कैमरे की नजर से: फूलों की घाटी को चर रही है घास और बदलता मौसम

बीते सीजन के दौरान उत्तराखंड की फूलों की घाटी में कई बदलाव देने को मिले, जिन्हें डाउन टू अर्थ के फोटो पत्रकार विकास चौधरी ने अपने कैमरे में कैद किया
फोटो: विकास चौधरी
फोटो: विकास चौधरी
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हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड को कुदरत ने अनेक खूबसूरत तोहफों से नवाजा है। ऐसा ही एक तोहफा है फूलों की घाटी। यह घाटी उन लोगों के लिए जन्नत से कम नहीं जो फूलों में दिलचस्पी रखते हैं। यहां पाया जाने वाला हर फूल विशिष्ट है। अधिकांश फूलों का आयुर्वेद और चिकित्सा पद्धति में विशेष महत्व है। चमोली जिले में नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित यह घाटी समुद्र तल से करीब 12,500 फीट की ऊंचाई पर है और लगभग 88 वर्ग किलोमीटर में फैली है। ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रेंक स्मिथ 1931 में जब इस घाटी से गुजरे तो यहां फूलों की विविधता देखकर हैरान रह गए थे। 1939 में आई उनकी किताब “वैली ऑफ फ्लावर्स” के बाद इसी नाम से घाटी लोकप्रिय हो गई। हालांकि स्थानीय लोग इसे भ्यूंडार घाटी कहते हैं। 1982 में इस घाटी को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला और 2005 में यूनेस्को की विश्व धरोहर में इसे शामिल किया गया। स्थानीय लोग मानते हैं कि वर्तमान में फूलों की घाटी काफी बदलावों से गुजर रही है। राष्ट्रीय उद्यान घोषित होने के बाद प्रशासन ने घाटी में मवेशियों और भेड़-बकरियां चराने पर रोक लगा दी। इसके बाद घाटी, घास की आक्रामक प्रजाति पॉलिगोनम पॉलिस्टीच्यूम की जद में आई जो अब बड़े हिस्से में फैल चुकी है। भ्यूंडार गांव के निवासी पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि मई के महीने में वे बकरियां और गाय चराने जाते थे और एक महीने से भी कम समय में आगे और ऊंचे मैदानों की तरफ बढ़ जाते थे। जानवरों के खुरों से निराई गुड़ाई का काम हो जाता था और गोबर से वहां उगने वाले फूलों और जड़ी-बूटियों को खाद मिल जाता था। इससे जुलाई-अगस्त में अच्छे फूल खिलते थे। लेकिन चराई पर रोक लगने से स्थितियां बदल गईं। मौसमी बदलावों ने भी घाटी को प्रभावित किया। मसलन, इसी साल बर्फ जल्दी पिघलने से समय से दो सप्ताह पहले यानी मई के मध्य में फूल खिलने लगे। डाउन टू अर्थ के फोटो पत्रकार विकास चौधरी ने घाटी में आ रहे बदलावों और फूलों की विविधता को तस्वीरों में कैद किया

स्वर्ग-सा सुंदर

फूलों की घाटी में पेड़-पौधों की करीब 520 प्रजातियां हैं। इनमें भी सर्वाधिक 498 प्रजातियां फूलों की हैं। घाटी में मिलने वाले 112 फूलों के पौधे औषधीय गुणों वाले हैं। फूलों के अलावा यहां एशियाई काला भालू, हिमालयन थार, हिरण, हिम तेंदुआ जैसी विलुप्तप्राय जानवरों की प्रजातियां भी मिलती हैं

साइनैंथस लोबाटस

यह फूल हिमालय में 3,300 से 4,500 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। फूलों की घाटी इसके लिए एकदम मुफीद है। इस फूल का सामान्य नाम ट्रेलिंग बेलफ्लावर है। इसकी जड़ों का रस पेट के अल्सर की बीमारी में इस्तेमाल किया जाता है

आपदाओं के चिह्न

जलवायु परिवर्तन के चलते न सिर्फ बर्फबारी में कमी आई है बल्कि बादल फटना, अचानक बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं काफी बढ़ गई हैं। 2013 में पुष्पावती नदी में आई बाढ़ ने घाटी को काफी नुकसान पहुंचाया। बाढ़ के तेज पानी से घाटी का संपर्क मार्ग बह गया और यहां पहुंचना और दुर्गम हो गया। अब पर्यटकों को घाटी में प्रवेश के लिए 4 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई करनी पड़ती है। इसके अलावा घाटी में ट्री लाइन भी लगातार बढ़ रही है

औषधीय इनूरी

घाटी में मिलने वाला इनूरी (विस्टोरता वैक्सीनीफोलिया) एक औषधीय पौधा है जिसकी पत्तियां साग के रूप में और जड़ें तपेदिक के उपचार में प्रयुक्त होती हैं। जुलाई से सितंबर के बीच इसमें खूबसूरत गुलाबी रंग के फूल आते हैं। इसे रोज कारपेट नॉटवीड के नाम से भी जाना जाता है

आक्रामक घास

घाटी के लिए फिलहाल घास की एक आक्रामक प्रजाति पाॅलिगोनम पॉलिस्टीच्यूम सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरी है। इस घास को हिमालयन नॉटवीड, अमोला, नटग्रास और सरन जैसे नामों से जाना जाता है। यह मूलरूप से एिशया के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। भारतीय वन प्रबंधन संस्थान में प्रोफेसर व शोधकर्ता चंद्र प्रकाश काला के अनुसार, इसकी 70 प्रजातियां हैं जिसमें से 40 हिमालय में मिलती हैं। तेजी से फैलने वाली यह घास अपने आसपास किसी और वनस्पति को नहीं पनपने देती। 2008 से उत्तराखंड का विभाग इससे लगातार निपटने की कोशिश कर रहा है। हर साल कुछ मजदूर लगाकर इसे उखाड़ा जाता है पर यह न सिर्फ वापस उग आती है बल्कि नए इलाकों में भी फैल जाती है। पिछले साल वन विभाग ने इसे तीन बार हटाया था। इस वक्त यह घास पुष्पावती नदी से प्रियदर्शनी तोक तक करीब 2 किलोमीटर क्षेत्र में फैली है और 2 मीटर तक ऊंची हो गई है। सफेद फूलों वाली यह घास इसी तरह फैलती रही तो इस खूबसूरत घाटी की विविधता खतरे में पड़ सकती है

मोरिना लॉन्गिफोरिया

हिमालय में पाई जाने वाली फूल की इस प्रजाति का ितब्बती चिकित्सा में व्यापक इस्तेमाल होता है। पेट के विकारों जैसे अपच, उल्टी, घबराहट में इसका उपयोग किया जाता है। भारत में इसका अर्क घूपबत्ती में इस्तेमाल होता है

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