जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून के दिनों में भी बढ़ रही है गर्मी

आईआईटी, गांधीनगर के शोधकर्ताओं ने 1951 से 2017 के बीच केरल में वर्षा, तापमान और चरम घटनाओं का अध्ययन किया है
File Photo : Verghese Thomas
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पिछले नौ माह के दौरान केरल ने कई आपदाओं का सामना किया है। केरल की इन अतिशय मौसमी घटनाओं के कारणों की डाउन टू अर्थ ने विस्तृत पड़ताल की है। उसी पड़ताल के चौथे भाग में आज मौसमी विभीषिकाओं की घटनाओं पर आईआईटी गांधीनगर द्वारा किए गए अध्ययन पर एक रिपोर्ट।

भारत में होने वाली लगातार मौसमी विभीषिकाओं की आवृत्ति और तीव्रता साफ तौर पर बढ़ती हुई प्रतीत हो रही है, जैसा कि जलवायु परिवर्तन पर हुए विभिन्न आकलनों से पता चलता है। अगस्त,2018 में केरल में आई बाढ़ पर हुए एक नए अध्ययन ने भी यही बताया है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी गांधीनगर स्थित वॉटर एंड क्लाइमेट लैब के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन 1951 से 2017 के बीच केरल में वर्षा,तापमान और चरम घटनाओं से संबंधित आंकड़ों के विश्लेषण के साथ-साथ मॉडल सिमुलेशन पर आधारित है। इस अवधि के दौरान केरल में मानसून की वर्षा में अच्छी खासी गिरावट और मानसून के महीनों के दौरान तापमान में वृद्धि देखी गई। एक या दो दिन होने वाली भारी वर्षा की घटना में भी कमी आई। इसका मतलब है कि 1951 से अब तक केरल मानसून के मौसम में अधिक सूखा और गर्म होता आ रहा है।  

शोधकर्ता विमल मिश्रा और हर्ष एल शाह ने जर्नल ऑफ जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया में प्रकाशित अपने अध्ययन में कहा है,“1951-2017 के दौरान हमें मानसून के मौसम में होने वाली औसत या अधिकतम वर्षा में कोई वृद्धि नहीं दिखती है। पिछले 66 वर्षों में हुई तापमान वृद्धि  के बावजूद, औसत और अत्यधिक वर्षा और कुल अपवाह में वृद्धि नहीं हुई है। ” इसके विपरीत, अध्ययन में कहा गया है कि 2018 में हुई अतिवर्षा और बाढ़ की घटनाएं संभवतः बड़े पैमाने पर हुई असाधारण संचलन गतिविधियों के कारण हुई हैं। इससे पहले के अध्ययनों में पश्चिमी घाट में मानसूनी वर्षा पर वनों की कटाई का प्रभाव दिखाया गया है। भूमि उपयोग और भूमि आच्छादन में परिवर्तन भी जलविज्ञान की स्थितियों को प्रभावित करते हैं, जो बदले में बाढ़ की तीव्रता और जलप्लावन को प्रभावित करते हैं। अध्ययन कहता है, केरल में भूमि आच्छादन की पुरानी स्थिति में आएपरिवर्तन का कितना प्रभाव अगस्त 2018 में आयी बाढ़ पर पड़ा, यह अभी तक समझा नहीं जा सका है।

शोधकर्ताओं ने कहा, जलाशयों की स्थिति ने कम से कम बाढ़ की स्थिति को और भयावह करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी। यह समूह पहले ही बता चुका था कि लगातार हो रही भारी वर्षा की बदौलत (15 और 16 अगस्त,2018 को होनेवाली भारी वर्षा से पहले ही ) से जलाशयों का स्तर सामान्य से ऊपर  जा चुका था। अध्ययन कहता है, प्रमुख जलाशयों के कैचमेंट में अत्यधिक वर्षा ने जलाशय संचालकों को फाटक खोलने और संग्रहीत पानी को भारी मात्रा में छोड़ने के लिए मजबूर किया, जो शायद बाढ़ की गंभीरता में इजाफे के लिए ज़िम्मेदार है।

हालांकि, अन्य जलवायु विशेषज्ञ सहमत नहीं हैं और उनका मानना है कि सभी चरम मौसम की घटनाओं के पीछे स्थानीय तापमान में बढ़ोतरी ज़िम्मेदार हो , ऐसा आवश्यक नहीं।

यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड के एटमोस्फियरिक एंड ओशनिक साइंस एंड अर्थ सिस्टम साइंस के प्रोफेसर और आईआईटी बॉम्बे के विजिटिंग प्रोफेसर रघु मुर्तुगुड़े ने बताया है कि यह अध्ययन उस तंत्र पर केंद्रित नहीं है जिसकी वजह से ऐसी भारी वर्षा हुई है। मैं इसे प्राकृतिक परिवर्तनशीलता के तौर पर देखने का पक्षधर नहीं हूं , वह भी केवल इसलिए क्योंकि अब तक केरल में माध्य या चरम में कोई ख़ास परिवर्तन नहीं हुआ है। वार्मिंग के फलस्वरूप वातावरण में नमी की भारी मात्रा जमा हो रही है और संभव है कि इसकी वजह से ऐसी घटनाएं, हो पहले 50 या 100 वर्षों में एक बार होती थीं, अब और जल्दी घटें। अतः हमें उन प्रक्रियाओं की और ध्यान देना होगा जो वातावरण में नमी उत्सर्जित करती हैं और उसके लिए हमें आईआईटी मद्रास के रॉक्सी मैथ्यू कोल के काम की तरफ लौटना होगा जहाँ वे दर्शाते हैं कि अरब सागर के गर्म होने से निकलनेवाली नमी मानसून में वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार है।

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