के वर्षों में अधिक बार देखी गई है और यह अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में योगदान दे सकती है। इसके लिए उन्होंने 2018 और 2019 में वायनाड और कोडागु में हुए विनाशकारी भूस्खलन और बाढ़ को चरम मौसमीय घटनाओं का उदाहरण दिया है।
यह अलग-अलग घटनाओं की बजाय व्यापक जलवायु प्रवृत्ति का हिस्सा हो सकते हैं। शोध में बेहतर आपदा तैयारी, टिकाऊ भूमि उपयोग योजना और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील पश्चिमी घाटों में संरक्षण की आवश्यकता पर जोर डाला गया है।
विशेषज्ञों ने मानसून की तीव्रता को कम करने के लिए दीर्घकालिक पर्यावरण नीतियों के महत्व पर जोर दिया है। शोधकर्ताओं ने सदियों से मानसून की तीव्रता को ट्रैक करने के लिए कर्नाटक के मदिकेरी के पास चेप्पंडीकेरे झील के तलछट का विस्तृत विश्लेषण किया है।
ध्यान रहे कि भारतीय मानसून वैश्विक जलवायु प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह भारतीय उपमहाद्वीप के पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
20वीं शताब्दी के दौरान पश्चिमी घाट के दक्षिणी भाग में दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा में कमी का रुझान दर्ज किया गया। वर्तमान अध्ययन दक्षिण-पश्चिमी भारत के पश्चिमी घाट में स्थित चेप्पनडीकेरे झील के तलछट पर किए गए अध्ययनों के आधार पर पिछले 1600 वर्षों के दौरान मानसून में हुए अल्पकालिक और दीर्घकालिक परिवर्तनों का अध्ययन किया गया है।
अध्ययन से पता चलता है कि पश्चिमी घाट में मानसून पूरे क्षेत्र में अब और अधिक मजबूत हुआ है। पश्चिमी घाट में अन्य झीलों के पुराने अध्ययनों में भी इसी तरह का पैटर्न देखा गया है। हालांकि उनकी अल्पकालिक परिवर्तनशीलता में अंतर देखा गया है।
पश्चिमी घाट एक पर्वत श्रृंखला है जिसका झुकाव उत्तर-दक्षिण दिशा की ओर है। इसकी चौड़ाई सीमित है और पश्चिमी किनारा खड़ा है। पर्वत श्रृंखलाओं में बहुत अधिक वर्षा होती है। पश्चिमी ढलानों पर औसत वार्षिक वर्षा 3000-4000 मिमी होती है।
20वीं शताब्दी के दौरान पश्चिमी घाट के दक्षिणी भाग में दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा में कमी और उत्तरी भाग में वृद्धि की प्रवृत्ति दर्ज की गई है। पश्चिमी घाट में जलवायु परिवर्तन और उनके संभावित तंत्रों की समझ आवश्यक है क्योंकि इस क्षेत्र में दक्षिण-पश्चिम मानसून का आगमन स्थानीय जलवायु संशोधनों के माध्यम से भारत की जलवायु को विनियमित करने के लिए महत्वपूर्ण कारक है। इसके अलावा पश्चिमी घाट वैश्विक जैव विविधता का प्रमुख हॉटस्पॉट में से एक है।
अध्ययन के अंत में कहा गया है कि दक्षिण-पश्चिमी भारत के पश्चिमी घाट में चेप्पंडीकेरे झील से प्राप्त उच्च-रिजाल्यूशन मल्टी-प्रॉक्सी रिकॉर्ड पिछले लगभग 1600 वर्षों के दौरान अल्पकालिक और दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तनों का संकेत देते हैं।